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“भारत के इतिहास में जातिय शोषण, ब्राह्मणों की घुसपैठ का नतीजा है”

आखिर दलित, आदिवासी, अन्य पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक समुदायों में आपसी एकता क्यों नहीं है? आईए इतिहास में जाकर इस गड़बड़ी को समझने का प्रयास करते हैं। भारत के इतिहास में जातिय शोषण का इतिहास तब से प्रभावित हुआ, जब से इस देश में एक खास प्रजाति ने घुसपैठ की।

हूण और कुषाण

हूण और कुषाण जैसे खूंखार लोग आए, वे भी इस अखंड भारत का हिस्सा बन गए, कारण था भारत का सम्पूर्ण रूप से बौद्धमय होना। भारत की गण व्यवस्था में जाति और प्रजाति का कोई स्थान नहीं था, बल्कि विभिन्न वंशो का साम्राज्य था। बुद्ध ने इस देश कों एकजुट करके रखा था। बुद्ध का दर्शन भी प्राचीन आदिवासी सभ्यता से प्रभावित था।

अलौकिकवाद से इतर बुद्ध का दर्शन अईश्वरवादी और आत्मवाद से रहित था। मानवतावाद और प्रकृतिवाद ने प्राचीन भारत में विशाल सभ्य, सभ्यता की स्थापना की। सिंधु घाटी की खुदाई में युद्ध के कोई भी हथियार नहीं प्राप्त हुए, इसका यही अर्थ हुआ की उस सभ्यता के लोग युद्ध प्रिय लोग नहीं थे। क़ृषि पशुपालन और व्यापार ही उनके जीवन के आधार थे, लेकिन किस कारण ऐसी महान सभ्यता नष्ट हो गई यह एक शोध का विषय बन गया।

सभ्यता नष्ट कैसे

भारत में बुद्ध सभ्यता लम्बे काल तक स्थापित रही लेकिन जब बुद्ध दर्शन में नई शाखाओं में अपना-अपना अलग स्वरूप लेने लगा तभी से अखंड भारत बिखरना शुरू हो गया। वैष्णववाद, शैववाद ने ब्राह्मणवाद को जन्म दिया।

इसी ब्राह्मणवाद ने आगे चलकर भारत कों टुकड़े-टुकड़े में विभाजित कर वर्णवाद की नींव रखी, जिसने भारत के मूलवासियों कों मानसिक और धार्मिक गुलामी में धकेल दिया। ब्राह्मणवाद ने चार वर्ण की स्थापना की। कहा जाता है की पहले वर्णवाद कर्म के आधार पर निर्धारित था लेकिन कालांतर में यह जन्मजात बन गया।

अछूत की नींव यहीं से

ब्राह्मणों ने खुद कों श्रेष्ठ घोषित किया और बाकि तीन वर्णों पर काबिज़ हो गए। अंतिम चौथा और पंचम वर्ण में पंचम वर्ण, जिसे अछूत या नीच वर्ण कहा उनके साथ पीढ़ी दर पीढ़ी अन्याय और शोषण ही होता रहा, जो अति अमानवीय था।

आज यही चतुर्थ और पंचम वर्ण आज़ाद भारत में दलित, आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग, जिसे एसटीएसी और ओबीसी, अल्पसंख्यक वर्ग भी कहते हैं। ब्राह्मणों ने इन चतुर्थ और पंचम वर्ण को लगभग 6745 जातियों में विभाजित किया, जो भारत की कुल आबादी का 97% है। कहा जाता है कि खुद को मनुष्य जाति में श्रेष्ठ कहने वाले ब्राह्मणों की संख्या भारत में केवल 3% है, तब एक बड़ा प्रश्न यह उठता है की 3% ब्राह्मणों ने भारत के 97% लोगों पर शासन या नियंत्रण कर भारत के सभी संसाधनों पर कब्जा कैसे कर लिया?

ब्राह्मण क्या वाकई 3 % हैं?

प्रतीतात्मक तस्वीर।

चलिए इस गणित कों भी देख लिया जाए कि ब्राह्मणों ने कैसे इतनी बड़ी जनसंख्या पर कब्ज़ा किया। देश में मूलवासियों की संख्या = 97×100 ÷ 6745 = 1.43% 3 % ब्राह्मणों का मूलवासियों का 1.43 % पर 1.57 % पायदान से भारी पड़ जाना ही मूलवासियों के लिए मुसीबत का सबब है।

ये 6745 एसटी, एसी, ओबीसी अल्पसंख्यक वर्ग कभी आपस में एकजुट हुए ही नहीं, जिसके जातिय एवं धार्मिक बिखराव के कारण ब्राह्मण हमेशा सफल रहा है और आगे भी सफल रहेगा। ब्राह्मण अपने सैकड़ो विघ्नतंकारी एजेंडो कों एसटी, एसी ओबीसी अल्पसंख्यक पर प्रयोग करता रहता है। ओबीसी को यह अहसास दिलाया जाता है कि वे एसटी एसी से बड़े हैं।

दूसरा सबसे बड़ा कारण एसटी, एसी ओबीसी अल्पसंख्यक का ब्राह्मण धर्म जिसे ब्राह्मणों ने हिन्दू धर्म का नाम दिया उनके अनुयायी बनाकर अन्य अल्पसंख्यक धर्मों के खिलाफ एक मज़बूत हथियार के रूप मे राजनीतिक रूप से खूब इस्तेमाल करता है।

सारे संसाधनों पर ब्राह्मणों का कब्ज़ा

देश में धार्मिक उन्माद फैलाया जाता है, जिसमें सबसे ज़्यादा बढ़चढ़ कर एसटी एसी और ओबीसी अल्पसंख्यक वर्ग के लोग शामिल होते है। भारत में इन 75 वर्षो के दरमियान कई साम्प्रदायिक दंगे हुए। मंदिर-मस्जिद के विवाद ने भी ब्राह्मणों को खूब फायदा पहुंचाया है लेकिन जब हम ठंडे दिमाग से ये सोचें की आज़ाद भारत में एसटी, एसी ओबीसी अल्पसंख्यक वर्ग के सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक अधिकारों एवं विभिन्न संसाधनों तथा आरक्षण प्रतिनिधि में उनका क्या स्थान है, तो पता चलता है की उन सारे संसाधनों पर तो 3% ब्राह्मणों एवं सवर्ण जातियों ने कब्ज़ा किया हुआ है।

उसका एक मात्र कारण उनका जातिय बिखराव है। देश की आज़ादी के पूर्व कई महापुरुष इस देश में पैदा हुए, जिन्होंने ब्राह्मणों की विघटित करने वाले वर्णवादी अमानवीय व्यवस्था से मुक्ति के लिए उन महान चिंतनकारों बुद्धिजीवीयों एवं सुधारको ने लम्बा संघर्ष किया, उन्होने बुद्ध के खोए हुए देश कों पुनः एकजुट करने का प्रयास किया।

बुद्ध, कबीर और रैदास

महामानव बुद्ध, रैदास, संत कबीर, नानक, पेरियार रामास्वामी, ज्योतिबा फुले, माता सावित्रीबा फुले और बाबा साहब अम्बेडकर ने ब्राह्मणों की जातिवादी व्यवस्था पर ज़ोरदार प्रहार किया, ताकि इस देश के मूलवासियों कों धार्मिक गुलामी से मुक्त कर सके।

वर्तमान मे कई साहसी शिक्षित युवाओं, बुद्धिजीवी, सामाजिक चिंतको द्वारा एवं नास्तिक दर्शन कों अपना आधार मानकर ब्राह्मणों के धार्मिक जातिवाद की ज़ंजीर को त्याग कर कई सवर्ण एसटी, एसी और ओबीसी अल्पसंख्यक वर्ग के क्रान्तिकारी विचार के लोगों ने अलग अलग मंचों पर आकर अपनी वैज्ञानिक सोच, जबरदस्त तर्क एवं भारत के असली इतिहास कों खंगाल कर ब्राह्मणों के छद्म मान्यतावादी इतिहास एवं फर्ज़ी खोखले धर्मों की पोल खोलने का कार्य आरम्भ कर दिया है।

एसटी एसी ओबीसी और अल्पसंख्यक एकता जिंदाबादजय भीम! जय बिरसा, सिद्धू -कांहू अमर

नोट- लेखक द्वारा आंकड़े Rational world की एक डिबेट से लिए गए हैं।

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