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वीमेंस वर्ल्ड कप: बंग्लादेश को हराकर सेमिफाइनल में पहुंची भारत

Indian Women's Cricket Team

India Women's National Cricket Team

हाल ही में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने वीमेंस वर्ल्ड कप में बंग्लादेश को हराकर, सेमिफाइनल में अपनी जगह पक्की कर ली है, जो बेशक देश के लिए गर्व की बात है।

वहीं, मध्यप्रदेश के हरदा जिले में आदिवासी लड़कियां क्रिकेट खेल कर समाज की सोच में सकारात्मक बदलाव ला रही है। दोनों ही खबर भारत जैसे विशाल देश में खेल-कूद और एथलीट की दुनिया में लड़कियों को देखने का नज़रिया बदल रहा है, जो एक सुखद संकेत है।

लड़कियां तमाम आर्थिक-सामाजिक दुश्वारियों से जूझते हुए भविष्य के लिए नई कहानियां  लिख रहीं हैं,  लिखने के लिए अपना खून-पसीना एक कर रहीं हैं। वे ये साबित कर रहीं हैं  कि कोई भी खेल लड़के-लड़कियों का नहीं! स्टैमना का होता है।

कौन हैं, ये महिला खिलाड़ी?

उनका यह आत्मविश्वस भारतीय महिला एथलीट्स की दुनिया में बेमिसाल कहानियां बयां कर रहा है। गौरतलब हो कि इस बार ओलंपिक में अपनी सफलता का झंडा लहराने वाली अधिकांश महिला एथलीट्स  बेहद समान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि से रहीं हैं। उनकी सफलता ना जाने कितनी नई कहानियों को गढ़ने और संघर्ष करने की प्रेरणा बन चुकी है।

बीते आलंपिक खेलों में भारतीय महिला खिलाड़ियों ने  पदकों से जो चमक देश के युवा महिला एथलीटस  को दिखलाई है, वह पूरे जोश-खरोश के साथ जैसे उनके लहू में उतर गई है।

ये जोश मेहनत से वह अब तपने लगा है और वो पिघलकर मेडलों में ढलेगा भी! इसका पूरा विश्वास  है। भारत जैसे विशाल देश में लड़कियों के लिए हर स्तर पर अपनी-अपनी चुनौतियां हैं। शहरी स्तर पर चुनौतियां एक हद तक कम है पर ग्रामीण स्तर पर!

ग्रामीण स्तर पर चुनौतियां और ज़्यादा

शहरी स्तर पर खेल-कूद की संस्कृति में संरक्षण है, क्योंकि वहां कोचिंग और पोषण दोनों की ही सुविधाएं उपलब्ध हैं मगर यदि यही  ग्रामीण स्तर पर खेल की सुविधाएं पहुंच सकें, तब बड़े पैमाने पर महिला एथलीट सामने आ सकतीं हैं।

साथ-ही-साथ यदि सरकार इन एथलीटस यानि युवा प्रतिभाओं के आर्थिक समस्या का समाधान खोज सके, तो बड़ी सफलता मिल सकती है।

हाल ही में मध्यप्रदेश के महोबा इलाके की आदिवासी लड़कियों का क्रिकेट खेलना एक सुखद संकेत है और यदि  इस तरह के प्रयास ग्रामीण, ज़िला, प्रदेश स्तर पर होते रहें, तो कई प्रतिभाओं को आगे आकर अपने नैसर्गिक हुनर को उभारने में मदद मिलेगी।

खेल-कुद से महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रयास

पिछले कुछ सालों से महिला और बाल विकास मंत्रालय ने खेल मंत्रालय के साथ मिलकर यूनिसेफ को अपने साथ जोड़कर देश के कोने-कोने या सुदूर इलाकों में महिलाओं को खेल के ज़रिए सशक्त बनाने के प्रयास शुरू किए हैं, जिसके परिणाम धीरे-धीरे देखने को भी मिल रहे हैं।

2018-20 के दौरान खेलो इंडिया कार्यक्रमों में महिलाओं की भागीदारी 161 प्रतिशत बढ़ी है।  इस योजना में 657 महिला एथलिटों की पहचान कर उन्हें समर्थन उपलब्ध कराया गया है, जो मौजूदा समय में बढ़कर 1471(223 प्रतिशत) हो गई  है।

इतना ही नहीं  टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम(टीओपीएस) के तहत उच्च प्रतिस्पर्धा वाले खेलों में अपने उन एथलीटों को अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षण, विश्वस्तरीय शारीरिक और मानसिक अनुकूलन, वैज्ञानिक शोध, दिन-प्रतिदिन निगरानी और कांउसलिंग तथा पर्याप्त वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जा रही है, जो ओलंपिक पदक जीतने की क्षमता रखती हैं।

मौजूदा समय में 190 महिला एथलीट इस योजना के तहत प्रशिक्षण ले रहीं हैं।

बदल रहा है सामाज का नज़रिया

खेल के दुनिया में महिलाओं का बेहतरीन प्रदर्शन में फिल्मों ने बहुत बड़े स्तर पर सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव लाने में योगदान दिया है। चक दे इंडिया, दंगल, रश्मि राकेट, सांड की आंख, सायना और इस तरह की कहानीयां, जो महिला एथलिटस को प्रोत्साहित करतीं हैं और ये समाज की सोच में बदलाव लाने का माध्यम बन रहा है।

जिसके कारण युवाओं को घरों से बाहर निकलने, अपने अभिरूचि का खेल चुनने और उसके लिए शारीरिक अभ्यास की गतिविधियों में भाग लेने में जो बाधाएं और आशकाएं थीं, वो कम हुईं हैं।

हमादे देश में महिला एथलिट ज़्यादा-से-ज़्यादा खेल में शिरकत करें और अच्छा प्रदर्शन करें। ओलंपिक्स के उद्देश्य  सिटियस, आल्टियस, फोर्टियस यानि तीव्र, उच्चतर, अधिक मज़बूत के लक्ष्य के करीब अधिक-से-अधिक पहुंच सकें, क्योंकि यह सपने के सच होने की कहानी से कम नहीं है।

महिलाओं की बढ़ती भागीदारी महिला सक्तिकरण की दिशा में बेमिसाल उपलब्धि के रूप में दर्ज होगी।

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