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मैं कश्मीरी पंडित हूं

शिकारा कश्मीरी पंडित

मुझसे मेरा दर्द ना पूछाे, मैं कश्मीरी पंडित हूं

अपने घर में मारा गया

टुकड़ो टुकड़ो में खंडित हूं।  

 

 बेदर्द हवाओं ने देखा, घाटी में धाेखा खाया हूं          

 खामाेश खड़ी थी दुनिया, अपनाें की लाशें लाया हूं।        

शाेर वक़्त में ज़िन्दा है, चीत्काराें से मैं मंडित हूं            

मुझसे मेरा दर्द ना पूछाे, मैं कश्मीरी पंडित हूं

याद है मुझको ज़ुल्म पुराना, चुपचाप खड़े थे लाेग,     

लुट रही थी अस्मत, मरी थी मेरी माँ की काेख।         

 हमें बचाने काेई ना आया, खुद के वतन में दंडित हूं        

 मुझसे मेरा दर्द ना पूछाे, मैं कश्मीरी पंडित हूं ।   

सबने अकेला छाेड़ दिया, मैं भी देश का हिस्सा हूं    

 भटक रहा हूं तन्हाई में, नहीं भूला कोई किस्सा हूं।

 छिनी विरासत मेरी दिलाओ, मैं धाेखे से अचंभित हूं    

  मुझसे मेरा दर्द ना पूछाे, मैं कश्मीरी पंडित हूं।    

अस्तित्व अगर पहचानाेगे तो दूर दुर्बुद्धि भागी है     

 हम संयम के पालक वरना हमसे क्या बाकी है?       

कर दाे मेरा सब कुछ संचय, मैं ईश्वर में आनंदित हूं,     

  मुझसे मेरा दर्द ना पूछाे, मैं कश्मीरी पंडित हूं।    

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