चुनाव का मौसम आते ही वो नियम शुरू हो जाते हैं जिसकी इजाज़त ना संविधान देता है ना ही हमारे देश का कानून। प्रांतीय चुनावों के कारण यह सीजन पूरे साल भर रहता है। इसमें होने वाले नियम राजनीतिक व्यवस्था और चुनाव प्रचार का हिस्सा बन गए हैं, क्योंकि एक तरफ नेताओं को खरीदने-बेचने का बाज़ार लगता है, विपक्षी नेताओं के घरों और दफ्तरों पर छापे मारे जाते हैं, तो दूसरी ओर मतदाताओं को लुभाने के लिए ज़ोर-शोर से दावे किए जाते हैं और लालच के लिए उन्हें आकर्षित करने के लिए उपहारों की बारिश की जाती है।
बीजेपी लीडर इसमें विचित्र रूप से पर्याप्त हुए हैं, क्योंकि केंद्र और चुनाव होने वाले राज्यों में बीजेपी की सरकार है इसलिए चुनाव अभियान को हिंदू-मुस्लिम रंग दिए बगैर बात नहीं बनती है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इन गलत कामों पर संज्ञान ना, तो न्यायतंत्र लेता है ना ही देश का चुनाव आयोग जिस पर देश में निष्पक्ष रूप से चुनाव कराने की एक बड़ी महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी होती है।
पांचों राज्यों में जिस सूरत-ए-हाल हाल का सामना है, वो बेहद चिंताजनक और चौंकाने वाला है। दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल को छोड़कर अपनी पार्टी में अन्य दलों के नेताओं को शामिल करवाने की कला में विशेषज्ञ इस बात से बहुत परेशान हैं कि गंगा उल्टी क्यों बह रही है?
वो यह समझ नहीं पा रहे है कि उत्तर प्रदेश की चुनावी हवा उनकी मर्जी के खिलाफ अपना रुख क्यों निर्दिष्ट कर रही है और क्या कारण है कि इस बार उनकी चालें ना सिर्फ नाकाम हो रही हैं बल्कि उन पर ही उल्टी पड़ती जा रही हैं।
केंद्र में भारी बहुमत के साथ सत्ता में आना और अधिकांश राज्यों में अपनी जड़ें मज़बूत करने वाली बीजेपी को पांच राज्यों में, जो परिस्थितियों का सामना करना है, वो उसके लिए बेहद आश्चर्यजनक और चौंकाने वाला भी है। हालांकि, जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, उनमें कम-से-कम चार राज्यों में उसकी हार साफ दिखाई दे रही है।
ये 4 राज्य हैं पंजाब, उत्तराखंड, गोवा, और मणिपुर में बीजेपी सत्ता में है। पिछले चुनावों में गोवा और मणिपुर में बीजेपी हार गई थी और कॉंग्रेस की हुकूमत बनने वाली थी, लेकिन उसने जोड़-तोड़ करके वहां भी अपनी सरकार बना ली थी।
उत्तराखंड में भी उन्होंने ऐसी गति उठाई कि वो सत्ता में आ गई। पंजाब में तो उसे हार मिली थी, वहां कॉंग्रेस की सरकार स्थापित हुई लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह ने कॉंग्रेस से निकलकर अलग पार्टी बनाई है, तो बीजेपी को इस तिनके का सहारा लेना पड़ रहा है। अब कैप्टन अमरेंद्र सिंह जिनको एक छूटा हुआ कारतूस समझा जा रहा है, बीजेपी को कितना फायदा पहुचाएंगे, सकते हैं ये तो आने वाला समय ही बताएगा।
वास्तव में अमरेंद्र सिंह खुद बीजेपी के कांधे पर सवार होकर वे अपने राजनीतिक अस्तित्व को सुनिश्चित करना चाहते हैं। इधर इस बार गोवा में आम आदमी पार्टी पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। उन्होंने लोगों को खुश करने के लिए कई आकर्षक घोषणाएं की हैं। उत्तराखंड में भाजपा की स्थिति संतोषजनक हैं, क्योंकि वहां 1 वर्ष के अंदर पहले ही तीन मुख्यमंत्री बदले गए हैं। क्या है परिदृश्य विस्तार से समझिए –
भाजपा
यदि हम भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी पिछले सात सालों से डिजिटल इंडिया का कैंपेन चला रही है। लगभग सोशल मीडिया के सारे प्रारूपों पर बीजेपी का एकाधिकार है। ऐसे में विधानसभा चुनाव प्रचार को डिजिटल स्वरूप देने में उसे खास दिक्कत नहीं आई।
पार्टी के काशी क्षेत्र के आईटी विंग के प्रमुख विजय गुप्ता ने पत्रिका संग बातचीत में बताया कि भाजपा का वाराणसी के रोहनिया स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में भव्य स्टूडियो निर्माण अंतिम दौर में है। इसके अलावा पार्टी के 30 आईटी विशेषज्ञ दिन-रात जुटे हैं, पार्टी के डिजिटल प्रचार को मजबूत धार देने में। इस क्षेत्रीय कार्यालय से क्षेत्र के सभी 71ज़िलों की टीमें भी जुड़ी हुई हैं।
क्षेत्र के सभी ज़िलों को मिला कर वाराणसी में 78 लोगों की टीम काम कर रही है। इसी तरह से पूरे प्रदेश में काम चल रहा है। इतना ही नहीं अब तो कैंटोनमेंट क्षेत्र स्थित होटल डि पेरिस में मीडिया सेंटर भी लगभग बन कर तैयार हो गया है। यहां भी आकर्षक स्टूडियो व वार रूम तैयार किया जा रहा है, ताकि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पदाधिकारियों और प्रत्याशियों को किसी तरह की दिक्कत ना हो।
आम आदमी पार्टी
यदि हम वहीं आम आदमी पार्टी की चुनावों के प्रचार-प्रसार को लेकर डिजिटल तैयारियों की बात करें, तो पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता मुकेश सिंह बताते हैं कि आम आदमी पार्टी के डिजिटल कैंपेन को ही आधार मान कर केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने यूपी या अन्य राज्यों में डिजिटल कैंपेन को अनुमति दी है। सिंह कहते हैं कि हम तो कोरोना काल से पहले से ही डिजिटल प्रचार कर रहे हैं। हमारी लगभग सारी मीटिंग डिजिटली होती रही हैं।
यूपी विधानसभा चुनाव की बात करें, तो वाराणसी में पहली वर्चुअल रैली आम आदमी पार्टी ने की जिसमें पार्टी के यूपी प्रभारी संजय सिंह ने वाराणसी की आठों विधानसभा क्षेत्रों से जुड़े ना केवल पार्टी कार्यकर्ता बल्कि मतदाताओं को संबोधित किया।
उन्होंने दावा किया है कि वर्चुअल रैली में कुल दो लाख 65 हज़ार लोग शामिल हुए। इसके अलावा पार्टी का घर-घर प्रचार का फार्मूला दिल्ली में पहले ही सफल हो चुका है। उन्होंने बताया कि हमारा हर विधानसभा क्षेत्र में ह्वाट्सएप्प ग्रुप भी है और ग्रुप से कम-से-कम 50 हज़ार लोग जुड़े हुए हैं।
ऐसे करीब कुल 389 ग्रुप हैं, जहां तक टेक्निकल मैन पॉवर की बात है तो, सोशल मीडिया के वॉलेंटियर दिन-रात इस काम में जुटे हुए हैं। उन्होंने कहा कि हमारा स्टूडियो नहीं है बल्कि हमारी पूरी टीम विधानसभा स्तर पर ज़िला मंडल, प्रदेश प्रकोष्ठ में बंटी हुई है और एक छोटा-सा-छोटा मैसेज भी ऊपर से नीचे तक पलक झपकते पहुंचा रहे हैं। हर विधानसभा स्तर पर 100 लोग और ज़िला स्तर पर 700 ऐसे विशेषज्ञों की टीम काम कर रही है।
समाजवादी पार्टी
हम ठीक वहीं समाजवादी पार्टी की बात करें, तो प्रदेश प्रवक्ता मनोज राय धूपचंडी ने बताया कि सपा कार्यकर्ताओं की टीम लगाई गई है। इस टीम में तकनीकी दक्ष युवाओं को शामिल किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि लखनऊ से जो भी मैटेरियल आता है, हम उसे पलक झपकते ही विधानसभा वार भेजते हैं।
उन्होंने बताया कि वैसे तो सोशल मीडिया के हर प्रारूप पर पार्टी के कार्यकर्ता सक्रिय हैं। ह्वाट्सएप्प, हमारी आईटी टीम इनका बखूबी संचालन कर रही हैं। मनोज बताते हैं कि विधानसभा चुनाव की दृष्टि से व्हाट्सएप्प, फेसबुक, ट्विटर व इंस्ट्रा पर लगातार प्रचार ज़ारी है। इसके अलावा जूम मीटिंग भी हो रही हैं।
कॉंग्रेस
कॉंग्रेस की बात करें, तो पार्टी के महानगर अध्यक्ष राघवेंद्र चौबे कहते हैं कि विधानसभावार वार रूम बन चुका है। यूथ कॉंग्रेस की सोशल मीडिया टीम चुनाव अधिसूचना ज़ारी होने से बहुत पहले से सक्रिय है। ऐसी 140 विशेषज्ञों की टीम लगातार अपने काम को बखूबी अंजाम दे रही है।
इस टीम को दिल्ली व लखनऊ के विशेषज्ञों ने प्रशिक्षित किया है। समय-समय पर आईटी विशेषज्ञों की टीम हर कमी को तत्काल दूर करती रहती है। इसके साथ ही हम लोग जूम लिंक से मीटिंग कर रहे हैं। कोरोना की पहली लहर के दौरान ही पार्टी ने अपने डिजिटल स्वरूप पर काम करना शुरू कर दिया था।
दिल्ली व लखनऊ से पार्टी की महासचिव व यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा और अन्य बड़े नेता मीटिंग करते रहे हैं, जिसमें सैकड़ों कार्यकर्ता शामिल होते हैं। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कोरोना की पहली व दूसरी लहर में कई वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस भी की थीं। यूपी चुनाव की बात करें, तो पार्टी प्रभारी प्रियंका गांधी ने प्रत्याशियों की पहली सूची ज़ारी की तो वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस भी की।
उन्होंने बताया कि वाराणसी के सभी 90 वार्डों में हमारी डिजिटल टीम सक्रिय है। हर उम्मीदवार का अपना-अपना व्हाट्सएप्प ग्रुप, फेसबुक पेज़ है। इसी तरह से ट्विटर और इंस्ट्रा पर भी सारी टीमें सक्रिय हैं।
सभी पार्टियां उत्तर प्रदेश के चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंकती नज़र आ रही हैं अब देखना यह है कि इस उत्तर प्रदेश के इस विधानसभा चुनाव की घमासान लड़ाई में कौन मुख्यमंत्री बनेगा?