सुहेल तातारी के निर्देशन एवं गुल पनाग के निर्माण एवं अभिनय से सजी शॉर्ट फिल्म ‘मनोरंजन’ देखने का अवसर मिला। इस शार्ट फिल्म ने अपनी गुणवत्ता के दम पर बहुत कम समय में सिनेमा जगत में काफी नाम कर लिया है।
इस शॉर्ट फिल्म की कहानी का मुख्य आकर्षण कथावस्तु एवं कलाकारों का अभिनय है। कहानी बेमन से बुलाए या कहें गलत टाइम पर आए अतिथियों से डील करती है। मूल कथा मशहूर लेखक साकी की एक कहानी से प्रेरित लगती है, जिसे गुल पनाग ने अपनाया और लिखा है।
पटकथा सुखमणि सदाना ने लिखी है। सुखमणि भूत-प्रेत के डर से जुड़ी पटकथाओं में पहले नाम कमा चुकी हैं लेकिन कम अंतराल की फिल्मों में इस जॉनर को लाना चुनौतीपूर्ण रहा होगा, किंतु जिस तरह उन्होंने यहां सस्पेंस रचा, वो कमाल का है।
कहानी मध्यम वर्ग हाउस वाइफ ललिता एवं उनके पति सत्यनारायण की है। सत्यनारायण रेलवे में नौकरी करते हैं। कई दिनों से ललिता परिवार के साथ छुट्टियों पर जाने के लिए सोच रही है। हिमाचल प्रदेश के डलहौजी में खज्जर जाने की ख्वाहिश को ललिता ना जाने कब से अपने दिल में दबाए हुए है।
ललिता वहां एक बार ज़रूर जाना चाहती है, जिसे उसने मिनी स्विट्जरलैंड का दर्ज़ा दे रखा है। इसके लिए ललिता ने सफर की पूरी तैयारी कर ली है। पैकिंग भी हो चुकी है बस निकलना बाकी है लेकिन ठीक अनचाहे वक्त पर घर पर एक मेहमान आ जाता है।
सत्यनारायण के परम मित्र का बेटा चिराग चौधरी आकर सारी उनकी सारी तैयारियों पर पानी फेर देता है। दरअसल, सत्यनारायण अपने दोस्त के एहसानों से दबे हुए थे। इसलिए आने से रोक नहीं पाए। ललिता एकदम बेमन थी। हालांकि, घर आए मेहमान को एहसास नहीं होने देती है कि उसके मन में वाकई क्या चल रहा है?
वह युवा चिराग को जिस तरह से कॉन्फिडेंस में लेती है, समझ नहीं आता कि आगे क्या होने वाला है मगर यह सस्पेंस इंटरेस्ट बढ़ा देता है। आखिर ललिता के लिए यह छुट्टियां क्यों मायने रखती हैं? क्या वो अब भी जा पाएगी? अचानक गलत वक्त पर आए मेहमान से उसे छुटकारा मिलेगा या नहीं? ऐसे कई सवाल फिल्म कहानी को बेहद रोचक मोड़ पे ले जाते हैं।
गुल पनाग ने ललिता का किरदार शानदार निभाया है। पहली बार में उनके किरदार ललिता के ऊपर कोई भी राय बनानी मुश्किल होगी। पहली नज़र मे यह नहीं कर पाएंगे शायद यही पटकथा की सफलता भी है। एक सीन में ललिता चिराग से कहती है कि वो रोज़ पापड़ बेलती है, ताकि घर चलाने में हाथ बंटा सके लेकिन कुछ ही देर बाद अगले ही सीन में सभी बेले हुए पापड़ों को कुएं में फेंक रही है।
रसोई वाले सीन में ललिता को पढ़ पाना मुश्किल होगा जिसमें वो जीवन से भरे युवा चिराग को अपनी सास की मौत के बारे में बताती है। उसकी कही बातें हांट करने वाली हैं। किसी अपने को खोने से कभी-कभी लोगों के दिमाग पर अजीब सा असर हो जाता है। इन बातों से वे तय नहीं कर पाते हैं कि वो वास्तव में क्या हैं?
फिल्म के समाप्त होते-होते लेकिन समझ आ जाता है कि एक औरत चाहे तो कुछ भी कर सकती है। ललिता को अपनी इच्छाओं को लेकर आप खतरनाक रूप से महत्वाकांक्षी पाएंगे। आपको इस शॉर्ट मूवी के दौरान प्रैक्टिकल जोक की गहराई समझ आएगी।
आपको समझ आएगा कि जब तक इंसान के मन मुताबिक चीज़ें चल रहीं हैं, तो सब कुछ शांत नज़र आता है लेकिन हालात डगमगाने पर व्यक्ति के भीतर से तरह-तरह की चीज़े सामने आने लगती हैं। किरदार की पेचीदगियों को देखते हुए कहना होगा कि गुल पनाग ने बेहतरीन काम किया है। सत्यजीत शर्मा ललिता के पति के किरदार में हैं। सत्यजीत टीवी का जाना पहचाना नाम है जबकि युवा चिराग का रोल मिहिर आहूजा ने अदा किया है।
सुहैल तातारी का निर्देशन कमाल बन पड़ा है, जो सुहैल ने बारीक डिटेल्स पर ध्यान देकर कहानी में जिज्ञासा बनाए रखी है आखिर तक और वाह क्या अंत दिया फिल्म को। पानी में डूबे रखे हुए नकली दांत। कमरे के अंदर फेड हो चुकी चप्पलें फिर बाथरूम के अंदर पीला पड़ चुका टूथब्रश सभी डिटेल्स कहानी से गहरे रूप से जुड़े हुए हैं।
फिल्म निर्देशन में सबसे अहम सस्पेंस को बनाना होता है। उसे अंत तक ले जाना एक स्मार्ट वर्क होता है, क्योंकि ज़्यादा प्रिडिक्टेबल होने पर दर्शक को पहले ही सब पता हो जाता है। इससे फिल्म में उबाऊ तत्व बनते हैं। सुहैल ने अपनी फिल्म में शुरू से लेकर आखिर तक दर्शक के लिए कमाल की उत्सुकता को जिंदा रखा है।
यह फिल्म हमें सोचने पर विवश करती है और सारी डिटेल्स को ध्यान से देखने के लिए आमंत्रित करती है। उस फिल्म का नाम ‘मनोरंजन’ भी बहुत सटीक मिला है। ललिता के माध्यम से फिल्म महिला मन की परतों का एक अनदेखा पक्ष दर्शकों के सामने लेकर आती है। जोक एवं हकीकत को एक साथ गढ़ने का अंदाज़ शानदार है और सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि कहानी में दर्शकों के लिए ज़बरदस्त सरप्राइज़ हैं।
देखिए पूरी शॉर्ट फिल्म–