उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद ज़िले में AIMIM के सदर असदुद्दीन ओवैसी के काफिले पर हमले के बाद मामूली संशोधन के साथ पुरानी कहावत याद आ गई। पुराने ज़माने में लोग कहा करते थे कि “सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे” लेकिन अब चुनाव से पहले इसी नाम से नया वारंट सामने आया है कि “ना सांप मरे ना लाठी टूटे” ये हमला उस वक्त हुआ जब बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी उत्तर प्रदेश के मेरठ में चुनाव का प्रचार खत्म कर दिल्ली लौट रहे थे। उनकी गाड़ी पर तीन से चार राउंड फायरिंग की गई। इस हमले की खबर खुद ओवैसी ने ट्वीट करके दी थी।
कुछ देर पहले छिजारसी टोल गेट पर मेरी गाड़ी पर गोलियाँ चलाई गयी। 4 राउंड फ़ायर हुए। 3-4 लोग थे, सब के सब भाग गए और हथियार वहीं छोड़ गए। मेरी गाड़ी पंक्चर हो गयी, लेकिन मैं दूसरी गाड़ी में बैठ कर वहाँ से निकल गया। हम सब महफ़ूज़ हैं। अलहमदु’लिलाह। pic.twitter.com/Q55qJbYRih
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) February 3, 2022
इस हमले के लिए हापुड़ के छिजारसी टोलगेट को चुना गया, जहां एक CCTV कैमरा मौजूद था। प्रमुख समाचार एजेंसी ANI पास में मौजूद थी। उसने तुरंत एक तस्वीर ली और उसे मीडिया के साथ साझा किया और गोदी मीडिया में इस पर बहस भी छिड़ गई।
घटना में हमलावरों का भी चयन किया गया था, जिन्हें भाजपा से संबद्धता साबित करना कोई मुश्किल काम नहीं था। इसलिए तत्काल FIR दर्ज़ हुई और सचिन व शुभम हमलावरों को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने असदुद्दीन ओवैसी के बयानों से निराश होकर फायरिंग करने की बात को भी स्वीकार कर लिया।
बीजेपी ने भी उनसे अपने जुड़ाव से इनकार नहीं किया और ना ही उन्हें सस्पेंड करने की कोई बात की। वैसे, इस फायरिंग में सिर्फ वाहन घायल हुआ और उसके टायर पंचर हुए । AIMIM के सदर असदुद्दीन ओवैसी दूसरी गाड़ी में बैठ कर दिल्ली पहुंचे लेकिन चूंकि ये एक अच्छी तरह से समझा जाने वाला मामला है, इसलिए उन्होंने घटना का विवरण देने के बाद चुनाव आयोग से घटना की स्वतंत्र जांच की मांग की है।
ये एक बहुत ही उचित मांग है, क्योंकि उनके मुताबिक ये हमला क्यों हुआ? हमला करने वाले कौन लोग हैं? इसके पीछे किसका दिमाग है? किसने ये साजिश की? ये जानना बहुत ज़रूरी है।
ये एक दिलचस्प तथ्य है कि देश के बच्चे उपरोक्त प्रश्नों का उत्तर जानते हैं। ये हमला पश्चिमी यूपी में हुआ, जहां मतदान बहुत ज़ल्द होने वाला है, इसलिए राजनीतिक लाभ उठाने के लिए यह किया गया था। यह भी एक सच्चाई है कि किसान आंदोलन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिकता को बहुत कम कर दिया है। इसलिए बीजेपी को बार-बार मुजफ्फरनगर दंगों की याद दिलानी पड़ रही है।
लोग अपने अतीत को भूलकर भविष्य की ओर देख रहे हैं लेकिन भाजपा बार-बार अतीत को याद करा रही है। समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन ने बीजेपी की हालत खराब कर दी है, इसलिए कभी तो जयंत चौधरी को गलत घर में जाने का ताना देकर अपने घर में बुलाया जाता है और कभी यह कहकर डराया जाता है कि चुनाव के बाद इनकी जगह आजम खान आ जाएंगे।
इससे बात नहीं बनती, तो मुख्यमंत्री गरमी उतारने की धमकी देते हैं लेकिन वो दांव भी खाली जाता है तो मुल्क की गृहमंत्री मुजफ्फरनगर और सहारनपुर में आग लगाने और शरारत भड़काने का डर दिखाते हैं। इसलिए किसको राजनीतिक लाभ पहुंचाने के लिए हमला किया गया? ये जानने के लिए मानसिक ऊर्जा बर्बाद करने की कोई ज़रूरत नहीं है।
हमलावर कौन है? यह गति भी पलक झपकते सुलझ गई, क्योंकि इस हमले का आरोपी सचिन जो पिस्तौल के साथ गिरफ्तार हुआ है, बीजेपी के सभी छोटे बड़े नेताओं के साथ उसके संबंध सबके सामने आ गए। उनमे केंद्रीय मंत्री संजीव बलयान, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, मुख्यमंत्री नेताओं आदित्यनाथ, नोएडा की संसद सदस्य महेश शर्मा के साथ उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर मौजूद हैं। उसकी फेसबुक प्रोफाइल पर परिचय “देश भगत सचिन हिंदू” लिखा है और उसने तलवार भी हाथों में लहरा रखी है।
दूसरा आरोपी शुभम खुद ही पुलिस स्टेशन में पहुंच गया, ताकि सरकार को कोई परेशानी ना हो अब उन पर कत्ल के आरोप में IPC 307 और CLA 7 Act के अंतर्गत मुकदमा दर्ज़ कर लिया गया है और पुलिस उन दोनों से पूछताछ कर रही है लेकिन क्या पूछताछ कर रही है, यह किसी की समझ में नहीं आ सकता क्योंकि यह भी पता चल गया है, कि इनका संबंध सहारनपुर से है और वो दोनों दोस्त हैं।
जाहिरी तौर पर बीजेपी की सबसे बड़ी राजनीतिक दुश्मन मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन है। इस हमले से मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन का फायदा होगा। सहानुभूति के कारण उसको जो वोट मिलने वाले थे, उसमें कुछ-ना-कुछ वृद्धि ही होगी। इसलिए ये भी कहा जा सकता है कि बीजेपी ने इस हमले से अपने दुश्मन AIMIM का भला कर दिया है।
इस हमले में शामिल आरोपियों की तस्वीर और उनका बीजेपी नेताओं से संबंध में बीजेपी के सेक्युलर दुश्मन निकाल-निकाल कर फैला रहे हैं। ऐसा करने से बीजेपी को फायदा होगा। बीजेपी ने मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाकर जिन लोगों को अपने पास किया है, वह महसूस करेंगे कि यह पार्टी सिर्फ मौखिक संचय खर्च के लिए पर्याप्त नहीं है बल्कि अपने ही लोगों से हिंदुओं के दुश्मनों पर भी हमला भी कराती है, इस तरह बीजेपी के दुश्मन अपने धर्म युद्ध से बीजेपी का फायदा करेंगे।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के सदर और संसदीय सदस्य असदुद्दीन ओवैसी पर यह दूसरा हमला है। इससे पहले 21 सितंबर को उनकी सरकारी आधिकारिक आवास पर चरमपंथी समूह हिंदू सेना के एक दर्ज़न से अधिक कार्यकर्ताओं ने हमला कर दिया था। वो भी एक अद्भुत घटना थी, क्योंकि यह राष्ट्रीय चुनाव आयोग के मुख्यालय से कुछ ही कदम की दूरी पर हुई थी।
स घर के ठीक सामने संसद मार्ग पुलिस स्टेशन है और राष्ट्रीय राजधानी का यह पूरा इलाका हाई सिक्योरिटी जोन में आता है। इसके बावजूद आतंकियों ने दिनदहाड़े ओवैसी के आवास में ना सिर्फ तोड़फोड़ की बल्कि फेसबुक पर लाइव कर के अपनी उपलब्धि पर गर्व भी जताया। उनके नाम की नामप्लेट भी तोड़ दी और अंदर कुल्हाड़ी भी फेंकी लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि उन लोगों ने हमला करने के लिए ऐसे समय को चुना जब वो अपनी पार्टी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए लखनऊ गए हुए थे।
इस हमले के बाद ओवैसी साहब ने ट्वीट करके कहा था कि उन लोगो ने संप्रदायिक नारे लगाए, मेरा कत्ल करने की धमकी दी। ये लोग कायर होते हैं और हमेशा अपनी कायरता को समूह के रूप में दिखाते हैं। मेरे घर पर तीसरी मर्तबा निशाना साधा गया है। पिछली बार ऐसा हुआ था, जो मेरे साथ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ना सिर्फ बल्कि गृह मंत्री अमित शाह भी थे। इस हमले में असदुद्दीन ओवैसी का कोई नुकसान नहीं हुआ था, बल्कि थोड़ा-बहुत राजनीतिक लाभ ही हुआ था।