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एक पिता के लिए बेटे के गे होने को स्वीकार करना कितना कठिन

कुछ दिनों पहले यूट्यूब में प्रकाश राज की इस सीरीज़ का थंबनेल देखने को मिला। तभी ठान लिया कि ‘अनन्तम’ वेब सीरीज़ के लिए समय निकालेंगे। प्रकाश राज और संपथ राज की इस वेब सीरीज़ में 8 एपिसोड हैं। सभी एपीसोड्स में अलग-अलग कहानी है, जो ‘अनन्तम’ नाम के घर में घटी है। इन एपिसोड्स के नाम पात्रों के नाम पर रखे गए हैं।

अनन्तम की कहानी

1951 में निर्मित हुए मकान का नाम ‘अनंतम’ रखा गया, जिसे बाद में वेंकटेशन नाम का आदमी खरीदकर अपनी पत्नी को भेंट प्रस्तुत करता है। यह सच है कि पृथ्वी के हर निर्जीव और सजीव वस्तु के पास कहने को ढेरों कहानियां हैं।

एक नदी अपने उद्गम स्थल से निकलने के पश्चात समुद्र में मिलने से पहले अनगिनत मनुष्यों की कहानियों का हिस्सा बन जाती है। ठीक इसी तरह इस सीरीज़ के प्रमुख किरदार यानि मकान के पास कई कहानियां हैं। साथ ही यह पिता-पुत्र के रिश्ते की कहानी है।

खुले विचारों वाला पिता और समलैंगिक बेटा

वेंकटेशन एक खुले विचारों वाला व्यक्ति है। वह अपने बेटे को लिव-इन में रहने की और दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करने की सलाह देता है लेकिन जिस पल उसे मालूम होता है कि उसका बेटा ‘गे’ है, वह अपने बेटे को तुरंत घर से बाहर कर देता है। उस वक्त उस बेटे को अथाह पीड़ा होती है।

वह अपने मित्रों के बीच अक्सर अपने पिता के खुले विचारों की बखान करता, उसे विश्वास था कि उसके पिता उसके समलैंगिक होने को आसानी से अपना लेंगे। उसे डर था तो केवल अपनी माँ का। उसकी माँ उसे डांटती तक नहीं, बल्कि अपनी गलती मानते हुए कहती है कि मैं ही तुझे समझ नही पाई। अक्सर ऐसा क्यों होता है कि जो लोग बाहर से दिखावा करते हैं, वे अंदर से उतने ही खोखले होते हैं?

समाज की सच्चाई दिखाते सीरीज़ के विषय

समलैंगिकता को इस सीरीज़ में अलग तरह से ट्रीट किया गया है। बिना नग्नता के प्रेम को प्रस्तुत करना वाकई लाजवाब होता है। पांचवा एपिसोड ‘कृष्णन मेनन’ बेहद मनोरंजक लगा। घर में ठहरे पेइंग गेस्ट से जब माँ और बेटी दोनों को ही आकर्षण हो जाता है, तब दोनों ही उसे रिझाने के किये यत्न करने लगतीं हैं।

यह एपिसोड बड़े उम्र की महिला से छोटे उम्र के पुरूष के साथ विवाह को हास्य के साथ प्रस्तुत करता है। सातवां एपिसोड चाइल्ड एब्यूज़ से संबंधित कड़वा सच सामने रखता है। कई दफा बच्चों को उत्पीड़न देने वाले घर के ही सदस्य होते हैं या कोई रिश्तेदार। सीरीज़ में बच्चे के साथ गलत करने वाला वह व्यक्ति औरों के सामने इतना इज़्ज़तदार था कि बच्ची की बात कोई मानता तक नहीं है।

इस सीरीज़ में ‘सीता’ और ‘ललिता’ नाम के दोनों एपिसोड एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। ललिता के कारण अंधी रेखा के साथ उसका उसका पति दुर्व्यवहार करता है और जब कुछ सालों बाद ललिता उसी घर में रहने आती है तब अपने कर्मों का फल भुगतती है।

वेंकटेशन की उसके आशियाने से विदाई

आखिरी एपिसोड में वेंकटेशन की शवयात्रा ‘अनंतम’ से ही निकलती है। क्या इसे किसी मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मान सकते हैं कि उसके जीवन की आखिरी यात्रा उसके खून-पसीने की कमाई से बने घर से निकली है। गुलज़ार साहब के लिखे ये बोल याद आते हैं, “एक अकेला इस शहर में, रात में और दोपहर में, आबोदाना ढूंढता है, आशियाना ढूंढता है।”

आखिरी एपिसोड में यह सीरीज़ बेहद भावनात्मक हो जाती है। प्रकाश राज के एक्सप्रेशन बिल्कुल वैसे बन जाते हैं जैसे दर्शकों को देखने की उम्मीद होती है। एक अग्रसर और समय से आगे की सोच रखने वाले व्यक्ति के लिए अपने बेटे के समलैंगिक संबंध को स्वीकार कर पाना इतना कठिन क्यों हो गया? बिस्तर में आखिरी सांसें गिन रहे वेंकटेशन उस टीस को दूर करते हुए बेटे और बेटे के प्रेमी को स्वीकार कर लेते हैं।

कुछ तो है जो सीरीज़ को देखने योग्य बनाता है। चतुराई तो निर्देशक और लेखक की है। पूरी सीरीज़ एक घर और एक हॉस्पिटल के कमरे में निपटा दी। जब ‘अनन्तम’ घर अपनी कहानी सुनाती है, तब बाहर के लोकेशन के बारे में सोचने का मौका ही नहीं मिलता।

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