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इस रीजनल फ़िल्म का हिट होना छत्तीसगढ़ी सिनेमा के लिए बेहद ज़रूरी

भूलन कांदा

भूलन कांदा छतीसगढ़ी फिल्म

राष्ट्रीय फ़िल्म पुरुस्कार जीत चुकी छत्तीसगढ़ फिल्म ‘भूलन : द मेज़’ प्रदर्शन के लिए तैयार है। ये फिल्म 27 मई को छत्तीसगढ़ के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने वाली है। फिल्मकार मनोज वर्मा की यह फ़िल्म संजीव बक्शी के उपन्यास ‘भूलन कांदा’ पर आधारित है। इस फिल्म को कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में भी अवार्ड मिल चुके हैं। कोलकाता के एक फिल्म फेस्टिवल में इस फिल्म ने दर्शकों की खूब वाह-वाही लूटी थी।

कैसे हुई शुरुआत?

फिल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे अक्सर अपने कॉलम्स में भूलन कांदा का ज़िक्र किया करते थे। फिल्म के निर्देशक मनोज वर्मा इस फिल्म को बड़े लेवल पर बनाना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने कई दफा मुंबई के चक्कर लगाए। आखिरकार जब बात नही बनी, तब उन्होंने इसे खुद प्रोड्यूस करने का निर्णय लिया। इस फिल्म के स्क्रीनप्ले को तैयार करने में उन्हें ढाई साल का वक़्त लगा।

फिल्म की शूटिंग महुआभाठा नामक गाँव में 2016 में शुरू हुई थी। 2017 में फिल्म का आखिरी शेड्यूल खत्म होते ही पोस्ट प्रोडक्शन का काम शुरू किया गया था। बॉलीवुड के कलाकारों के अलावा स्थानीय कलाकारों को भी एक ऐसी फिल्म में काम करने का मौका मिला जो लीक से हटकर है। निर्देशक मनोज वर्मा इस फ़िल्म को छत्तीसगढ़ के बाहर भी प्रदर्शित करना चाहते थे और इसी प्रयत्न में फिल्म को पर्दे तक आने में बहुत समय लग गया। खास बात ये भी है कि फिल्म का टाइटल ट्रैक कैलाश खैर ने गाया है।

आदिवासियों की कहानी कौन देखेगा?

इसी वर्ष आई ‘द कश्मीर फाइल्स’ को पूरे देश के साथ ही छत्तीसगढ़ में भी पसंद किया। उन लोगों को भी टिकट खरीदते देखा गया जो फिल्मों के शौकीन नही हैं। सवाल यह है कि क्या कश्मीर फाइल्स देखने वाली छत्तीसगढ़ की यही जनता आदिवासियों की कहानी देखने जाएगी?

कबीर सिंह और केजीएफ जैसी फिल्में देखने वाले छत्तीसगढ़ के युवा अक्सर कहते हैं कि यहां की फिल्मों में कंटेंट की कमी होती है, अब जबकि उन्हें भूलन कांदा के रूप में मेनस्ट्रीम सिनेमा से हटकर बनी एक फिल्म देखने का मौका मिलेगा तब वे क्या निर्णय लेंगे?

क्या है भूलन : द मेज’

‘भूलन : द मेज’ भी सवाल करती है और फिल्म की कहानी भी न्याय व्यवस्था पर सवाल करती है। फिल्म के कई सीन एवं संवाद लोगों को सोचने पर मजबूर कर देंगे। इस फिल्म का पर्दे पर कमाई करना बहुत ज़रूरी है। साथ ही दर्शकों को इस तरह की फ़िल्मों का स्वागत करना चाहिए, जिससे छालीवुड के दूसरे फिल्मकारों को भी इसी तरह की सामाजिक सोद्देश्यता पर आधारित फिल्म बनाने की प्रेरणा मिले।

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