झारखंड राज्य के गुमला ज़िले के रायडीह प्रखण्ड मे स्थित 89 आदिवासी परिवार वाला प्राकृतिक सौंदर्य का धनी गाँव है “लूंगा” और सखुआ, महुआ, कुसुम, पुटकल से भरे सघन वन, पहाड़ और धान के खेतों से घिरे इस गाँव से गुज़रती है एक बरसाती नदी। स्थानीय लोग इसे लूंगा नदी के नाम से जानते हैं, हालांकि कई बुजुर्ग इसकी उत्पत्ति सिकोई गाँव के पहाड़ों से होने के कारण इसे पहाड़ी नदी भी कहते हैं।
नदी जिसपर 60 के दशक के स्टॉप डैम हैं
यह नदी सिकोई, तुरीडीह, कापोडीह, लूंगा, सिपरिंगा, केराडीह जैसे कई गाँवों के लिए खेतों की सिंचाई और पशुओं को पेयजल उपलब्ध कराने का महत्वपूर्ण संसाधन रही है। इस नदी पर 60 के दशक मे बने कुछ स्टॉप डैम हैं, जो अब गुज़रते समय के साथ जर्जर और अनुपयोगी होते जा रहे हैं।
जब वर्ष 2021 के कोरोना काल के बीच संस्था विकास संवाद द्वारा एचडीएफसी बैंक परिवर्तन के सहयोग से सिकोई पंचायत के लूंगा गाँव में पहल परियोजना की शुरुआत की गई, तब ग्राम विकास समिति की बैठक में गाँव में बने ऐसे ही एक स्टॉप डैम के मरम्मतीकरण की मांग उठाई गई, जो पिछले कई वर्षों से फूटा पड़ा था। लूंगा की ग्राम विकास मित्र वर्षा रानी बखला बताती हैं कि इस समूचे क्षेत्र में वर्षा आधारित धान व मड़ुआ जैसी फसल की खेती ही आजीविका का मुख्य ज़रिया है, क्योंकि अप्रैल-मई महीना आते-आते यहां के ज़्यादातर नदी-नाले सूखने लगते हैं।
मिटटी के कटाव की वजह से ग्रामीण परेशान
गाँव के बुजुर्ग किसान देव नारायण गोप बताते हैं कि कुछ साल पहले ये स्थिति नहीं थी 1966-67 के दौरान लूंगा नदी पर बना स्टॉप डैम कई गाँव के सैकड़ों किसानों की खेती-किसानी का मुख्य सहारा था। उन्होने खुद इस स्टॉप डैम के बनने में मज़दूरी की है, तब इस डैम का पानी चैनल के ज़रिये लूंगा, पाकर टोली, चांपाटोली, कापोलूंगा, सिपरिंगा, बरटोली गाँव के सैकड़ों एकड़ खेत तक पहुंचता रहा, जिससे किसान दो फसली खेती कर पाते थे,
लेकिन पिछले 10-15 साल से डैम के दाहिने हिस्से की मिट्टी के कटाव हो जाने और उसके अंदरूनी हिस्से में रेत, मिट्टी भर जाने के कारण उसमें पानी नहीं ठहर रहा था। इस स्टॉप डैम के मरम्मतीकरण व चैनल के सुधार कार्य को लेकर कई बार मांग की गई पर कोई बात नहीं बन सकी।
फिर जब गाँव में पहल परियोजना शुरू हुई, तब एक बार फिर से ग्राम विकास समिति की बैठक में इस स्टॉप डैम के मरम्मतीकरण की मांग की गयी, तब परियोजना द्वारा सामुदायिक सहभागिता की शर्त के साथ इस जल प्रबंधन कार्य की योजनाबद्ध शुरुआत की गई। शुरु में इस काम मे कुछ चुनौतियां भी आईं, जिसमें श्रमदान के लिए समुदाय को एकजुट करने और उनका अंशदान जुटाने की दिक्कत रही है।
वर्षा रानी के अनुसार गाँव में लगातार 5 बार यह काम करने की तैयारी व भागेदारी को लेकर बैठक रखी गई। इस बैठक में सरकारी काम और जनभागेदारी से होने वाले काम के अंतर और जल प्रबंधन कार्य को लेकर बातचीत की गई, जिसके बाद कापो व लूंगा गाँव के लगभग 40 युवा, बुजुर्ग व महिलाओं ने मिलकर इस काम को आगे बढ़ाया।
इस काम की निगरानी करने वाले शंकर बड़ाईक कहते हैं कि लूंगा नदी पर बने स्टॉप डैम के मरम्मतीकरण से स्थानीय लोगों को रोज़गार तो मिला ही! अब डैम में पानी रुकने से किसान रबी फसलों की खेती भी कर सकेंगे। एक अनुमान के मुताबिक इस जल संरचना सुधार से लगभग 40 हेक्टेयर से अधिक भूमि मे सिंचाई हो सकेगी। वहीं. इससे मछली पालन की संभावना को भी जोड़कर देखा जा रहा है ।
जल संरचना और खेती की सुविधा
कापोडीह किसान पाठशाला से जुड़े विलफर लकड़ा व संदीप टोप्पो कहते हैं कि लूंगा गाँव में हो रहे कार्य से उनके गाँव में भी सिंचाई और दो फसली खेती की सुविधा बढ़ेगी, जिससे परिवारों को रोज़ी,रोटी की तलाश में बड़े शहरों में भटकना नहीं पड़ेगा। पहल परियोजना से जुड़कर कपोडीह, सिकोई, सिपरिंगा जैसे गाँव के किसानों ने अपने जल संरचनाओं को सहेजने-संवारने को लेकर सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है।
गुमला जैसे आकांक्षी ज़िले के वंचित समुदायों की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा व्यवस्था को मज़बूत बनाने के लिए टिकाऊ खेती और सामुदायिक जल प्रबंधन के ऐसे छोटे किन्तु महत्वपूर्ण प्रयासों को विशेष संबल देने की आवश्यकता है।