बीते शक्रवार सिनेमाघरों में शाहिद कपूर की फिल्म जर्सी रिलीज़ हुई। काफी लंबे समय के बाद शाहिद को थियेटर में देखना अच्छा लगा, क्योंकि अन्य कलाकारों की तरह उन्होंने ओटीटी पर अभी तक डेव्यू नहीं किया है।
शाहिद लम्बे समय बाद
यूं तो फादर्स डे आने में महीने भर का समय है पर शाहिद की फिल्म जर्सी का एक बेहतरीन संवाद ”आपने मुझे मारा, ये बात मैं किसी से कहूं भी तो कोई मानेगा ही नहीं!“सात साल के बच्चे का अपने पिता के साथ यह संवाद और पिता के स्नेह पर उसका विश्वास जैसे पूरी फिल्म की पूरी कहानी का दिल निकालकर रख देता है। कहना ना होगा कि जर्सी फिल्म एक बेटे और पिता के एक-दूसरे पर विश्वास और स्नेह वाली भावुक कहानी है। साथ ही साथ एक आम आदमी के इमोशन और संघर्ष की कहानी भी जर्सी में दिखती है, जो सबकी नज़र में अपने लिए सम्मान पाना चाहता है।
क्या है, जर्सी की कहानी कि जर्नी?
कहानी अर्जुन तलवार(शाहिद कपूर) की है, जिसको उसके कोच माधव शर्मा(पंकज कपूर) ने गलीयों से उठाकर तराशकर वो क्रिकेटर बना दिया है, जिस पर ज़माने को कोई नाज़ भले ना हो, उन्हें बहुत नाज़ है मगर वो क्रिकेट छोड़ देता है और अपनी प्रेमिका विद्या (मृणाल ठाकुर) से शादी कर लेता है और बाप बन जाता है।
उसे खेल कोटे से एक सरकारी नौकरी मिलती है पर वो भी घूसखोरी के इल्ज़ाम के कारण चली जाती है। पत्नी एक पांच सितारा होटल में नौकरी करती है और घर चला रही है। अर्जुन पैसे-पैसे का मोहताज है वो अपने बेटे को इंडियन क्रिकेट टीम की जर्सी उसके जन्मदिन में नहीं दिला पाता। फिर दस साल बाद अर्जुन क्रिकेट फील्ड में वापस लौटता है, क्योंकि वो सभी की नज़रों में हारा हुआ पिता होना स्वीकार्य कर सकता है मगर बेटे की नज़र में हीरो बना रहना चाहता है।
क्यों देखी जाए जर्सी?
अर्जुन तलवार क्रिकेट क्यों छोड़ता है? अपनी दूसरी पारी में वो कामयाब हो पाता है या नहीं? सबकी नज़रों में अपने लिए सम्मान पाना उसके लिए कितना चुनौतियों भरा है? ये सब जानने के लिए आपको कमोबेश ढ़ेड घंटे की फिल्म देखनी होगी। पंकज कपूर, शाहिद कपूर और बाकी कलाकारों के अभिनय आपको निराश नहीं करेगी इसकी गारंटी है।
मगर शाहिद ने अपने चरित्र अर्जुन तलवार को जिस तरह से निभाया है उसकी समीक्षा करना चुनौती है। गुज़रती रेलगाड़ी की आवाज़ के सामने शाहिद का चीखना, अपनी खुशी-गुस्सा और आत्मविश्वास का जो कॉम्बो एक साथ देखने को मिलता है, वो बेमिसाल है। पूरी फिल्म में हर किरदार के सामने उसका चरित्र जिस दर्द, खुशी, अपनेपन और बेगानेपन को अपने चेहरे पर लेकर आता है वो कमाल है।
शाहिद और पंकज कपूर
कहना होगा शाहिद की अभिनय में पंकज कपूर जैसे मंझे हुए अभिनेता की झलक अब उतरती हुई दिख रही है। हैदर, कबीर सिंह, के बाद जर्सी में शाहिद का अभिनय याद किया जाएगा। शाहिद के कोच के रूप में पंकज कपूर हर फ्रेम में शानदार लगे हैं, उन्होंने अपने डायलॉग की अदायगी कुछ इस कदर रखी है कि दस साल पहले के शाहिद के क्रिकेट करियर के बुलंदी का एक खाका बिना देखे ही खींच देते हैं।
एक पंजाबी क्रिकेटर से दक्षिण भारत की लड़की के प्यार के किरदार में और अकेले घर चलाने वाली पत्नी और माँ का किरदार अच्छे तरीके से जिया है। अजुर्न तलवार के बेटे के रूप में रोनित कामरा का काम भी भावुक करने वाला है, वो अर्जुन और विद्या के बेटे बने हैं।
लेखक-निर्देशक गौतम तिन्ननूरी ने फिल्म के हर पक्ष पर शानदार नियंत्रण रखा है। सिनेमेटोग्राफी, संपादन कोई कमी महसूस नहीं होने देता है। गौतम ने जर्सी की कहानी को तमिल फिल्म से अलग नहीं किया है बस किरदार बदल दिए हैं। कहानी लव-रोमांस-इमोशन सबों को एक साथ पकड़कर चलती है।
फिल्म का संगीत लंबे समय तक याद रखने लायक नहीं है पर कर्णप्रिय है मन को बहलाए रखता है मगर जर्सी अपने सामने जिस महाबली फिल्म केजीएफ-2 का सामना कर रही है, अपने हिस्से कितनी कामयाबी बटोर सकेगी या शाहिद को कबीर सिंह वाली सफलता दिला सकेगी, ये कहना मुश्किल है।