धार्मिक भेदभाव पर मुल्क, जेंडर भेदभाव पर थप्पड़ और जातीय भेदभाव पर आर्टिकल 15 जैसी कहानी बनाने के बाद, भारत में नस्लीय भेदभाव पर अभिनव सिन्हा ने “अनेक” की कहानी के माध्यम से भारत की सेवन सिस्टर्स (भारत की सात बहनें ; मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, असम, मणिपुर और मिज़ोरम) कहे जाने वाले राज्य नार्थ-ईस्ट के बारे में वो सब कहने का प्रयास कर रहे हैं, जिसको आज से पहले हिंदी सिनेमा में बहुत कम फिल्मकारों ने कहने का प्रयास किया है और यह आसान काम तो कतई नहीं है? क्योंकि इन सात राज्यों के समस्याओं को एक कहानी में पिरोना बहुत बड़ी चुनौती है।
अभिनव सिन्हा की कहानी कला
अभिनव सिन्हा में अपनी कहानी के माध्यम से बहुत सारी अनकहीं परतों को सतह पर लाने का काम किया है, जो विविधता में एकता के हमारे गर्व को इंडिया शब्द के राष्टवाद में सिसकता हुआ छोड़ ही नहीं देता है चिकी, चाइनिज़ कहकर बार-बार उनके आत्मसम्मान को कुरेदता रहता है।
बेशक, सेवन सिस्टर्स कहे जाने वाले राज्यों में वर्षों से अलगाववादी राजनीति सक्रिय रही है। कुछ सालों से थोड़ी-बहुत शांति के बाद आज भी वह सक्रिय है। अनुभव ने अपने तरीके से वहां की समस्याओं को बताने के लिए अपनी कहानी में जोशुआ(आयुष्मान खुराना) नाम के एक अंडर कवर एजेंट की भूमिका निभाई है, जिसने अपने तरीके से छुप-छिपाकर एक अलगाववादी हस्ती को तैयार किया है।
कहानी में खास क्या?
फिल्स में अंडर कवर एजेंट जोशुआ सरकार के लिए अलगाववादी ताकतों के साथ मिलकर एक शांति वार्ता की तैयारी कर रहा है पर जोशुआ के छद्म अलगाववादी हस्ती के चेहरे का इस्तेमाल करके कोई अलगाववादी संगठन शांति वार्ता को विफल करना चाहता है। दोनों में से कौन सफल हो पाता है? शांति वार्ता हो पाती है या नहीं, एक मात्र हिरोईन के चरित्र को निभा रही एडो(आंद्रिया केवीचुसा) भारत की तरफ से बॉक्सिंग खेल पाती है या नहीं? क्योंकि उसका पिता अलगाववादी विचारधारा का है और वो भारत के लिए विश्व स्तर पर मुक्केबाजी करना चाहती है।
एडो और जोशुआ के बीच रोमांटिक लगाव लगता है, जैसे ठूसने की कोशिश की गई है, इसकी ज़रूरत नहीं थी। जब एडो को पता चलता है कि जोशुआ क्या है? क्या वह जोशुआ को अपना पाती है? यह सब जानने के लिए अनुभव सिन्हा जो कहानी अनेक में सुना रहे हैं, वह देखनी पड़ेगी।
क्यों देखनी चाहिए अनेक?
पूरी कहानी सुनाते समय अनुभव सिन्हा आयुष्मान के चरित्र के माध्यम से कई सवाल पूछते हैं।
वहीं, आयुष्मान का चरित्र अपने हर काम में बीस है पर राष्ट्रवाद की परिभाषा में दबा दिए जा रहे सवाल, उसको बहुत कुछ सोचने को मजबूर करते हैं।
सामाजिक विषयों पर कई कहानियां सुना चुके अनुभव सिन्हा जो कहानी अनेक में सुना रहे हैं, वह सपाट नहीं है, उसमें कई तहें हैं इसलिए कहानी सुलझी हुई नहीं लगती है। सुलझी हुई नहीं लगने का कारण यह भी हो सकता है कि हम नार्थ-इस्ट राज्यों के समस्याओं के बारे में कुछ जानते भी नहीं है।
अलगाववाद में इन राज्यों के सारी समस्याओं को रख दिया गया है जबकि हम उतना ही जानते है जितना हम सबों को बताया जाता है।
क्यों है हमारे बीच ये कटाव?
हम सबों के बीच महानगरों में रहते हुए भी उनके साथ एक भाषाई या सांसकृतिक कटाव, जो तमाम कोशिशों के बाद भी कम नहीं हो पा रहा है, ‘अनेक’ को समझने में वो हमारी मदद नहीं कर पाता है, क्योंकि हम कनेक्ट ही नहीं कर पाते हैं। हम बार-बार उनके भारतीय होने पर शक भर ही नहीं करते हैं बल्कि उनको देश का नागरिक भी नहीं मानते हैं।
इस लिहाज़ से इस फिल्म को देखना चाहिए कि क्यों सेवन सिस्टर्स कहे जाने वाले राज्य के कुछ लोग स्वयं को भारतीय नहीं मानते? जबकि कई लोग भारतीय झंडे के तले स्वयं को साबित करने के लिए रात-दिन संघर्ष करते है।
कलाकारों का अभिनय कहानी में उलझ सा गया है
‘अनेक’ कहानी में कमोबेश हर चरित्र अपने साथ इतने अधिक शेड्स लेकर चलता है कि उसका अभिनय एक शेड्स में कमाल का होता है तो दूसरे शेड्स में पहले से बेहतर। मनोज पहावा हो या आयुष्मान या फिर आद्रिया हो या जेडी चक्रवति सभी का अभिनय अपने चरित्र के हर शेड्स के साथ न्याय करता हुआ दिखता है।
कुछ संवाद बेहद अच्छे बने हैं, जो कई गंभीर सवालों को सामने लाते भी हैं और उसकी हकीकत को बयां भी कर देते हैं। मुल्क, थप्पड़, आर्टिकल 15 के बाद अनेक अधिक शोर नहीं करती है बल्कि शांति से अपने साथ हो रहे भेदभाव और अन्य समस्या को दर्ज करती है। हर समस्या को ना सही पर कुछ समस्या तो दर्ज होती दिखती भी है।
ज़रूरी है कि इस तरह की अन्य कहानियां भी सामने आएं ताकि भेदभाव को बड़े कैनवास पर समझा जा सके है और उसको दूर करने के लिए हम क्या कर सकते हैं, उस पर काम किया जाए।