हमारे देश की भावी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जब झारखंड में राज्यपाल थीं, तब झारखंड में कई ऐसे आदिवासी विरोधी कार्य झारखंड सरकार के द्वारा किए गए, जिस पर द्रौपदी मुर्मू चुप रहीं।
माओवादी बताकर फर्ज़ी एनकाउन्टर
मसलन, द्रौपदी मुर्मू के राज्यपाल रहते ही झारखंड में आदिवासियों की ज़मीन के सुरक्षा कवच के रूप में मौजूद सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन की कोशिश की गयी, जिसके खिलाफ व्यापक आंदोलन की शुरुआत हुई और सरकार को अपने पैर पीछे खींचने पड़े।
द्रौपदी मुर्मू के झारखंड के राज्यपाल रहते कई आदिवासियों को माओवादी बताकर फर्ज़ी मुठभेड़ में मार दिया गया, सैकड़ों आदिवासियों को नक्सली बताकर जेल में बंद कर दिया गया। भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल लाकर आदिवासियों की ज़मीन को हड़पने की शुरुआत हुई।
पत्थलगड़ी आंदोलन और देशद्रोह
पत्थलगड़ी आंदोलन के वक्त हज़ारों आदिवासियों समेत कई आंदोलनकारी बुद्धिजीवियों पर देशद्रोह के मुकदमे थोपे गए।
मोमेंटम झारखंड के नाम से इसी समय झारखंड की ज़मीन को देशी-विदेशी पूंजीपतियों को सौंपने के लिए 210 देशी-विदेशी कम्पनियों के साथ एमओयू किए गए थे।
मज़दूर यूनियन इन्हीं के कार्यकाल में प्रतिबंधित
कई जगह आदिवासियों की ज़मीन जबरन छीनकर पूंजीपतियों के सौंप दी गयी। इस दौरान कई विस्थापन विरोधी आंदोलन पर पुलिस की गोलियां चलीं और देश में पहली बार किसी रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन (मजदूर संगठन समिति) को इनके ही कार्यकाल में झारखंड सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया! लेकिन ये चुप रहीं।
यह फेहरिस्त और लम्बी हो सकती है, इसलिए द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति उम्मीदवार या भावी राष्ट्रपति होने पर लहालोट होने वालों से गुज़ारिश है कि सिर्फ इनके आदिवासी और महिला होने पर ना जाकर इनकी विचारधारा और इनके कार्यों पर भी नज़र दौड़ाएं।
बाकी विपक्ष के संघी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के कुकर्मों की भी लम्बी लिस्ट है। सबसे बड़ी बात कि हमारे देश में राष्ट्रपति पद केन्द्र सरकार के रबड़ स्टांप के अलावा और कुछ भी नहीं होता है!