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बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था बेहाल, नीम हकीमों, झोलाछापों के सहारे राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था

बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था बेहाल, नीम हकीमों, झोलाछापों के सहारे राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था

कोरोना की तीसरी लहर में बीते कुछ हफ्तों से देशभर से लगातार बीमारी के आंकड़ों ने फिर से भय का माहौल पैदा कर दिया है। देश के अन्य हिस्सों के मुकाबले स्वास्थ्य क्षेत्रों में पिछड़े राज्यों की स्वास्थ्य व्यवस्था के आंकड़े फिर से चिंता के रूप में उभरने लगे हैं, जिसमें से बिहार भी एक प्रमुख राज्य है। 

यह कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में बुरी तरह प्रभावित होने वाले राज्यों में से एक रहा है। 24 जनवरी तक राज्य में कोरोना के कुल एक्टिव मरीज 14,833 थे, साथ ही 15 दिसंबर की खबर के अनुसार, राज्य में कोविड वैक्सीन की 9 करोड़ तक खुराक दे दी गई हैं।

महामारी की दूसरी लहर में इस बार ना केवल बड़े स्तर पर बिहार के ग्रामीण इलाके इसकी चपेट में आए बल्कि उनको गंभीर स्थिति का सामना भी करना पड़ा जैसे ऑक्सीजन समय पर ना मिलना, वेंटिलेटर की कमी या उसे चलने वाले टेक्निशियंस की कमी।

राजधानी पटना में कई अस्पतालों में खाली ऑक्सीजन सिलेंडर और वेंटिलेटर बेकार पड़े धूल खा रहे थे, जो PM केयर फण्ड से आए थे। भारत के बड़े राज्यों में से एक बिहार भी है लेकिन उसकी जनसंख्या को देखते हुए भी ऑक्सीजन, ऑक्सीजन प्लांट्स बहुत कम हैं। 

कुछ जगहों पर प्लांट्स थे, भी तो उनमें ऑक्सीजन बनाने की प्रक्रिया बंद हो चुकी थी या फिर कुछ वक्त पहले बंद की गई थी। अचानक ऑक्सीजन की मांग बढ़ने से इन बंद पड़े ऑक्सीजन प्लांट्स को दोबारा शुरू करने में अधिक समय लगा।

राज्य में ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी स्वास्थ्य सेवा छोटे क्लिनिकों, झोलाछाप हकीमों और बेहद कम सुविधा वाले सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों के भरोसे चल रही है। बिहार के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवा है, अस्पताल है लेकिन नियमित रूप से डॉक्टर नहीं आते हैं जिससे इलाके के लोगों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 

एम्बुलेंस सेवा और स्ट्रेचर के लिए लोग अभी भी परेशान हैं, इतना ही नहीं महामारी की दूसरी लहर में अचानक स्वास्थ्य सेवाओं में भारी मांग के कारण बिहार के प्राइवेट अस्पताल भी इसमें मददगार साबित नहीं हो सके।

स्वास्थ्यकर्मियों की चुनौतियां

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के अनुमान के अनुसार, तीसरी लहर में लगभग 600 डॉक्टर और 3,000 स्वास्थ्य कार्यकर्ता COVID-19 से संक्रमित हुए जिससे बिहार में स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह से प्रभावित हुईं। दिसम्बर के आखिर में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के 96 वें राष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल 70 से ऊपर डॉक्टर संक्रमित पाए गए, जिसके उद्घाटन में मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर शुरू हो चुकी है।

12 जून (2021 के ए॰एन॰आई॰ की रिपोर्ट के अनुसार, देश में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में सबसे अधिक डॉक्टरों की मौत बिहार में हुई, उत्तर प्रदेश और दिल्ली का स्थान इसके बाद है। आईएमए के अनुसार, बिहार में 111, दिल्ली में 109, उत्तर प्रदेश में 79, पश्चिम बंगाल में 63 और राजस्थान में 43 स्वास्थ्यकर्मियों की मौत हुई है। 

वहीं दक्षिणी राज्यों में, आंध्र प्रदेश ने 35, तेलंगाना में 36 डॉक्टरों, तमिलनाडु में 32, तो वही कर्नाटक और केरल में 9 और 24 स्वास्थ्यकर्मियों की मौतें दर्ज़ की गईं। ये आंकड़े हमें इस चिंता में डालते हैं कि बिहार में डॉक्टर भी आम लोगों की ही तरह भयंकर रूप से कोविड महामारी से प्रभावित हुए हैं।

बिहार में एक सरकारी चिकित्सक पर 20 हज़ार की आबादी आश्रित

बिहार में एक सरकारी चिकित्सक पर 20 हज़ार की आबादी आश्रित है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, चिकित्सक और उन पर आश्रित आबादी का अनुपात 1:1000 होना चाहिए। सेंटर फॉर साईंस एंड एनवायरनमेंट एवं डाउन टू अर्थ पत्रिका द्वारा संयुक्त रूप से ज़ारी की गई स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट एन फिगर्स, 2021 रिपोर्ट के अनुसार, “ग्रामीण भारत में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को 76 प्रतिशत अधिक डॉक्टरों, 56 प्रतिशत अधिक रेडियोग्राफरों और 35 प्रतिशत अधिक लैब तकनीशियनों की आवश्यकता है।”

2021 पटना हाईकोर्ट को बिहार सरकार की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, कुल 5566 स्वीकृत पदों में 2893 जनरल मेडिकल ऑफिसर हैं, 5508 स्पेशिएलिस्ट स्वीकृत पदों में 1795 डॉक्टर हैं। इस कांट्रेक्ट के आधार पर 915 स्वीकृत जनरल मेडिकल ऑफिसर पदों में 279 और 769 कांट्रेक्ट के आधार पर स्पेशलिस्ट के स्वीकृत पदों में 150 चिकित्सक ही हैं।

2020 में कोरोना की पहली लहर के बीच स्वास्थ्य विभाग ने मई महीने में पटना उच्च न्यायालय को जानकारी दी थी कि राज्य के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों के कुल 11645 पद स्वीकृत हैं जबकि 2021 साल में भी अप्रैल महीने में सरकार ने पटना उच्च न्यायालय को बताया कि इन सरकारी अस्पतालों चिकित्सकों के 7355 पद खाली हैं।

2021 में कोरोना संकट में जब स्वास्थ्य विभाग की लचर स्थिति फिर से जाहिर होने लगी तो सरकार ने एक महीने से तीन महीने की अवधि तक के लिए 1000 चिकित्सक की अस्थायी भर्ती के लिए वॉक इन इंटरव्यू का आयोजन किया गया।

चिकित्सकों की कमी का मामला सिर्फ कोरोना संक्रमण तक सीमित नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से यह तथ्य बार-बार सामने आ रहा है कि राज्य में चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों का घोर संकट है। 2019 में चमकी बुखार के भीषण प्रकोप के बीच बिहार सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया था कि राज्य में चिकित्सकों के आधे और नर्सों के तीन चौथाई पद खाली हैं।

18 मई, 2021 को राज्य के अपर मुख्य सचिव ने बताया है कि कुछ माह पहले बिहार में 1451 ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र बंद कर दिए गए थे। इनके चिकित्सकों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटरों में ड्यूटी के लिए तैनात कर दिया गया था। इस वजह से इन केंद्रों में ओपीडी समेत अन्य सेवाएं बंद थीं, जिन्हें वापस भेजकर इन केंद्रों को फिर से खुलवाया गया है।

कोरोना काल में जब जगह-जगह अस्थायी अस्पताल और कोविड सेंटर खोले जा रहे थे, ऐसे समय में सरकार ने इन्हें बंद करने के निर्णय से गैर कोविड मरीज़ों को भी नुकसान हुआ। ग्रामीण क्षेत्रों के ज़्यादातर अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहले से बंद जैसे ही हैं, जहां समय पर सही इलाज मिलना बहुत बार मुश्किल होता है। 

 कोविड के आंकड़ों में उतार चढ़ाव

2 दिसंबर 2021 तक, राज्य में कोविड की मौत का आंकड़ा 9,664 था। 3 दिसंबर की देर रात कोविड की मौत के आंकड़ों में संशोधन किया, जो बढ़कर 12,089 हो गए। 2021 मई तक अस्पष्ट कारणों से बिहार में 75,000 हज़ार मौतें हुई हैं, जो कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान हुई हैं।

यह बात राज्य के नागरिक पंजीकरण प्रणाली के आंकड़ों से सामने आई है, ये आंकड़े चिंता का विषय हैं अगर ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्यव्यवस्था अच्छी होती, तो इनमें से बहुत लोगों को वक्त पर बचाया जा सकता था। इसी अवधि में राज्य में पुष्टि किए गए कोरोनावायरस से हुई मौतों की संख्या 5,163 थी।

राज्य का आम जनमानस के लिए स्वास्थ्य बजट

बिहार में वित्त वर्ष 2021- 22 के लिए 2.18 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया, जो पिछले वित्त वर्ष के बजट से 7,000 करोड़ रुपये अधिक है, जिसमें स्वास्थ्य पर 13,264 करोड़ खर्च कर मूलभूत सुविधाओं को बढ़ाने, सही नए अस्पतालों के निर्माण की भी बात की गई। स्वास्थ्य पर खर्च पहले से अधिक है फिर भी यह इस समय की मांग और बिहार की जनसंख्या के अनुरूप नहीं है। 

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) की शुरुआत 2005 में ग्रामीण आबादी, विशेष रूप से कमज़ोर समूहों को सुलभ, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए की गई थी, जिसके तहत आशा वर्कर को शामिल किया गया था।

महामारी में इनका रोल बहुत अहम था, जो कि मूलभूत ज़रूरतों की कमी के कारण ज़मीनी स्तर पर धराशाई दिखा। इस दौरान इनकी अलग समस्याएं भी रहीं, बिना किसी सुरक्षा या बेहद कम सुरक्षा किट के साथ आशा वर्कर्स ने घर-घर जाकर कोविड के मरीज़ों तक अपनी पहुंच बनाई थी। 

अगर ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं अच्छी हो जाएं, तो इसका सकारात्मक प्रभाव हर स्तर पर दिखाई देगा और कोविड   महामारी जैसी बड़ी मुसीबतों से लड़ने में सहयोग देगा। राज्य और केंद में बेहतर तालमेल बनाने और किसी भी परिस्थिति को नियंत्रण करने में भी मदद मिलेगी इसलिए यह ज़रुरी है कि बिहार की ग्रामीण आबादी के लिए स्वास्थ्य मिशन जैसे कार्यक्रम को और पहले से अधिक मज़बूत बनाया जाए। 

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