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“मस्जिद को तोड़ने से इस्लाम खत्म नहीं हो जाएगा”

gyaanvapi मस्जिद

ज्ञानवापी मस्जिद

इस देश में हाल के कुछ वर्षों में मस्ज़िद और मंदिर विवाद चरम पर हैं। इनके कई कारण है, जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे। जबसे इस देश में दक्षिणपंथी राजनीति का उदय हुआ है, तबसे तथाकथित रूप से एक समुदाय विशेष को टारगेट पर लेकर कई तरह के हथकंडे से इस देश में उन्हें निशाना बनाया जा रहा है ।

भारत का इतिहास और संस्कृतियां

भारत की संस्कृति दुनिया के सबसे पुरानी संस्कृति में से एक है। ये सबसे पहले की संस्कृति है “वैदिक संस्कृति” जो हज़ारों साल पुरानी संस्कृति है। इनका अपना विधि विधान है और इनकी अपनी पूजा/ उपासना की पद्धति है, जिनमें त्रिदेव (शिव, ब्रह्मा, विष्णु) प्रमुख हैं। इसके अलावा हज़ारों देवी-देवताओं की उपासना की जाती है। धार्मिक पुस्तकों में ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, सामवेद तथा 108 उपनिषद है। रामचरितमानस एवं गीता महाकाव्य ग्रन्थ है ।

इसके पश्चात बौद्ध संस्कृति का उदय हुआ, जिसमें महात्मा बुद्ध के विचारों को आत्मसात करके उनकी उपासना की जाती है।इसके पश्चात जैन संस्कृति का दौर प्रारम्भ हुआ। 24 वें जैन तीर्थंकर महावीर के विचारों पर उपासना की जाती है । इसके पश्चात सिख संस्कृति का उदय हुआ, जिसमें गुरु नानक देव जी के विचारों पर उपासना की जाती है।

अंत में भारत में इस्लाम की संस्कृति का विकास हुआ, जिसमें एक ईश्वर(अल्लाह) की उपासना और कुरान को धार्मिक पुस्तक एवं प्रार्थना स्थल(मस्ज़िद) को स्थापित किया गया। मुहम्मद साहब(स०अ०व०) को अंतिम पैगम्बर (दुत) माना गया।

भारत को तोड़ने का प्रयास

प्रतीतात्मक तस्वीर।

भारत में जब संस्कृति इतनी पुरानी है, तो ज़ाहिर सी बात है कि यहां की मिट्टी में कई रहस्य दफन है, लेकिन इसका कदापि अर्थ ये नहीं है कि आज की वस्तुस्थिति को नष्ट करके आदिकाल की चीज़ों को पुनर्जीवित किया जाए। ये संभव ही नहीं है लेकिन अगर इस तरह का प्रयास कोई करता है तो वह भारत को तोड़ने का प्रयास कर रहा है और इस देश को अकारण ही गृह युद्ध की तरफ धकेल रहा है। जो भारत के कदापि हित में नहीं है।

अब बात आती है, आज की भारत की तो आज कई धर्मों के उद्गम स्थल भारत है और कई धर्मों का यहां निरन्तर विकास हुआ है सभी धर्मों के अनुयायी अपने लोकतांत्रिक तरीके से अपने धर्म की उपासना करते हैं।

आखिर क्यों है विवाद?

इस देश में आरएसएस और इनके कई आनुषंगिक संगठन निरंतर अपने प्रयास से भारत के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक व्यवस्था को “हिन्दू राष्ट्र” की ओर ले जाने का अथक प्रयास कर रहे हैं, जिनका एक दुष्परिणाम मंदिर-मस्ज़िद विवाद है। पहले बाबरी मस्जिद को विध्वंस करके राम मंदिर का ख्वाब पूरा किया है ( हालांकि यह माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद संभव हुआ है ) । उसके बाद ज्ञानव्यापी मस्ज़िद में शिवलिंग के मुद्दे पर एक नया विवाद खड़ा किया जा रहा है।

ऐसे ही इस देश में कई मस्ज़िद है, जिसको मंदिर में बदलने का अथक प्रयास किया जा रहा है, जिसमें काशी के साथ मथुरा प्रमुख रूप से चिन्हित किया गया है। इस तरह के कार्यों को अंजाम देने के लिए एक लॉबी तैयार की जाती है, जिसमें राजनीतिक दल, राजनेता, संघ के विचारक, साधु संत, वकील, पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों, पूर्व न्यायविदों, पूर्व पुरातत्व विभाग के अधिकारियों इत्यादि प्रमुख रूप से हैं, जिनका काम है कि इस तरह के मुद्दे को अंजाम तक ले जाया जाए।

लॉबी से फायदा मगर मन्दिर से नहीं

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर।

राम मंदिर से भले आम आदमी का कुछ भला हुआ न हो लेकिन लॉबी में रहने वाले प्रत्येक लोगों को अत्यधिक मात्रा में लाभ हुआ है। चाहे व्यक्तिगत लाभ हो या राजनीतिक लाभ हो या अन्य लाभ। राम मंदिर के ट्रस्ट पर ही भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं । हिंदू धर्म का इतिहास बेहद खूबसूरत और पुराना है, लेकिन हिंदुत्त्व आरएसएस और उनके आनुषंगिक इकाई से जुड़े हुए लोगों की एक नई सोच है, जो इस देश को हिन्दू राष्ट्र मानते हैं।

हिन्दू राष्ट्र में इतना विश्वास क्यों?

चाहे वह गुरु गोलवलकर हो, चाहे सावरकर हो, चाहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी हो, चाहे पंडित दीन दयाल उपाध्याय हो, इत्यादि ने इस देश को लोकतांत्रिक व्यवस्था से ज़्यादा हिंदू राष्ट्र में अधिक विश्वास किया है और इन्हीं के सोच के साथ आज इनके विचारों पर इनके आनुषंगिक इकाई और संगठन कार्य कर रहे हैं।

हिंदू धर्म जहां “वसुधैव कुटुंबकम” की बात करता है, जहां सारे विश्व को परिवार मानता है, इसलिए इस देश अन्य धर्मों और पंथों का विकास हुआ। वहीं हिंदुत्त्व की परिभाषा अलग ही है । एक राष्ट्र एक धर्म, एक राष्ट्र एक समुदाय, एक राष्ट्र एक भाषा, एक राष्ट्र एक धार्मिक स्थल, समान नागरिक सहिंता इत्यादि जो भारतीय संविधान के लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरित है इसकी बात करता है ।

पूजा/ उपासना की स्थल के स्वरूप को बदल देने से धर्म समाप्त नहीं हो जाता है।

क्या मन्दिर/मस्ज़िद धर्म को खत्म कर सकते हैं?

इस देश में अगर मस्ज़िद तोड़कर मंदिर बना दिया जाये या मंदिर तोड़कर मस्ज़िद बना दी जाये तो क्या इस क्रिया से इस्लाम धर्म या सनातन धर्म समाप्त हो जाएगा? बिल्कुल नहीं, जिन्हें नहीं पता है तो उन्हें मेरा आग्रह है कि भारत की संस्कृति का विस्तारपूर्वक अध्ययन करें और देखें कि आदिकाल से लेकर आज तक किसी समुदाय के धर्म स्थलों की रक्षा और उनकी देखरेख हमेशा दूसरे समुदाय के लोग ही करते हुए आ रहे हैं और भारत में ऐसे उदाहरण कोने-कोने में शामिल हैं।

उत्तराखंड में जब बाढ़ आई थी, तो सिख समुदाय ने गुरुद्वारा को मुस्लिम समुदाय को नमाज़ अदा करने के लिए खोल दी थी । नवादा(बिहार) में एक मस्जिद ऐसी है कि उसका पूरा रख रखाव, वहां के हिन्दू समुदाय कर रहे हैं और आज तक वो मस्ज़िद सुरक्षित है। माननीय न्यायालय का भी हाल में ताजमहल विवाद में एक सार्थक टिप्पणी थी कि पहले इतिहास का अध्ययन करो फिर न्यायालय की तरफ़ इस विषय पर आना ।

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