ना हिन्दू हूं ना मुसलमान हूं
ना खुदा हूं ना भगवान हूं
खुद की तलाश करता हुआ
मैं अदना सा इंसान हूं।
सत्य की तलाश में दर-दर भटकता हूं
खुद को जानने के लिए तरसता हूं
इन पारलौकिक बातों से अनजान हूं
मैं अदना सा इंसान हूं।
मंदिरों और मस्जिदों के बाहर
लोगों को लाइन में लगे देखता हूं
जो तेरे दर्शन करने को उत्सुक रहते हैं।
कभी तुझे पत्थर में ढूंढते हैं
तो कभी नीले आकाश में
कभी खुद के अंदर तलाशते हैं
तो कभी कैलाश के आवास में।
कोई नदी में तुझे ढूंढता है
तो कोई दूध तुझे पिलाता है
कोई पुष्प चढ़ाने आता है
तो कोई चादर चढ़ाने आता है।
कहां है तू
तेरा बसेरा कहां है
तेरी रात कहां रहती है
तेरा सवेरा कहां है?
थक हारकर मैं भी पत्थर में तुझे मान लूंगा
यह आसान तरीका है खुद को बहलाने का
इससे प्रश्न ही खत्म हो जाता है
तुझे ढूंढने में समय गवाने का।
मैं तेरा किया हुआ एक एहसान हूं
अपने कर्मों से नादान हूं
मैं अदना सा इंसान हूं।