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“कश्मीर फाइल्स देखने वालों, आपको ‘मिशन कश्मीर’ देखने की भी ज़रूरत है”

मिशन कश्मीर VS द कश्मीर फाइल्स

फिल्म मिशन कश्मीर का पोस्टर

फ़िल्म देखना मेरा शौक़ है और इस कड़ी में अक्सर पुरानी फ़िल्म खोज-खोज कर देखता रहता हूं और हाल ही में चूंकि कश्मीर पर चर्चा हो रही है, तो ख्याल आया कि ‘विधु विनोद चोपड़ा’ ने सन 2000 में एक फिल्म निर्देशित की थी, जिसे उन्होंने सुकेतु मेहता और विक्रम चंद्रा के साथ मिलकर लिखा भी था और फिल्म का  नाम था ‘मिशन कश्मीर’ और मुझे लगता है, सबको याद तो होगा ही? गाना ‘बुमरो-बुमरो’ सबने बहुत गाया था और हमने भी।

मिशन कश्मीर: क्या थी कहानी?

फिल्म में एक किरदार था, जो उग्रवादी हो जाता है, जिसका कारण था कश्मीर पुलिस यानि एसएसपी ‘खान’ का किरदार, जिसे एक्टर संजय दत्त ने निभाया था मगर अभी मैं जो बात करने जा रहा हूं वो इन दो किरदारों की नहीं है!

बल्कि जब दस वर्ष के बाद एसएसपी खान, जो कि आइजी (IG)  खान बन चुके होते हैं और उनके जूनियर के तौर पर दो लोग होते हैं। एक होता है सरदार गुरदीप और एक अविनाश नाम का किरदार!

किरदार! जो आज बेहद ज़रूरी से हैं

जहां, एक ओर अविनाश एक मुठभेड़ में बहुत ज़्यादा हिंसक होकर उग्रवादियों की  लाश पर भी गोली चला रहा होता है  और गुरदीप के पूछने पर बताता है कि इन लोगों ने हम कश्मीरी पंडितों को मारा था, हम पर अत्याचार किए थे। तुम नहीं समझोगे? क्योंकि तुम यहां से नहीं हो।

इस पर गुरदीप का जो जवाब है, वो शानदार है  “मैं कैसे समझ सकता हूं? मेरा तो कोई है ही नहीं, मार दिया गया था सबको चौरासी (1984) के दंगो में दिल्ली में, आग में जलाकर और उन्हें मारा था एक हिंदू ने! तो क्या मैं तुझे भी मार दूं?”

वो आगे कहता है  मगर नहीं!  मैं तुझे नहीं मार सकता इसलिए नहीं कि तू मेरा दोस्त है बल्कि इसलिए क्योंकि हम मारने वाले नहीं, बचाने वाले हैं। हमें कश्मीरियत को बचाना है, इंसानियत को बचाना है।

एक चश्में से सबको देखना कितना सही?

यहां, इस फिल्म का ज़िक्र करके भाईयों, मुझे बस इतना कहना है कि सियासी लड़ाइयों में प्राचीन समय से लेकर अब तक जाने कितने निर्दोषों की जान बेरहमी से ली गई हैं उनको भुलाइए नहीं मगर

जिन्होंने ये क्रूरता की थी, उनके जैसा बनकर उनके जैसे कृत्य कर! आने वाले दिनों में फिर हम किसी के लिए वैसे ही दोषी और क्रूर क्यों बनें?

ईश्वर ने हमें इंसान बनाया है और कुछ लोग हर समाज में हैवान हैं, तो क्या हम भी उनके ही तरह बन जाएं? उस समाज विशेष के हर व्यक्ति को शक, घृणा और नफरत की निगाह से देखें ?अगर हमने ऐसा करना शुरू कर दिया तो हर वर्ग फिर उठ खड़ा होगा, एक दूसरे के खिलाफ एक दूसरे से नफरत करने के लिए, क्योंकि भारतीय इतिहास में ऐसे कई हैवानियत वाली घटनाएं होती रहीं हैं।

हिंसा को तमाशा बनाकर दिखाना बंद करें! प्रेम, भाईचारा, सौहाद्र को बढ़ाने पर काम करें, वरना आज आप उन पर नफरत और शक की निगाह रख रहें हैं, कल आप पर भी कोई रखेगा।

जिस देश को सरदार पटेल, नेहरू, गांधी, भगत और  सुभाष ने अपने खून से एक करने का काम किया था, उसे टुकड़ों में बांटने का काम ना  करें।

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