म्हारी छोरी, छोरों से कम हैं के?
नहीं! दोनों अलग हैं लेकिन भारत देश में आज भी छोरियां छोरो से कम हैं।
क्या लड़के-लड़की समान हैं?
क्योंकि जिस देश में लोग ये बात गर्व से बोलें कि (म्हारी छोरी, छोरो से कम है के) इसका मतलब 100% कम हैं।
पहली बात तो ये है कि लड़का-लड़की दोनों अलग हैं। उनका दिमाग अलग हैं, उनका शरीर अलग हैं, उनके हार्मोन्स अलग हैं, उनके संघर्ष अलग हैं, उनका कम्पेरिजन ही ग़लत है! क्योंकि उनकी अपनी-अपनी विशेषताएं हैं।
छोरे-छोरी की तुलना क्यों?
दूसरी बात ये है कि कभी आपको अगर सैमसंग ब्रांड की एपल से तुलना करना है, तो कैसे करेंगे?
मेरा एपल, सैमसंग से कम है क्या या मेरा सैमसंग, एपल से कम है क्या? बिल्कुल आप दूसरे तरीके से करेंगे, क्योंकि हमेशा कम को ज़्यादा से किया जाता है।
एक बार के लिए बोल कर देखो (म्हारे छोरे छोरियों से कम हैं के)। लोग इस बात को स्वीकार ही नहीं करेंगे, क्योंकि लड़के तो हमने पहले से ही लड़कियों से ताकतवर मान रखे हैं।
बड़ी शर्म कि बात है कि जिस फिल्म का ये डायलॉग है वो भारत कि तीसरी सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म है, जिसका नाम है दंगल।
क्या बराबरी का पर्याय गाली ही है?
जब भी किसी लड़की को लड़कों से कम्पेयर किया जाता है, तब उसे गुस्सैल, गाली देने वाली, लड़ाई करने वाली दिखाया जाता है लेकिन अगर पुरुष होने का मतलब यही है तो बहुत गलत है
और अगर महिला होना मतलब शांत होना, सहनशील होना, लड़ाई झगड़े ना करके प्यार करना है, तो महिला होना बेशक ज़्यादा बेहतर है।
पिछले हज़ारों सालों के इतिहास में पृथ्वी ग्रह पुरुष प्रधान ही रहा है, जहां सिर्फ युद्ध, कत्लेआम, सज़ा, प्रताड़ना, गुस्सा, बलात्कार यही सब हुआ है। अगर आज हम विश्व शांति की बात करते हैं और ये सब अगर महिलाओं की विशेषताएं हैं,
तो संसार को महिलाओं के गुण अपनाने कि ज़रुरत है, क्योंकि इससे अगर संसार में शांति आती है तो क्या बुराई है?
क्या है असल महिला सशक्तिकरण?
महिला सशक्तिकरण का ये अर्थ नही है कि वो कुश्ती करें, बॉक्सिंग करें। महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाएं वो हर काम कर सकें, जो वो करना चाहतीं हैं, कोई उन्हें इस बात के लिए ना रोक सके कि वो महिला है इसलिए वो ये काम नहीं कर सकती।
अगर एक महिला पायदान, पर्दे या खाना बनाकर अपना व्यापार शुरू करना चाहती है या वो सॉफ्टवेयर इंजिनियर, आर्किटेक्ट या आर्मी में जाना चाहती है,
तब उसका परिवार, उसका समाज उसका साथ दे यही असल महिला सशक्तिकरण होगा। वो ये ना कहे कि तुम महिला हो, ये पुरुषों का काम है।
बहन/बहू/बेटी टैग क्यों?
वो ये काम ज़रूरी नहीं है कि एक अच्छी बेटी, बहू, दीदी, या बहन बनकर करें, वो किसी कि गर्ल फ्रेंड भी हो सकती है। हमारे देश मे सिर्फ बेटी, बहू, बहन कि ही इज़्जत है इसलिए तो अगर कोई राजनेत्री भी होगी तो भी वह बहन मायावती या ममता दीदी ही हो सकती है।
अगर एक लड़की किसी कि गर्लफ्रेंड है, तो वो कभी भी अच्छे काम नहीं कर सकती, क्योंकि वो तो पहले ही चरित्रहीन साबित हो चुकी है। जैसे अगर किसी लड़की का बलात्कार होता है, तब लोग बोलने लगते हैं बहन, बेटियों का बलात्कार होता है मगर क्यों?
एक लड़की की इज़्जत का क्या?
क्या किसी कि गर्लफ्रेंड का बलात्कार नहीं हो सकता या फिर गर्लफ्रेंड का अर्थ ही है कि वो बलात्कार करवाने के लिए तैयार हैं। बहन बेटियों कि इज़्जत करो मगर क्यों गर्लफ्रेंड कि क्यों नहीं?
ये भारत में बलात्कार का बहुत बड़ा कारण है, क्योंकि जिनका बलात्कार होता हैं वो अक्सर बहन बेटियां नहीं होतीं! वो या तो खुद की गर्लफ्रेंड होतीं हैं या गर्लफ्रेंड बनने से मना करने वाली होतीं हैं, या किसी दूसरे कि गर्लफ्रेंड या फ्रेंड होतीं हैं।इस देश में कोई भी लड़की, जो बहन-बेटी नहीं है उसका बलात्कार तो कर ही सकते हैंना?
क्योंकि वो मुझे देख कर हंस रही थी या वो मुझे चालू लगती है, क्योंकि वो लड़कों से खुलकर बात करती है।
दरअसल, जिसका भी बलात्कार होता है, वो लड़की बहन बेटी नहीं, बल्कि एक साधारण लड़की होती है, जो सेक्स के लिए मना कर देती है लेकिन वो सेक्स के लिए कैसे मना कर सकती है? जब वो खुलकर लड़कों से बात करती हैं तो सेक्स तो करना चाहती होगी ना।
अब यहां सहमति की बात कहां से आ गई? ये क्या बात हुई कि दूसरे लड़के से सेक्स कर लिया और मुझसे नहीं, इतनी हिम्मत कैसे हो सकती है उसकी? लोग अभी तक सहमति का अर्थ समझ नहीं पाए हैं।
उत्पीड़न हर किसी का अनुभव
बलात्कार से ज़्यादा सामान्य तो उत्पीड़न है। आप कभी भी, किसी भी लड़की से पूछ सकते हैं और ऐसी आपको कोई लड़की नहीं मिलेगी, जो ये कह सके कि उसके साथ बस, ट्रेन या सार्वजनिक जगह पर किसी पुरुष ने गलत व्यवहार नहीं किया है।
इंटरनेट पर उसके साथ बदतमीज़ी भले ही ना की हो, उससे न्यूड फोटो ना मांगी हो मगर ये सब हर रोज़ होता है और लड़कियों को सहना पड़ता है, क्योंकि हम इस देश में पुरुषों को बहन-बेटियों की इज़्ज़त करना सिखाते हैं ना कि लड़कियों की।
इसलिए तो लोग गाली देते समय भी बोलते हैं, तेरी माँ-बहन का रेप कर दूंगा कोई ये नहीं बोलता की तेरी फ्रैंड या गर्लफ्रेंड का रेप कर दूंगा, क्योंकि उसकी तो कोई इज़्जत ही नहीं है तो उतरेगी कहां से?
इस देश मे हम अभी तक लड़के-लड़की के बीच दोस्त के रिश्ते का ही स्वागत नहीं कर पाए हैं, गर्लफ्रेंड-ब्वॉयफ्रेंड तो दूर की बात है।