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कविता: बदल रहा है मेरे देश का हाल

आज कल कुछ बदल सा रहा है मेरे देश का हाल

रंग जो पहले थे कई सारे

कुछ खलनायक उसे एक रंग में बदलने की चल रहे हैं चाल

देश को बना देना चाहते हैं एक जैसा

जिसमें ना हो कोई विविधता

जिसको देखकर याद आ जाए अस्पताल का वो कमरा

जिसमें होता है सब कुछ एक समान

एक जैसा बिस्तर एक जैसा खाना

मरीजों के एक जैसे कपड़े।

कर देना चाहते हैं देश को बदहाल

आज कल कुछ बदल सा रहा है मेरे देश का हाल

छीन लेना चाहते हैं गंगा जमुनी तहज़ीब को

कुछ लोग हैं जो तोड़ना चाहते हैं दिलों से दिल की नींव को

सिर्फ इसलिए ताकि बना रहे उनका राज

चाहे बलि चढ़ जाए देश का कल और आज।

आज कल कुछ बदल सा रहा है मेरे देश का हाल

मंदिर और मस्जिद जिनके मेल से बढ़ती थी इस देश की शान

आज उनके नाम पर ही बांटे जा रहे हैं हिन्दू और मुसलमान

और इस बांटने के काम को अंजाम दे रहे हैं शैतान।

जो नहीं बनने देना चाहते किसी को इंसान

मत फंसो इनके चुंगल में

क्योंकि नहीं हैं इनके बच्चे इस दंगल में

ये आपके ही बच्चों के भविष्य के साथ कर रहे हैं खिलवाड़।

और बिगाड़ देना चाहते हैं देश का सूरत-ए-हाल

इसलिए जागो और खड़े हो इनके खिलाफ

मत तहस नहस होने दो अपने भारत के हालात।

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