साल का चाहे कोई भी महीना हो, समाचार पत्र, समाचार चैनलों में एक खबर हमेशा बनी रहती है और वह खबर है धर्म की, हमारी प्रवृत्ति इस तरह की हो चुकी है कि खबर धर्म की हो या ना हो हम धर्म बीच में ले ही आते हैं। धर्म हमारी नशों में ऐसा घुल गया है कि हम धर्म से ऊपर उठ कर कुछ देखना ही नहीं चाहते हैं।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, यहां धार्मिक सहिष्णुता और विविधता में एकता की बात होती है। इस देश का कानून हर व्यक्ति को अपने तरीके से जीने की आज़ादी देता है जब देश की संप्रभुता के लिए खतरा, भारत की सुरक्षा के लिए खतरा या यह अदालत की अवमानना है या यह नैतिकता पर शालीनता का उल्लंघन कर रहा है, तो मौलिक अधिकारों पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध लगाने के लिए संविधान द्वारा उद्धृत ये कारण उल्लेखित हैं।
कर्नाटक के उडुपी ज़िले से जो खबर आई उसे सबने पढ़ा और देखा, चर्चा का विषय बना, उस पर देश में राजनीति भी जम के हो रही है और इस राजनीति की शोर में संविधान की बुलंद आवाज़ को दबाने की कोशिश भी की जा रही है।
कोई भी स्कूल या यूनिवर्सिटी उस देश के आने वाले कल को तैयार कर रही होती है, इन स्थानों में धर्म के विषय को अलग रख कर ही देश को उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाया सकता है अगर शैक्षणिक संस्थानों में धर्म और शिक्षा को मिलाया, तो हम अंधेरे की ओर चले जाएंगे जहां बस धर्म की ही बात होगी और इससे देश का विकास कभी नहीं हो सकता है।
जहां तक बात हिजाब की है, तो मुस्लिम महिलाएं वह शुरू से ही पर्दे के लिए पहनती आ रही हैं, उन्हें अचानक हिजाब पहनने के लिए मना कर देना, वो भी उस जगह जहां धर्म कोई विषय ही नहीं है, इस देश की कानून व्यवस्था एवं संविधान द्वारा प्रदत्त नागरिकों के मूल अधिकारों की अवहेलना करना होगा।
हमारे देश में जिस तरह खालसा सिख पुरुष अपने लंबे, बिना कटे बालों को ढकने के लिए पगड़ी पहनते हैं या ईसाई धर्म मे क्रॉस धर्म के प्रति प्रतिबद्धता के संकेतक के रूप में पहनते हैं, तो हिजाब भी बिल्कुल उसी तरह है और जब पगड़ी या क्रॉस पहनने पर किसी स्कूल या कॉलेज में उनके पहनावे पर सवाल नहीं खड़े हुए, तो हिजाब पर बेवजह, अनुचित बवाल करना और एक धर्म विशेष समुदाय को निशाना बनाने जैसा है।
जहां हर धर्म का सम्मान करना सिखाया जाता है, उस शिक्षा के पवित्र मंदिर में हिजाब, पगड़ी पर बहस कर के हम अपनी आने वाली पीढ़ी जो हमारे देश का भविष्य निर्धारित करेगी, उन्हें गलत दिशा में ले जा रहे हैं। हमें हर धर्म का सम्मान करते हुए उनकी अभिव्यक्ति तथा धार्मिक विचारधारा को अपनी कुंठित मानसिकता से ऊपर रहते हुए उन्हें अपनाना चाहिए, तभी हम सही सच्चे मायनों में धर्मनिरपेक्षता को अपने देश में स्थापित कर पाएंगे वरना यह शब्द सिर्फ संविधान के पन्नों में ही सिमट कर रह जाएगा।