भारत में आकड़ो के अनुसार मात्र 5.6 फीसदी लोग ही कंडोम का इस्तेमाल करते हैं। तमाम सरकारी प्रयासों के बाद भी भारतीय पुरुषों में कंडोम के इस्तेमाल को लेकर मात्र दो फीसदी जागरूकता आई है, जिसके कारण अनचाहे गर्भ ठहर जाने के कारण महिलाओं को मौत के दहलीज़ तक पहुंचने का खतरा उठाना पड़ता है।
हाल ही में आई फिल्म ‘जनहित में जारी’
भारत की इस सामाजिक सच्चाई को निर्देशक ओमंग कुमार ने नुसरत भरुचा, विजय राय और अन्य कलाकारों के साथ गुदगुदे मनोरंजन भरे अंदाज़ में फिल्म “जनहित में जारी” के रूप में प्रस्तुत किया है। फिल्म जनहित में जारी भारत में कंडोम के इस्तेमाल सीमित होने के कारण महिलाओं की ही नहीं बल्कि देश की कई समस्याओं को एक साथ सतह में लाने का काम किया है। वह भी गुदगुदे अंदाज़ में।
जो कभी पूरी कहानी की यूएसपी लगती है, तो कभी कहानी के भटकाव का कारण। नुसरत भरुचा और विजयराज ने बहुत हद तक पूरी कहानी को अपने कंधे पर टिका कर रखा है।
क्या कहती है जनहित में जारी की कहानी?
मनोकामना त्रिपाठी(नुसरत भरुचा) अपने पैरो पर खड़ी होकर आत्मनिर्भर होना चाहती है पर उसके सर पर शादी करने की तलवार लटक रही है। डबल एम.ए. होने के बाद भी नौकरी नहीं मिलने के बाद घर के खटराग से बचने के लिए कंडोम सेल्स गर्ल की नौकरी कर लेती है।
रूढ़िवादी विचारों को मानने वाला ससुर(विजय राय) तो तलाक तक की नौबत तक पहुंच जाता है। वहीं, कंडोम सेल्स गर्ल का काम करते हुए मनोकामना त्रिपाठी को पता चलता है कि कंडोम के इस्तेमाल के बारे में पुरुषों को ही नहीं महिलाओं को भी जागरूक करना कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी है और इससे अनचाहे गर्भ के कारण महिलाओं के मौत के मुंह से बचाया जा सकता है।
इसके बाद वह घर-परिवार, पति-ससुर, समाज सबों से भिड़ने और जागरूक करने की ठान लेती है।
कंडोम की वजह से रिश्ते बच पाते हैं या नहीं?
ससुर उसका तलाक कराने में कामयाब हो पाते है या नहीं? मनोकामना लोगों को जागरूक करने में कामयाब हो पाती है या नहीं? मनोकामना कैसे जानती है कि वह कितनी बड़ी जिम्मेदारी का काम कर रही है? इन सब सवालों के लिए आपको जनहित में जारी देखनी होगी और गुदगुदाते हुए मनोरंजन के सफर की सवारी करनी पड़ेगी।
क्या खास है जनहित में जारी में?
पूरी कहानी वनलाइनर्स और कामिक पंच के साथ सेफ सेक्स, गर्भपात, गर्भनिरोध जैसे विषयों को गुदगुदाते हुए हैंडिल करती है। मंध्यातर के पहले कहानी बड़ी तेज़ भागती है पर उसके बाद कहानी अपनी रफ्तार पर ब्रेक लगाकर तमाम सवालों से उलझती-जूझती है, जहां कहानी थोड़ी कसी जा सकती थी।
नुसरत का किरदार एक संवाद में कहता है कि “लोग कंडोम पर बात नहीं करना चाहते ,इसलिए आज हम 40 से 140 करोड़ हो चुके हैं।”
जनसंख्या नियंत्रण पर भारतीय समाज की अज्ञानता के बीच में एक साथ कई समस्या को जिस तरह कहानी में पिरोया गया, वही जनहित में जारी को खास बना देती है। अभिनय के मामले में विजयराय, नुसरत, विजेंन्द्र काला ने काफी प्रभावित करते हैं। अनद सिंह और परितोष त्रिपाठी भी रोचक रहे हैं। वहीं लंबे समय के बाद टीनू आंनद को पर्दे पर देखना अच्छा लगता है। संगीत इस फिल्म का कमज़ोर पक्ष है वो और बेहतर हो सकता था।
क्यों देखें जनहित में जारी?
तमाम सरकारी प्रयासों, एनजीओ और समाज-सेवी संस्थाओं के माध्यम से कंडोम के इस्तेमाल को लेकर देशभर में कोशिश होती रही है। परंतु, सफलता अभी तक आंशिक ही मिल सकी है। फिल्मों के माध्यम से कई संवेदनशील विषयों पर लोगों को जागरूक करने का प्रयास हाल के सालों में शुरू किया गया है, यह सराहनीय है।
इस लिहाज़ से फिल्म जनहित में जारी महिलाओं से जुड़े जिस महत्वपूर्ण सवाल को सतह पर लाने का प्रयास कर रही है, यह फिल्म ज़रूर देखी जानी चाहिए। गोया, इस तरह की फिल्में सामाजिक संदेश और जागरूकता फैलाने का काम करती हैं इसलिए इनको टैक्स फ्री कर दिया जाना चाहिए ना कि काश्मीर फाइल्स और सम्राट पृथ्वीराज! बहुत दूर तक नहीं पर कुछ हद तक तो सफलता इन प्रयोगों से पाई ही जा सकती है।