Site icon Youth Ki Awaaz

झारखंड के इस गाँव में आज़ादी के बाद से अभी तक नहीं पहुंची है बिजली

No Electricity In This Village Of Jharkhand

No Electricity In This Village Of Jharkhand

एडिटोरियल नोट: इस आर्टिकल के बाद इस गाँव में ट्रांसफ़ॉर्मर लगा दिया गया। आर्टिकल के अंत में देखिए विडीओ

देशभर के लगभग सभी राज्यों में बीते कुछ महीनों से बिजली की समस्या देखने को मिल रही है। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (CEA) के आंकड़ों के मुताबिक, देश के कोयले से चलने वाले 150 पावर प्लांट में से 86 में कोयले का स्टॉक काफी कम हो गया है।

इन सबके बीच झारखंड के दुमका ज़िले के मसलिया प्रखंड के आमगाछी गाँव की समस्या बेहद अजीब है। ग्रामीणों का कहना है कि आज़ादी से लेकर अब तक वे गाँव में बिजली आने के इंतज़ार में हैं। कुछ वर्ष पहले गाँव में ट्रांसफॉर्मर भी लगाया गया, बिजली के खंभे भी लगाए गए लेकिन बिजली नहीं आई।

विधायक से भी नहीं मिल रही कोई मदद

दुमका के विधायक बसंत सोरन, फोटो साभार- सोशल मीडिया

कुछ रोज़ पहले जब ग्रामीणों ने संबंधित विभाग में बिजली के लिए बात की तो उन्हें कहा गया 50-50 रुपये हमें दें तो बिजली आ जाएगी गाँव में। ग्रामीणों का कहना है कि हम इतने गरीब हैं, ऐसे में पैसे कहां से दें?

गौरतलब है कि दिसंबर 2021 में ज़िले के विधायक बसंत सोरेन ‘आपके अधिकार, आपकी सरकार’ कार्यक्रम के तहत सुग्गापहाड़ी पंचायत पहुचे थे, जहां ग्रमीणों ने बिजली की समस्या को लेकर उन्हें लिखित आवेदन दिया था मगर अब तक गाँव में बिजली नहीं आई है।

ग्रामीणों से बात करने पर उन्होंने कहा कि अगर जल्द-से-जल्द समस्या का समाधान नहीं होता है, तो वे सड़क पर उतरकर आंदोलन करेंगे और ज़रूरत पड़ी तो विधानसभा चुनाव का बहिष्कार भी करेंगे।

मसलिया प्रखंड के बीडीओ ने क्या कहा?

शोभा मात्र हैं बिजली के खंभे और तार।

हमने जब इसी मामले पर मसलिया प्रखंड के बीडीओ पंकज कुमार से बात की तो उन्होंने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि दुमका बिजली ऑफिस में संपर्क करें। जब हमने उनसे पूछा कि कब तक गाँव में बिजली आने की संभावना है, तो उन्होंने कहा कि हम कुछ नहीं कह सकते हैं, बिजली विभाग से बात करें। उन्होंने ग्रमीणों द्वारा बिचौलियों पर बिजली के लिए 50-50 मांग किए जाने की बात को भी नकार दिया।

आपको बता दें कि मसलिया प्रखंड के सुग्गापहाड़ी पंचायत के अंतर्गत आने वाला यह गाँव काफी ऊंचाई पर पहाड़ में स्थित है, जहां पहाड़िया और संताल आदिवासी लोग गरीबी में गुज़र-बसर करने पर मजबूर हैं। गाँव में पांच से अधिक टोला है, जिनके बीच की दूरी काफी अधिक है।

पूरे गाँव में करीब 80 घर हैं। ग्रामीणों की मानें तो आज़ादी के 75 साल बाद और झारखंड गठन के 22 वर्ष बाद भी गाँव में एक बार भी लोगों ने बिजली की रौशनी नहीं देखी मगर हां दस वर्ष पहले ट्रांसफॉर्मर, पोल और तार ज़रूर लगा दिए गए जो कि शोभा मात्र ही हैं।

बिजली ठीक करने के बदले मांगे गए थे पैसे

बिजली की मांग को लेकर गाँव में एकजुट हुए ग्रामीण।

ग्रामीणों की मानें तो आठ वर्ष पूर्व भी उनसे बिजली ठीक करने के लिए 50-50 रुपये मांगे गए थे लेकिन गरीबी के कारण वे पैसे नहीं दे पाए और बिजली चालू नहीं की गई।

अभी स्थिति यह है कि बिजली की हाई टेंशन तार टूट जाने के कारण ग्रमीणों को तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है और साथ ही पोल भी गिर गया है। ग्रामीणों का कहना है कि हर चुनाव के समय नेता गाँव में वोट मांगने आते हैं और आश्वासन देते हैं कि जीतने के बाद आपके गाँव में बिजली चालू कर दिया जाएगा और फिर वो वादा कभी पूरा नहीं होता।

कुछ ग्रामीण सोलर प्लेट से मोबाइल चार्ज करते हैं और जिनके पास सोलर प्लेट नहीं है, वे मोबाइल पहाड़ के नीचे गाँव में पैसे देकर चार्ज करवाते हैं। कुछ ग्रामीण सोलर प्लेट से बैटरी भी चार्ज करते हैं और रात्रि में इस चार्ज बैटरी से LED लाइट जलाते हैं।

इसी लाइट से रात्रि में बच्चे पढ़ाई करते हैं लेकिन LED लाइट को एक बार चार्ज करने पर मात्र डेढ़ से दो घंटा ही चलता है। गाँव में बिजली नहीं होने के कारण रात्रि और शाम में खाना आदि बनाने में भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। रात्रि और शाम को सांप, बिच्छू का भी भय बना रहता है। जिस ग्रामीण के पास सोलर प्लेट और बैटरी नहीं है, वे डिबिया से काम चलाते हैं।

Exit mobile version