कोई भी चीज़ अगर हम सबसे पहले करना शुरू करते हैं, तो मन में बहुत सारे सवाल होते हैं। चाहे वो नई गाड़ी खरीदने का प्लान हो, नया मकान बनाना हो या कोई बिज़नेस आदि शुरू करने की बात हो। ठीक वैसे ही पहला आर्टिकल लिखने से पहले बहुत सारे सवाल ज़हन में आ रहे होते हैं।
कैसे शुरू करें पहला आर्टिकल लिखना? इंट्रो क्या दें? कौन सी बात आर्टिकल में शामिल करें और कौन सी ना करें? लोगों ने आर्टिकल पढ़कर आलोचना करनी शुरू कर दी तो?
बस आपको करना यह है कि इन सवालों से ना घबराकर लिखना शुरू कर देना है। आइए आगे बात करते हैं नींव कैसे रखी जाए?
एक टायटल के साथ शुरुआत करें
यह मानकर चलिए कि जब आपका पूरा आर्टिकल कंप्लीट हो चुका होगा, तब आपके द्वारा यह निर्णय लिया जा सकता है कि क्या ऐसा टायटल दिया जाए, जो पाठकों को आपके आर्टिकल को पढ़ने के लिए विवश करे। टायटल में ऐसी कोई यूनिक चीज़ हो जो पूरी बात ना बताए लेकिन फिर भी उसमें यह स्कोप हो कि टायटल पढ़कर पाठकों को लगे कि किसी भी चर्चा को यह एक कदम आगे ले जाएगा।
ध्यान रहे टायटल क्लिक बेट ना हो। किसी समुदाय की भावनाओं को ठेस ना पहुंचाए और टायटल में एक ही शब्दों का प्रयोग बार-बार ना हो। इसके अलावा यह बहुत लॉन्ग ना हो। तो मोटे तौर पर फाइनल टायटल के लिए आपको निर्णय तब लेना है, जब आपका आर्टिकल कंप्लीट हो जाए।
अब इंट्रो पर काम
टायटल पढ़कर पाठक डिसाइड करते हैं कि आर्टिकल को पढ़ना है या नहीं, खासकर डिजिटल मीडिया के स्पेस में। अब अगर पाठक ने डिसाइड कर लिया है कि आपका आर्टिकल उन्हें पढ़ना है, तो सबसे पहले उनकी नज़र जाएगी इंट्रो पर। इसलिए बेहद ज़रूरी है कि आपका इंट्रो काफी मज़बूत हो और पाठकों के लिए यह तय करने में मददगार साबित हो कि क्यों उन्हें आपका पूरा आर्टिकल पढ़ना चाहिए।
प्रिंट मीडिया के दौर में कहा जाता था कि इंट्रो खबर की खिड़की होती है। भले ही हम डिजिटल स्पेस में हैं लेकिन कहीं ना कहीं यह बात डिजिटल स्पेस में लिखे जाने वाले लेखों के लिए भी फिट बैठती है। अभी-अभी मैंने कहा कि इंट्रो मज़बूत हो तो इसका मतलब यह नहीं कि उसमें आप क्लिश्ट हिन्दी के शब्दों को डालने में सारी मेहनत लगा दें। मज़बूत यानि कि अपनी बात सहजता से पाठकों को बताने में वो सक्षम हो ताकि पाठक ये तय कर पाएं उनको आपका आर्टिकल पढ़ना है! बस इतना ही।
अब आना है मेन कंटेंट पर
ध्यान रहे कि मेन कंटेंट में चीज़ों को आपको ब्रेकडाउन करना है। इंट्रो में जो बातें आपने कही थी, यहां उसी चर्चा को एक स्टेप आगे लेकर जाना है। बेहतर होगा कि तथ्यों को आप उदाहरण के साथ बताएं, ताकि पाठकों के बीच आपकी विश्वसनीयता बनी रहे। मैं आपको नीचे एक उदाहरण के ज़रिये बताता हूं।
मान लीजिए कि आपका पहला आर्टिकल कोई पर्सनल स्टोरी है और इसको लिखने के बाद आप आप यह तय कीजिएगा कि आपको राजनीति, पॉप कल्चर, एजुकेशन, हेल्थ या क्लाइमेट में से किसी एक पर लिखना है। तो महत्वपूर्ण है कि सबसे पहले कुछ पर्सनल स्टोरी लिखकर आप राइटिंग को लेकर अपनी शंकाओं को तोड़ें ताकि आगे आप डिसाइड कर पाएं कि किस बीट पर आपको लिखना है।
पर्सनल स्टोरी के साथ एक अच्छी बात यह है कि मान लीजिए मेंटल हेल्थ पर लिखने की आपकी योजना है। ऐसे में शायद आपके पास ही कहने के लिए बहुत सारी चीज़ें हों और निजी अनुभवों को जब आप एक आर्टिकल के रूप में पेश कीजिएगा तो बहुत मुश्किल नहीं होगा, क्योंंकि कहानी आपकी है।
बस आप यह सोचकर फ्लो में लिखते रहिए कि अगर आप आपकी लिखी हुई स्टोरी को पढ़ रहे होते तो क्या पूरा पढ़ते? कहीं ऐसा तो नहीं कि कंटेंट आपको बोर कर देता और आप बीच में ही छोड़ देते। अगर इन सवालों का आंसर आप तलाश पाने में सक्षम बन रहे हैं, तो मानकर चलिए कि राइटिंग की आपकी जर्नी सही दिशा में जा रही है।
अंत में कन्क्लूशन देना ना भूलें
आपने बढ़िया इंट्रो दिया, कंटेंट पर अच्छा काम किया आपने मगर अब ज़रूरी है कि पाठकों के लिए निष्कर्ष पर भी उम्दा काम करें। अंत में आर्टिकल का निचोड़ उनके सामने रखें ताकि कहानियों और तथ्यों के आधार पर जो आपने उनके सामने पेश किया उसके आधार पर वे अपनी भी एक राय बना पाएं।
निष्कर्ष में ध्यान रहे कि जो आपका विषय है उसके अलग-अलग पहलूओं से संबंधित बातों को आप ज़रूर ब्रेकडाउन करें। ऐसा ना हो कि पाठक ने आर्टिकल पढ़ लिया बस और उसके बाद वो कुछ सोच नहीं पा रहे हैं। तो आइए शुरू करते हैं राइटिंग जर्नी YKA पर। सब्मिट करिए अपना पहला आर्टिकल। आपकी इस जर्नी में YKA के इनहाउस मेंबर्स आपको मेंटॉर भी करेंगे।