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“डिप्रेशन से लेकर अपनी खुद की अलग पहचान बनाने का सफर आसान नहीं था”

"डिप्रेशन से लेकर अपनी खुद की अलग पहचान बनाने का सफर आसान नहीं था"

एक स्त्री जब अपने संघर्षों और उसके बाद मिलने वाली सफलता की कहानी गढ़ती है, तब कहीं-ना-कहीं वो अन्य स्त्रियों के मन में भी एक उम्मीद की लौ जगा देती है कि संघर्ष के बाद ही सही सफलता मिलती ज़रूर है।

कहानियों में मेरा सफर

चलिए मैं आज आपको अपनी कहानी से रूबरू करवाती हूं। मैंने हार नहीं मानी है अब तक और ना मानूंगी। मुझे बचपन से ही पढ़ना और लिखना बेहद पसंद था, जब भी कोई उपन्यास या कहानी पढ़ती बस उसी दुनिया में चली जाती थी, उन्हीं किरदारों में खो जाती, खुद को उनसे जोड़ लेती थी।

जो पन्नों पर लिखा होता, वो तो समझ में आता ही था साथ ही, जो कहानी में अनकहा रह जाता था, वो भी ना जाने कब समझ आने लगा और फिर मैं भी लिखने लगी और किरदार गढ़ने लगी मगर कभी अपनी रचनाओं को कहीं छपवाने की हिम्मत, मैं नहीं जुटा पाई।

शादी ने फिर सब बदल दिया

फिर इन सबके बीच एक लंबा गैप आ गया, जब मेरी शादी हुई और घर गृहस्थी यानि कि निन्यानबे के फेर में, मैं भी पड़ गई, बेटी हुई और मेरा लिखना-पढ़ना सब बैकफुट पर चला गया।

कभी-कभी बस अपनी डायरी में कुछ लिखती मगर बिना किसी को बताए, क्योंकि मुझे खुद पर इतना कांफिडेंस ही नहीं था कि मेरा लिखा कहीं पब्लिश भी हो सकता है मतलब मेरी लिखी रचनाएं?

डिप्रेशन बढ़ता गया

मगर मेरा लिखना मेरे खुद के लिए एक थेरेपी जैसा था, जो पन्नों पर ख्यालों को उतारकर मुझे सुकून से भर देता था। मैंने कुछ साल टीचिंग भी की, वहां सफलता भी मिली पर फिर भी कुछ कमी सी थी। मुझे फिर से डिप्रेशन सा होने लगा, मेरे पास सब कुछ होकर भी सुकून नहीं था।

ठोकर, फेलियर, अकेलापन

इन सब के बीच मुझे सही राह सुझाने वाला भी कोई नहीं मिला और अच्छा हुआ नहीं मिला, क्योंकि सहारे से आप कुछ दूर तक चल सकते हैं मगर आप स्वयं आत्मनिर्भर हों, तो जीवन में देर से ही सही पर सफलता ज़रूर मिलती है और इन सब के बीच मेरा डिप्रेशन बढ़ रहा था।

आज डिप्रेशन और मेन्टल हेल्थ पर लिखने वाली मैं तब यह जानती भी नहीं थी कि मैं डिप्रेशन का शिकार हूं और मुझे किसी प्रोफेशनल की मदद की ज़रूरत है। मेरे चारों ओर कहने भर को अपनों की भीड़ थी पर अकेलापन मानो मुझे अंदर से खोखला बना रहा था।

ठोकरें, फेलियर, रिजेक्शन और ढ़ेर सारे सबक अभी ज़िन्दगी मुझे देने वाली थी। मुझे कोई सपोर्ट नहीं था, कोई ऐसा नहीं था जिससे मैं मन की बात कह सकूं।

आखिर मैं क्यों?

मेरे अंदर बस एक खालीपन था और एक अहसास कि आखिर मैं हूं तो क्यों हूं? मेरे होने का कोई मकसद भी तो होना चाहिए ना? मैं बस डिप्रेशन के गहरे समंदर में डूबने लगी और मुझे खुद के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी।

मेरे अंदर खुद को खोकर कुछ नया पाने की हर उम्मीद भी खो ही गई थी शायद बस एक बेचैनी सी रहती थी, मैं हमेशा बीमार सा फील करती थी और ना जाने मुझे किस चीज़ की तलाश थी।

मुझे ऐसे लग रहा था शायद ऐसी ही घुटन में मेरी ज़िंदगी का अंत हो जाएगा मगर नहीं! शायद ये मेरी कहानी का अंत नहीं था, अभी तो एक नई शुरुआत होनी बाकी थी।

फिर लेखन से दिशा मिल गई

एक दिन मुझे महिलाओं का एक ऑनलाइन प्लेटफार्म मिला, जहां मैं अपनी रचनाओं को पब्लिश कर सकती थी। मैंने वहां अपनी आहत भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पब्लिश कर दिया और किसी को कुछ भी नहीं बताया अपने हसबैंड और परिवार को भी नहीं।

तुम बस खाना पकाओ

मुझे लगा बता दूं और रचना पब्लिश ना हुई, तो सबके बीच मेरा मज़ाक ही बनेगा कि तुम कुछ भी कर सकने के लायक ही नहीं हो, तुम बस खाना बनाओ और घर देखो (जैसे कि ये कोई काम ही नहीं हैं)

मगर इसके विपरीत दूसरे ही दिन मेरी रचना ना सिर्फ पब्लिश नहीं हुई बल्कि उस पर हज़ारों लाइक्स और सैकड़ों कमैंट्स भी आए। मेरी रचनाओं पर अन्य महिलाओं ने मेरे शब्दों और भावों से खुद को जोड़ा और अपने विचार भी रखे।

लेखन ने डिप्रेशन को खत्म किया

उस दिन मुझे लगा फिर से मैं अपना बिखरा हुआ अस्तित्व फिर से बना सकूंगी, जहां सो-कॉल्ड समाज अपने ताने देने के अलावा कुछ ना कर सके।

वहीं अनजान लोग मुझे बढ़ावा दे रहे थे और यह अहसास नया ज़रूर था पर बेहद खूबसूरत था। मैं वहां नियमित लिखने लगी और दो महीने के भीतर ही मेरे ब्लॉग्स टॉप में शुमार हुए।

मुझे सफलता थोड़ी सी सही पर मिलने लगी और इससे मेरे मन में आत्मविश्वास जागा और डिप्रेशन भी छूमंतर सा होने लगा (समय लगा था पर यकीनन अपने विचार लिखकर बांटने से मेरा डिप्रेशन कम होने लगा था) अब मैंने अपने घर में भी बताया और उन सबको भी अच्छा लगा।

सवाल मगर अब भी थे?

मगर हां, ऐसे लोगों की कमी नहीं थी, जो मेरी हिम्मत तोड़ने में लगे रहते थे, “कितना मिल जाता है ऐसे मोबाइल पर लिखने में” या फिर “इस लिखने पढ़ने में भी कोई भविष्य है भला? कोई जॉब क्यों नहीं करतीं?”

वहीं, कुछ ऐसे भी थे जिनका कहना था, “चलो टाइमपास के लिए तुम्हारे पास एक अच्छा बहाना है वरना हम तो अपनी जॉब में थक जाते हैं। तुम्हारा बढ़िया है आराम से घर पर रहो धड़ाधड़ बस लिखते रहो और कोई काम भी नहीं करना पड़ता।”

लेखन कोई काम है क्या?

ऐसे लोगों की बातें शुरू में बड़ा दिल दुखाती थीं कि लिखना कोई काम नहीं है क्या? दिमाग लगता है और डूबना पड़ता है पूरी तरह कुछ लिखने में तब लिख पाते हैं मगर धीरे-धीरे मुझे समझ आया कि ऐसे लोगों की बातों को दिल पर नहीं लेना है।

आज चार साल से ज़्यादा का समय बीत चुका है और मैंने फिर कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा। मैंने ढ़ेर सारे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के लिए लिखा, प्रतिष्ठित न्यूज़पेपर्स में मेरी कहानियां छपीं, ढ़ाई सौ से ज़्यादा हिंदी और इंग्लिश में कोट्स लिखे।

ई-बुक्स से वेबसाइट तक

तीन किताबें (ई-बुक्स) लिखीं और फरवरी 2021 अपनी वेबसाइट लांच की, जिस पर मैं स्त्री-विमर्श, लाइफस्टाइल, मेंटल हैल्थ और वैलनेस, पैरेन्टिंग इत्यादि के अलावा इंग्लिश पोएट्री भी लिखती हूं।

मेरी कहानियां, कविताएं और ब्लॉग्स मेरी भावनाओं को दूसरों तक पहुंचाने का एक सशक्त ज़रिया हैं और मेरे शब्द किसी एक को भी प्रेरणा दे सकें या किसी तरह से सक्षम बनने में मदद कर सकें मेरा बस यही एक मकसद है।

आज मैं अपनी वेबसाइट के लिए लिखने के साथ ही फ्रीलांस कंटेंट राइटिंग (हिंदी और इंग्लिश) भी करती हूं। मुझे लगता है आखिर मैंने अपनी मंज़िल पा ही ली शायद मैं इसी सुकून की तलाश में थी, कोई बात नहीं जो थोड़ी देर हुई पर आखिर में मैंने रास्ता ढ़ूंढ़ ही लिया।

मैंने कोई बहुत खास काम नहीं किया है कि लाखों लोग जानें मगर फिर भी अपनी कहानी लिख रही हूं, रोज़ एक नया पन्ना जोड़ती हूं अपनी ज़िन्दगी की किताब में कि शायद किसी रोज़ कोई मेरी कहानी पढ़कर सीख ले कि कोई बात नहीं अगर आप थोड़ा लेट हो जाएं तो!

डिप्रेशन पर बात अब भी ज़रूरी

ज़िंदगी सबके लिए आसान नहीं होती है और कभी-कभी यूं ही रेत के जैसे हाथ से फिसल जाती है पर आप शुरुआत कर सकते हैं, कभी भी बिल्कुल शुरू से कहने दीजिए लोगों को कि अब क्या फायदा पर यकीन मानिए यही लोग एक दिन आपकी सफलता पाते ही आपसे नाता जोड़ने फिर आएंगे।

आज मेरी वेबसाइट पर कमेन्ट आते हैं, तो लगता है कोई कनेक्शन सा बन गया है और जो मैं चुप रह कर डिप्रेशन से लड़ रही, वो भी गलत था कहना ज़रूरी है, बोलना ज़रूरी है, अपनी बात कहना और कभी-कभी अपने हक के लिए लड़ना भी ज़रूरी है।

मैं अकेली नहीं हूं जिसको डिप्रेशन हुआ और ना ही ये शर्मिंदगी का अहसास करने जैसी बात है। आप मदद मांगिए अगर आप ऐसी किसी भी स्थिति में हैं, जहां यह सब अपने तक रखना आपको नुकसान पहुंचा रहा हो।

अपनी ज़िंदगी को सेलिब्रेट करिए, खुद पर भरोसा रखिए। ज़िंदगी सबको मौका ज़रूर देती है, वक्त सबका आता है। मैं अपनी ज़िंदगी की किताब के पन्नों को चमकीली स्याही से लिखने की भरपूर कोशिश कर रही हूं उम्मीद है कि मेरा सफर यूं ही ज़ारी रहेगा।

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