नीतीश कुमार ये नाम 15 साल पहले ना सिर्फ बिहार की राजनीति में चमका बल्कि भारत की राजनीति में भी मज़बूत पकड़ के साथ आया। इनकी सरकार में बिहार में एक नई चमक थी, जिसमें बहुत कुछ बदला।
उनकी सरकार की कामयाबी के पहले पांच साल शिक्षा, मिड-डे मील और खासकर लड़कियों के लिए साइकिल योजना। सुबह 7 बजे से सैकड़ों साइकिलों की घण्टियों की आवाज़ें हाई स्कूल के लिए रवाना होती थीं, जिसे सुन कर ऐसा लगता था, अब यह राज्य शिक्षा के मामले में केरल के करीब पहुंच जाएगा।
ऐसे तमाम लोग जो ये बोल कर लड़कियों को स्कूल नहीं भेजते थे कि घर और खेत में काम कौन करेगा? सिर्फ एक साइकिल के नाम पर अपने घर की बच्चियों के नाम स्कूलों में लिखवाने लगे। इस योजना ने कई लड़कियों को पहली बार कलम उठाने में मदद की थी। इसके साथ ही राज्य के सरकारी स्कूलों की मरम्मत पर भी ध्यान दिया गया और जर्जर हालत वाले स्कूलों को दुरुस्त किया गया।
स्कूलों में विद्यार्थियों के लिए शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए पढ़े-लिखे शिक्षा मित्रों की नियुक्ति की गई थी और ऐसे शिक्षा मित्रों को उसी गाँव या आस-पास के क्षेत्रों से नियुक्त किया गया था।
आशा, आंगनवाड़ी और ANM गाँव के सरकारी अस्पताल भी दुरुस्त होने शुरू हुए, जो बने तो नेहरु के समयकाल में थे, लेकिन सालों बाद लोग उन पर भरोसा करके वहां जाने लगे। इसकी प्रमुख वजह थी, आशा और ANM की एक सुचारु व्यवस्था करना, जो घर-घर जाकर सही जानकारी और अस्पताल के मध्य एक कड़ी का काम करती हैं, जिस गाँव के लोग अपने घर की गर्भवती महिलाओं को प्राइवेट या ज़िला सदर अस्पताल ले जाते थे, अब वहां आस-पास के गाँवो के लोग अपने घर की महिलाओं को डिलीवरी के लिए वहां लेकर आने लगे।
यातायात व्यवस्था के लिए सड़कें जो पिछली सरकार के समय में घोर उपेक्षित रही, उनको ठीक किया गया। बिजली का विस्तार हुआ, ये काफी पहले भी हुआ था, लेकिन जहां नहीं पहुंच पाया, वहां पहली बार इसी सरकार ने पहुंचाया था। राज्य में अपराधों में भी कमी आई और कानून व्यवस्था को दुरुस्त किया गया।
अतीत की ओर वापसी की शुरुआत
नीतीश सरकार द्वारा ऊपर किए गए सभी कार्यों में आज की तरह ही केंद्र सरकार का पूरा सहयोग था और जनता को इसका सीधा फायदा भी मिला था, लेकिन दूसरे कार्यकाल में आसान जीत ने या पहले कार्यकाल के कामों की अति ने आगे के लिए खराब काम की शुरुआत कर दी। राज्य में आम जनमानस के लिए हर वो व्यवस्था जिसे पहले 5 साल के कार्यकाल में अच्छे से शुरू किया गया था, वह अब अनदेखी का शिकार होने लगी।
शिक्षा
राज्य में लड़कियों को सिर्फ साइकिल दे दी जाए और लड़कियों को होने वाली अन्य परेशानियों की अनदेखी की जाए, तो बात वापस वही पुराने ढर्रे पर आ जाती है। 12 वीं के बाद कॉलेज जाने वाली लड़कियों की संख्या गौर करने वाली है, जहां ठीक व्यवस्था तो दूर विद्यार्थियों को सालों से अपने 1st ईयर की परीक्षाओं का इंतज़ार ही खत्म नहीं हो रहा है।
नए स्कूल नहीं बने या कम बने। जनसंख्या बढ़ने के साथ शिक्षा की मांग के साथ तालमेल कमज़ोर हुआ। इससे बच्चे ज़्यादा और स्कूल में जगह कम थी। बारिश के वक्त 5वीं कक्षा तक की अचानक छुट्टी हो जाती थी, जिसने शिक्षा को बहुत बुरे तरीके से प्रभावित किया।
स्कूलों में समय से शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई, इसने शिक्षा मित्रों के मनोबल को कमज़ोर किया साथ ही इनकी तनख्वाह इतनी लेट आने लगी कि अच्छे पढ़े लिखे लोग भी सरकार की अनिश्चितकालीन वेतन की नौकरी छोड़ते गए। वो या तो शहर गए या उन्होंने अपनी कोचिंग शुरू कर ली,जो स्कूलों में बच गये उनको अक्सर हम टीवी पर देख लिया करते हैं कि उन्हें अपना नाम भी लिखना नहीं आता है।
वो शायद कागजों पर ही रखे गए हैं, ताकि सरकार की झूठी नाक बची रहे। चुनाव आते ही TET शिक्षकों की नियुक्ति और परीक्षाओं का बड़े पैमाने पर आगाज किया जाता है, जिसका इतिहास कोर्ट के चक्करों में दबा रहने लगा है।
आशा, आंगनवाड़ी और ANM इनकी तनख्वाह सरकार से देर से आनी शुरू हो गई, जिसमें महीनों का इंतज़ार शामिल हो गया, जिसका असर सीधे उनके काम पर हुआ और जो पुल सालों में तैयार हुआ था, वो जर्जरा गया। प्राइवेट अस्पतालों की चांदी और महिलाओं कि ‘नॉर्मल डिलीवरी नहीं हो सकती है, यह बोल कर आराम से उनसे 1 लाख तक कमाने के अवसर साफ होने लगे।
सड़कें, मंत्री, विधायक और ज़िला परिषद के लोगों को ठेके मिलने लगे, जिन्होंने मिट्टी के ऊपर छोटे पत्थर और तारकोल डाल कर सड़कें बना दीं, जो पहली बारिश के साथ ही बह गईं। बिजली ये ठीक-ठाक है लेकिन आपके घर इतना बिल आएगा कि आपको लगेगा कि आप 4 AC चलाते हैं। डर की वापसी होती दिख रही है, नए बाहुबली लोग तैयार होने के साथ ही उनकी संख्या बढ़ने लगी है।
बाढ़
हर साल आने वाली बाढ़ ने बिहार को तबाह करने का काम किया है, जिसका एक ठोस उपाय होना चाहिए।
स्वास्थ्य
पूरी दुनिया अपने नागरिकों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए इस पर बहुत खर्च करती है लेकिन बिहार सरकार ठीक भारत सरकार की तरह इस पर उदासीन दिखती है। नए अस्पताल बना नहीं पाए, चमकी बुखार से हर साल कई बच्चों ने बेवक्त दम तोड़ दिया। आज कोरोना से लड़ाई में पहले से कमज़ोर और लाचार बिहार को पूर्णरूप से मृत्यु के आगोश में ले लिया है।
वहीं मुजफ्फरपुर पहले जहां अपनी मीठी लीची के लिए विश्व मशहूर था। अब वही पिछले कुछ सालों में बच्चों की चमकी बुखार से हुई बेवक्त मौत और शेल्टर होम में बच्चियों के रेप के लिए जाना जाता है, जब शेल्टर होम में बिना माँ-बाप की ऐसी बच्चियां जिन्हें कोई पूछने वाला नहीं था।
महामारी में अपनों का साथ छोड़ना
कोरोना महामारी के समय घर वापस आते मज़दूरों के लिए राज्य की सीमा बन्द करना और उनका विरोध ऐसे वक्त में करना जब उनको अपने लोगों की और सरकार की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। सरकार का यह कहना एक हद तक सही था कि जिन राज्यों में ये तमाम लोग सेवाएं दे रहे थे, उनको इस बुरे वक्त में ज़िम्मेदारी बांटनी चाहिए थी, लेकिन जब भारत सरकार विदेशों से लोगों को ला सकती थी, तो बिहार अपने लोगों के लिए घर के दरवाजे कैसे बंद कर सकता था?
भ्रष्टाचार में वृद्धि होनी शुरू हो गई है, करोड़ों लोग आज भी अपने लिए राशन कार्ड, किसान कार्ड के बनने का इंतज़ार कर रहे हैं जिनके आगे उनके पंचायत के लोग टांग अड़ाते हैं, फॉर्म पर उनके हस्ताक्षर को लेकर भी और आज जब बहुत से लोग काम के लिए शहरों की ओर वापसी करने लगे हैं, उनको वहां काम नहीं मिला है। बिहार में जो आज हैं, वो भी कल वहां से निकलने के लिए ही इंतज़ार कर रहे हैं।
इस समय एक आशा ज़रूर रही कि जब सारे मज़दूर वापस शहरों की ओर गए, जिनके घर खाने को भी नहीं था। सरकार ने केंद्र के साथ मिलकर पहले से ज़्यादा राशन और गरीबों के खातों में 500 -1000/- रुपये ट्रान्सफर किए, जो लोगों को भयंकर गरीबी में किसी के आगे हाथ फैलाने से रोक पाए और लाखों परिवारों को एक ऐसी तार की छांव का काम कर गए, जो तृप्त तो नहीं करती किसी को लेकिन मारने से बचा ले गई। इन दोनों सरकारों ने अपना इन्वेस्टमेंट वहां किया जहां से पार पाना सबके बस की बात नहीं है।
आज बिहार में ऐसे हज़ारों काम हैं जिनको वक्त पर किया जाना सबसे बड़ी ज़रूरत है। बैंकिंग, स्वास्थ्य और शिक्षा, हर रोज़ मारपीट, जात-पात और पलायन इन सबसे भी एक लम्बी लड़ाई लड़नी होगी, तभी बिहार भविष्य की ओर फिर से कदम बढ़ा पाएगा और एक बार फिर आत्मनिर्भर बन पाएगा। आज बिहार को फिर से ज़मीन पर कार्यों को करने की ज़रुरत है।