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पंचायत 2: “हम सबके हिस्से की गाँव-देहात वाली लड़ाई भूषण अकेले लड़ रहा था”

पंचायत 2 रिव्यू

सोच ही रहा था कि लास्ट वीकेन्ड क्या किया जाए? इतने ही में अमेज़न प्राइम पर एक-एक करके पंचायत सीज़न-2 के आठों एपिसोड दो दिन में निपटा दिए। भूषण के किरदार पर अभी हाल में हमने YKA पर पढ़ा कि भूषण भाई रियल लाइफ के हीरो हैं। बिल्कुल सही बात है कि हमारे समाज में सिस्टम से सवाल पूछने वाला होना चाहिए।

गाँव देहात और भूषण

खासकर गाँव देहात में यदि कोई ग्रामीण, प्रखंड कार्यलय या पंचायत भवन जाता है और गलती से पंचायत सचिव से कुछ पूछने की हिमाकत कर दी उसने, तो उसे किस तरह से ज़लील किया जाता है यह सबको पता है, खासकर उस पीढ़ी को जो गाँव के जीवन में पली-बड़ी हो।

वेब सीरीज़ गाँव-देहात को लेकर बनी है, तो मैं गाँव की ही बात करूंगा। उदाहरण के तौर पर जब पंचायत द्वारा एक जीप में नशा मुक्ति अभियान का प्रचार किया जाता है और नशे में धुत्त ड्राइवर गाड़ी ठोक देता है और वहीं सड़क किनारे गाड़ी खड़ी हो जाती है, तब किस कदर भूषण एकदम चौड़ा होकर पंचायत सचिव से कहता है कि सड़क किसी के बाप की है क्या? तो उन लोगों को वहां से ठेलकर गाड़ी हटानी पड़ती है और भूषण फिर अपनी बाइक लेकर निकलता है।

भूषण और हमारे सरकारी दफ्तरों का फ्रस्ट्रेशन

पंचायत 2 का एक दृश्य।

यह दृष्य देखकर हममें से बहुत से लोग खुश हो गए थे, क्योंकि सरकारी दफ्तरों में ज़लील होने के बाद हम सबके हिस्से में जो उदासी आती है, भूषण उस उदासी को कुछ पल के लिए ही सही मगर जीत में तब्दील कर रहा था।

हम जब जब भ्रष्ट या जनता का काम नहीं करने वाले सरकारी कर्मचारी पर चौड़े होते हैं, तो दबी ज़ुबान हमारी बत्तीसी निकल आती है और भूषण उसी बत्तीसी का कारण बन रहा था।

सीरीज़ की एक खास बात थी और वो यह कि गाँव वालों और पंचायत भवन के कर्मचारियों के बीच तमाम असहमतियों के बावजूद सब कुछ कूल था। एक ग्रामीण जब अपनी बकरी को ढूंढते हुए पंचायत भवन पहुंचा तो दिखावटी फटकार के बाद उसे घंटों बैठाकर सीसीटीवी फुटेज चेक करने दिया गया और अंत में बकरी मिल भी जाती है।

प्रधान और भूषण की पत्नी की झड़प

जबकि प्रधान मंजू देवी (एक्ट्रेस नीना गुप्ता) और भूषण की पत्नी की चप्पलें आपस में बदल जाने पर हंगामा खड़ा करने जब भूषण पंचायत भवन पहुंचता है और सीसीटीवी फुटेज दिखाने को कहता है, तो उसके सामने ही फुटेज डिलीट कर दी जाती है, यह वाक्या थोड़ा नकली ही लगता है, जो कि रियल लाइफ से बिल्कुल अलग है।

एक वाक्या तो बड़ा ही फनी है। वो यह कि भूषण एक दिन देख लेता है कि बृज भूषण (एक्टर रघुवीर यादव) यानि कि प्रधान पति, पंचायत सचिव अभिषेक त्रिपाठी (एक्टर जितेन्द्र कुमार) को कद्दू दे रहा है और इसे लेकर भी वह बवाल खड़ा कर देता है।

कद्दू और पंचायत सचिव का रिश्ता

पंचायत 2 में पंचायत सचिव (अभिषेक त्रिपाठी)

यहां बार-बार पंचायत सचिव को एहसास दिलाता है कि आप कैसे मुंह खोलेंगे प्रधान पति के खिलाफ? ‘कद्दू जो खाते हैं’ कहकर भूषण पंचायत सचिव को ज़लील करता ही रहता लेकिन अफसोस कि आज के दौर में अभिषेक त्रिपाठी जैसे पंचायत सचिव को कद्दूरुपी उपहार सिर्फ प्रधान से ही नहीं मिलते, बल्कि गाँव देहात में रहने वाले तमाम लोग मजबूरी में अपना काम निकलवाने के लिए कभी उन्हें कद्दू, तो कभी मूली तो कभी कटहल तो कभी ताज़ी हरी सब्ज़ियां भेंट करते हैं और इन सबके बीच खस्सी, मुर्गा और अंडे के तो क्या ही कहने।

पूरी सीरीज़ में गाँव वालों और प्रधान के बीच तमाम नोंकझोंक के बीच मुहब्बत के किस्से कई हैं। चाहे वो साथ में बैठकर ठंढी बियर पीने की बात हो या शराबी ड्राइवर को नशे से उतारने के लिए जले हुए चावल के साथ दाल खिलाने की बात हो।

उप प्रधान प्रहलाद (फैसल मलिक)

उप प्रधान प्रहलाद (एक्टर फैसल मलिक) के तो क्या ही कहने। किसी भी कोने से आप पकड़ नहीं सकते कि वो एक्टिंग कर रहे हैं। वहीं, प्रधान जी की बेटी रिंकी (एक्ट्रेस सानविका) का किरदार काफी मैच्यॉर लगा। स्लो मोशन में सचिव जी के साथ उनकी मुहब्बत की गाड़ी रफ्तार पकड़ने ही वाली थी कि आठवां एपिसोड समाप्त हो जाता है।

हमें सिर्फ समाज में भूषण ही नहीं चाहिए। भूषण जितना ज़रूरी है, उतना ही वो ग्रामीण व्यक्ति भी, जिसे भूषण तब प्रधान के खिलाफ भड़ाकाकर खेत में शौच के लिए भेजता है, जब गाँव में डीएम ओडीएफ की जांच के लिए आती हैं। वो गरीब ग्रमीण भी इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि सच और झूठ की परख उसे है।

जब पंचायत सचिव के सहायक विकास कुमार से लैटरीन का शीट गिरकर टूट जाता है, तब वह मिस्त्री को समझाता है कि क्या कर सकते हैं बताओ? उनकी भी गलती नहीं ना है। वो तो गिरकर टूट गया।

सीख की ज़रूरत हम सभी को

प्रधान जी (प्रधान पति, बृज भूषण) भी उतने ही ज़रूरी हैं जितने बाकी के किरदार। यूं लगता है कि प्रधान जी के किरदार को बहुत बारिकी से गढ़ने की कोशिश की गई है। जब बात आती है गलत लड़के के साथ अपनी बेटी की शादी ना करने की, तो रिश्ता तोड़ने में भी वो देर नहीं करते हैं और जब पंचायत सचिव अभिषेक त्रिपाठी के लिए विधायक जी से लड़ने की बात आती है, तब बगैर आगे-पीछे सोचे उन्हें हड़काकर भी आ जाते हैं।

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि एक पंचायत भवन और वहां के लोगों को लेकर जो क्रूर छवि हमारे ज़हन में बनी होती है, वो सब नहीं दिखाया गया है। देश के तमाम पंचायत भवनों में मौजूद पंचायत सचिवों और पंचायत के तमाम मुखियाओं को इन सब किरदारों से सीखने की ज़रूरत है।

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