असदुद्दीन ओवैसी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष हैं। वो हैदराबाद लोकसभा क्षेत्र से संसद सदस्य हैं। उस्मानिया विश्वविद्यालय से ‘बैचलर ऑफ आर्ट्स’ में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वो उच्च अध्ययन के लिए लंदन चले गए।
कौन है असदुद्दीन ओवैसी
उन्होंने लंदन के लिंकन इन में ‘बैचलर ऑफ लॉज़’ और ‘बैरिस्टर-एट-लॉ’ का अध्ययन किया और वो अधिवक्ता बन गए। उनका घर का नाम नकीब-ए-मिल्लत, कायद है और आमतौर पर उन्हें असद भाई के नाम से जाना जाता है। उनकी राजनीति मुख्य रूप से मुसलमानों और दलितों के आसपास केंद्रित है।
असदुद्दीन से ‘नेता’!
आज़ादी के 75 वर्षों के बावजूद इस देश में मुस्लिम समाज अपने आपको, हाशिए पर देखता है। आज जब भी देश में चुनाव होता है, तो ये समुदाय बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है लेकिन इनके मुद्दे हमेशा नदारद रहें हैं और जब असदुद्दीन ओवैसी ने ये देखा, तब उन्हें लगा कि क्यों ना इसी अवसर को भुनाया जाए और इसी दौरान उन्होंने अपने आप को इस तरह की राजनीति में स्थापित किया।
उन्होंने संयुक्त आंध्र प्रदेश से निकल कर महाराष्ट्र के नांदेड़ को अपनी राजनीति की प्रोयोगशाला बनाया जहां, उन्हें कामयबी भी मिली और उसी से उत्साहित होकर वो फिर अन्य राज्यों में पैर पसारने लगे।
मुस्लिम समाज में उन्होंने प्रतिनिधित्व के मुद्दे को उठाकर मुस्लिम समाज का दिल जीत लिया और संसद में मुसलमानों के प्रत्येक मुद्दे को बेबाक राय से संसद का ध्यान खींचा इसलिए दलित और मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए असदुद्दीन ओवैसी नायक है।
नेता से ‘खलनायक’
धुर दक्षिणपंथी विचारधारा को लगता है कि यह ‘जिन्ना’ का नया अवतार है, क्योंकि इनकी बोलने की शैली और तथ्यात्मक तरीके से बात रखने की शैली ने दक्षिणपंथी विचारधारा को मानने वालों को परेशान किया है, जिसमें प्रमुख रूप से आरएसएस, भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना, बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद इत्यादि से जुड़े हुए लोग हैं, जो इन्हें खलनायक मानते हैं। असदुद्दीन ओवैसी को खलनायक मानने वालों की सूची और भी लंबी है।
भारतीय राजनीति में तथाकथित रूप से अपने आप को धर्मनिरपेक्ष मानने वाली राजनीतिक पार्टियों में भी असदुद्दीन ओवैसी के लिए राय कमोबेश यही है कि ये भारतीय राजनीति के खलनायक हैं, क्योंकि इनकी वज़ह से वोटों का धुर्वीकरण होता है, जिससे दक्षिणपंथी पार्टियों को लाभ मिलता है।
जिसमें आरोप लगाने वाली राजनीतिक दलों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल,राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस इत्यादि दल हैं।
असदुद्दीन ओवैसी और चुनाव
जब असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने महाराष्ट्र का रुख किया, तब वहां के राजनीतिक दलों में हलचल मच गई, हालांकि इसमें इनको महज़ 2 विधानसभा सीट ही मिलीं, उसके बाद पुनः विधानसभा में दो सीट और लोकसभा में एक सीट मिली।
उत्तरप्रदेश में पिछली बार भी इन्हें निराशा हाथ लगी थी और इस बार भी विधानसभा चुनाव 2022 में भी निराशा ही हाथ आई।
वहीं, तेलंगाना के बाद बिहार ने ही इनको कुछ ऊर्जा दी 2019 में एक सीट हासिल की और 2020 में 5 विधायकों ने जीत दिलाई। झारखंड में भी इन्हें निराशा हाथ लगी और संघटन को मज़बूत करने में लगे हुए हैं और बंगाल में संगठन नहीं होने के कारण इन्हें निराशा हाथ लगी लेकिन सत्तारूढ़ पार्टीयों को ज़रूर इन्होंने चिंता में डाल दिया था।
यहां कई जगहों पर शानदार प्रदर्शन किया और निर्दलीय उम्मीदवार के साथ हाथ मिलाकर गोधरा में अपनी उपस्थिति दर्ज की साथ ही कर्नाटक चुनाव में जेडीएस पार्टी को समर्थन दिया ।
साथ ही तमिलनाडु नगर निगम चुनाव में भी उपस्थित दर्ज की। अब इनकी निगाह राजस्थान, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश तथा अन्य राज्यों पर है, जिससे कई राजनीतिक दलों को एक अलग ही एहसास से गुज़रना पड़ रहा है।
बेहतर प्रदर्शन के लिए संसद सम्मान
ओवैसी एक पढ़े-लिखे हुए चतुर राजनेता हैं, जिनकी बातें भारतीय संविधान के दायरे में होती हैं, उन्हें बेहतरीन प्रदर्शन के लिए संसद सम्मान मिल चुका है।
इस वर्ष भी लोकमत समाचार ने उन्हें बेहतरीन सांसद के लिए सम्मानित किया है, वो कुशल वक्ता और दूरदर्शी राजनेता है। 2014 के बाद से नरेंद्र मोदी के साथ अप्रत्याशित रूप से इनकी भी प्रसिद्धि में उछाल आया है।
आप इन्हें पसंद करें या ना करें तथा वोट दें या ना दें लेकिन भारतीय राजनीति में इनकी उपेक्षा नहीं कि जा सकती है, क्योंकि इन्होंने अपनी मेहनत और दूरदर्शिता की वज़ह से अपनी पार्टी आल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने का प्रयास किया है।