प्यार, इश्क और मोहब्बत के बारे में एक जुमला हज़ारों-करोड़ों बार सुनने को मिलता है कि इश्क और जंग में सब कुछ जायज़ है। कहा जाने वाला यह वाक्य मानवीय नैतिकता या उससे जुड़े सरोकारों को ठोकर मारकर दूर कर देता है और तमाम इंसानी जज़्बात को वाशिंग मशीन में धोकर खुद को पाक-साफ साबित करना चाहता है।
जबकि कहने वाले इंसान को पता है कि अपने लिए उसने जो किया है, एक सेफ या कंफर्ट ज़ोन बना रहा है। गहराइयां फिल्म की कहानी में पूरी टीम कमोबेश यही कहने की कोशिश करती दिखती है। रोमांस और रिश्तों में उलझती एक लव ट्राएंगल की कहानी है, जिसमें मुख्य चरित्र अलीशा के अंदर एक साथ कई शेड्स हैं। बाकी कलाकार प्रयास करते हैं मगर दर्शकों को बांधकर रखने की क्षमता उनमें नहीं है।
कहानी में कितनी गहराइयां हैं?
गहराइयां फिल्म में आपसी रिश्तों का कईयापन योगा इंस्ट्रक्टर और लेखक दोस्त के बीच में दिखती है, जो लिंविंग में रहते हैं। इस धोखे के साथ कि दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते हैं मगर बस एक प्रेम के अलावा सब कुछ करते हैं। प्रेम और बेवफाई की परतों की बखिया उधेड़ती गहराईयां में अलीशा (दीपिका पादुकोण) बचपन में जीवन का एक कठोर सच देख चुकी हैं।
बिज़नेस में असफल पिता और आत्महत्या को गले लगा चुकी हैं उसकी माँ। रिश्तेदार एक आरामदायक ज़िन्दगी में हैं, जिन्हें शिद्दत से पाने की इच्छा अलीशा में है। अपनी चचेरी बहन के बॉयफ्रेंड पर चक्करघिन्नी हो जाती है, क्योंकि उसके पास एक बढ़िया ज़िन्दगी जीने के लिए ठीक-ठाक पैसे हैं।
बचपन से वह जिस आभाव में रही है, जिसके कारण वह दिल से अधिक दौलत के करीब दुनिया देखना चाहती है और उसी में जीना चाहती है। जिसके भरोसे जीना चाहती है, वह भी स्वार्थी है। यह कहानी में रोचकता लाने के जगह ज़रा भी आश्चर्य में नहीं डालती है। यही एक समान्य सी कहानी है, जो अपने शुरुआत से बांधने की कोशिश करती है मगर बांध नहीं पाती है।
कलाकारों की मेहनत प्रभाव नहीं छोड़ती
कभी लगता है कि कहानी बहुत धीमी है, फिर लगता है नहीं किरदार अपने पात्रों को जी नहीं रहे हैं, बस निभा रहे हैं। पटकथा भी कमज़ोर लगने लगती है। बेशक दीपिका अपने किरदार के करीब जाने की भरपूर कोशिश करती हैं मगर बार-बार लगता है कि वो इस किरदार के साथ सुस्त हैं।
सिद्धांत चतुर्वेदी जब-जब सामने आते हैं, आंखें उन्हें ना देखने का बहाना खोजना चाहती हैं। वो हर दृश्य और हर संवाद में एक ही तरह का भाव झेलने को मजबूर करते हैं। अनन्या पांडे पूरी कहानी में अलग दिखती हैं मगर उनके पास केवल आश्चर्य वाले भाव हैं और कुछ नहीं!
फिल्म के अंतरंग सीन के भाव नैचुरल ना होकर जल्दी-जल्दी में निपटा देने वाले लगते हैं, वह उन दो प्रेमियों के भाव को पकड़ने में कामयाब नहीं होते हैं। कमोबेश हर दृश्य में प्रेम भाव का आवेग दिखावटी लगता है। गहराइयां वह फिल्म नहीं है, जिसको नहीं देखने का अफसोस हो।
आज के दौर में महानगरों में रहने वाली अधिकांश पीढ़ी में जो बैचेनी है, वह इस कहानी में दिखती है। खासतौर पर रिश्तों की बैचेनी खास तरह से देखी जाती है। जिस सुकून की तलाश में वो जल्दीबाज़ी में दिखते हैं, असफल होने के बाद वे तनाव के गिरफ्त में आ जाते हैं। यह फिल्म बेशक उन युवाओं को पसंद आएगी और शायद वही इस फिल्म के ऑडियंस भी हैं।