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कश्मीर फाइल्स: “आपको रुलाने के लिए काफी गर्म और असरदार मसालों का इस्तेमाल किया गया है”

जिहाद का सीधा साधा अर्थ है बदलाव, जो अरबी शब्द “जिहा” से बना है। जिहाद का अर्थ है, बुराइयों को मिटाना, खुद के अहंकार को नष्ट करना, मानवता को बचाना, साथ ही साथ मानवता को अपनाना। तो समाज में बताई गई जिहाद की परिभाषा पश्चिमी देशों द्वारा दी गई वो परिभाषा है, जो मुस्लिम समुदाय को उस दरिया में बहाकर नष्ट करने का दम रखती है, जिसको इस्लामोफोबिया कहा जाता है।

वैसे तो इस्लाम धर्म को आतंकवाद से जोड़ना कोई नई बात नहीं है। ईसाइयों और यहूदियों से मुसलमानों का तो सम्बंध रहा है, वह भी सैकड़ों सालों से कड़वा ही रह है। सभी जानते हैं विश्व में सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाला धर्म ईसाई है, जिसकी संख्या 2.3 बिलियन है।

वहीं, दूसरे पायदान पर मुस्लिम धर्म है, जिसकी आबादी लगभग 1.8 बिलियन है। संपूर्ण विश्व में मुस्लिम और ईसाई धर्म का तो आपसी मतभेद है, वो ईसा मसीह के समय से ही है और इस मतभेद ने अधिक ज़ोर तब पकड़ा जब इस्लाम का प्रसार अपने आखिरी समय में था, जो पैग़म्बर मोहम्मद साहब का समय था।

गर्म और असरदार मसाले हैं फिल्म में मौजूद

भारत में मनोरंजन की दुनिया से सभी लोग बहुत प्रभावित हैं। बॉलीवुड हमेशा से न्यूट्रल रहा है धर्म को लेकर मगर कभी- कभी यहीं से धर्म की गंदी और फैलती हुई आग शुरू होती है। फिलहाल, कश्मीर फाइल्स नई मूवी जो आई है, इसमें आपको रुलाने के लिए काफी गर्म और असरदार मसालों का इस्तेमाल बखूबी किया गया है।

साथ ही साथ इसमें आपको मुसलमानों की ज़मीर पर अपमानित होने का तड़का लगाने के लिए ऐसी तस्वीरें उजागर की हैं, जिसमें साफ यही देखने को लगता है कि ये फिल्म कश्मीरी पंडितों के दर्द को बयां करने के लिए कम और मुस्लिम समुदाय पर कीचड़ उछालने के लिए ज़्यादा बनाई गई है।

इस फ़िल्म के एक-एक डायलॉग में आपको रुलाने के लिए इमोशन्स को इस तरह परोसा गया है कि आप किसी जोक को सुनने के बाद अगर इन संवादों को सुनेंगे, तो आपकी हंसी रुक जाएगी और आंसू निकल पड़ेंगे।

फिल्म के दृश्य में एक्टर अनुपम खेर। फोटो साभार- अनुपम खेर ट्विटर हैंडल

जितने भी किरदार हैं फिल्म में, सभी के सभी वो हैं जिन्होंने मुस्लिम विरोधी खाका तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। निर्देशक से ऐसी उम्मीद करना दिमाग और दिल पर शोभा नहीं देता। फिल्म देखने के बाद बस एक यही बात याद आई कि इस जलती और उबलती हुई बीमार दुनिया में इस तरह की फिल्म बनाने की क्या ज़रूरत?

असली मुसलमान और असली हिन्दू हिंसा का सहारा नहीं ले सकता!

ऐसी फिल्में समाज में लगी हुई धार्मिक आग में और घी डालती हैं। मैं हिन्दू हूं मगर मुझमें समझ है कि किसी भी धर्म में हिंसा को प्राथमिकता नहीं दी गई है। तो कोई किसी के धर्म की पुस्तक उठाकर उसमें से शब्दों को चुराकर कुछ भी बोल दे? जैसे जिहाद शब्द का उपयोग इस मूवी में कई बार किया गया है, जिसका उद्देश्य किसी की भी भावनाओं को आहत करना है। जिहाद का असली मतलब मैं ऊपर समझा चुका हूं।

इतिहास का विद्यार्थी होने की वजह से मैं समाज में उस दुविधा को मिटाना चाहता हूं जो कभी एग्ज़िस्ट ही नहीं करती। यहां मुस्लिम समुदाय को जिस चश्मे से दिखाया जाता है, वो सिर्फ और सिर्फ मानव रूपी है, इंसानों ने बनाया है। असली मुसलमान और असली हिन्दू कभी भी हिंसा का सहारा नहीं ले सकता।

कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्में समाज में कई तबकों के बीच नफरत का बीज बोने के लिए जानी जाती हैं और ऐसा परिणाम देखने को भी मिलता है। खैर, लोगों से अपील है आप बायकॉट करें किसी एक विशेष समुदाय का नहीं, बल्कि हिंसा का।

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