वित्त वर्ष 2022-23 के लिए बजट प्रस्तुत करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शिक्षा पर खर्च के लिए एक लाख 4 हज़ार 277 करोड़ रुपये देने की घोषणा की जिसमें 63,449 करोड़ रुपये स्कूली शिक्षा पर खर्च किए जाएंगे जबकि उच्च शिक्षा पर खर्च के लिए 40,828 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
इसके अतिरिक्त वित्त मंत्री ने सार्वभौमिक शिक्षा के लिए समग्र शिक्षा अभियान के तहत करीब 37,383 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। इससे कोरोना महामारी के कारण स्कूलों के बंद होने से छात्रों को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करने में मदद मिलेगी।
सरकार की यह पहल स्वागत योग्य है, क्योंकि देश में शिक्षा का तंत्र विशेषकर सरकारी स्कूलों और वह भी ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है, जहां इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर पढ़ाने की पद्धति तक, सभी पूर्णरूप से पटरी से उतर चुके हैं।
शिक्षकों की कमी की बात हो या प्रयोगशाला की उपलब्धता, लगभग सभी स्तरों पर इसकी भारी कमी देखने को मिलती है। हालांकि, कई ऐसे राज्य हैं जिन्होंने सरकारी स्कूलों की हालत को सुधारने के लिए काफी प्रयास किया है। स्कूल के भवनों को जहां बेहतर बनाया गया है ठीक वहीं लैब की सुविधा को भी उन्नत किया गया है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता में अपेक्षाकृत सुधार हुआ है लेकिन शिक्षकों की कमी इस गुणवत्ता को बरकरार रखने में सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो रहा है।
वहीं कुछ स्कूलों में पीने के साफ पानी और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा की कमी भी बच्चों विशेषकर किशोरियों को स्कूल से दूर कर रहा है।
पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के बागेश्वर ज़िले स्थित गरुड़ ब्लॉक के पिंगलो गाँव में संचालित मैगड़ी स्टेट इंटर कॉलेज भी ऐसा ही एक उदाहरण है, जहां शौचालय की सुविधा नहीं होने के कारण अक्सर किशोरियां स्कूल से दूर हो जाती हैं। गरुड़ ब्लॉक से करीब साढ़े ग्यारह किमी दूर इस इंटर कॉलेज में छठी से बाहरवीं तक की पढ़ाई होती है जिसमें लगभग 400 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते हैं।
ऐसे में लगभग आधी संख्या छात्राओं की है लेकिन माहवारी के दिनों में अधिकतर छात्राएं स्कूल आना बंद कर देती हैं, क्योंकि इस दौरान वह स्कूल में शौचालय का प्रयोग नही कर पाती हैं। ऐसा केवल इसलिए क्योंकि उनमें ना तो पानी की सुविधा उपलब्ध है और ना ही वह प्रयोग के लायक हैं।
इन सब के बावजूद शौचालयों की जर्जर स्थिति में होने के कारण उनका इस्तेमाल करना मुमकिन नहीं होता है जबकि ऐसे समय में अक्सर किशोरियों को पैड बदलने के लिए शौचालय की आवश्यकता पड़ जाती है। इस सुविधा की कमी की वजह से कई बार बालिकाएं ऐसे समय में स्कूल छोड़ देना ज़्यादा बेहतर समझती हैं जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई का नुकसान होता है और वह चाह कर भी अपने सपनों को पूरा नहीं कर पाती हैं।
हालांकि, पिंगलो में एक प्राथमिक और एक माध्यमिक विद्यालय भी संचालित है, जहां पीने के साफ पानी और शौचालय की पूरी सुविधा उपलब्ध है लेकिन इस इंटर कॉलेज में जहां बड़ी संख्या में किशोरियां शिक्षा ग्रहण करती हैं, उन्हें इस सुविधा का लाभ नहीं मिल पाता है।
इस संबंध में स्कूल की छात्रा तनुजा, मेघा, कविता, उमा, और बबीता का कहना है कि वह नियमित रूप से विद्यालय आना चाहती हैं लेकिन स्कूल में शौचालयों की समस्या के कारण उन्हें अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
उन्हें ज़्यादातर परेशानी माहवारी के समय में होती है जिस कारण से वह नियमित रूप से स्कूल भी नहीं जा पाती हैं। वहीं विद्यालय में पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं होने के कारण हम गंदा पानी पीने को मज़बूर होते हैं, जिसकी वजह से हम अक्सर बीमार हो जाते हैं, जिससे भी हमारी शिक्षा बाधित होती रहती है।
विद्यालय में आधारभूत बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण आर्थिक रूप से संपन्न कई अभिभावक अपने लड़कों को शहर के अच्छे स्कूलों और कॉलेजों में दाखिला करा देते हैं लेकिन लड़कियों को यह सुविधा नहीं मिल पाती है। उन्हें इन्हीं कमियों के बीच जैसे तैसे अपनी शिक्षा पूरी करनी होती है, जो कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं बल्कि महज़ एक खानापूर्ति बन कर रह जाती है।
ऐसे में कई लड़कियां हैं, जो पढ़-लिख कर आगे बढ़ना और अपने सपनों को पूरा करना चाहती हैं लेकिन सुविधाओं के अभाव में उनके सपने अक्सर अधूरे रह जाते हैं। दरअसल, पितृसत्तात्मक समाज में लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को अधिक सशक्त बनाने पर ज़ोर दिया जाता है, उन्हें ही समाज का ज़िम्मेदार माना जाता है।
यही कारण है कि उनकी शिक्षा पर अधिक ज़ोर दिया जाता है जबकि लड़कियों को केवल घर की चारदीवारी के अंदर वंश को आगे बढ़ाने के मात्र के रूप में समझा जाता है। यही कारण है कि समाज उनकी शिक्षा के प्रति अधिक गंभीरता का परिचय नहीं देता है। ऐसे में जो लड़कियां पढ़-लिख कर आगे बढ़ना भी चाहती हैं, तो एक तरफ जहां हमारे समाज की सामाजिक सोच उनकी राह में रोड़ा बनती है ठीक वहीं स्कूल में आधारभूत सुविधाओं की कमी भी उनके सपनों को पूरा होने से पहले ही तोड़ देती है।
इस संबंध में वहां के शिक्षक पुनीत जोशी भी स्कूल में शौचालय और पीने के साफ पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी को बालिका शिक्षा में एक बड़ा रोड़ा मानते हैं। उनका मानना है कि अक्सर साफ पानी और साफ शौचालय की कमी के कारण लड़कियों को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है।
हालांकि, शहरों की तरह ग्रामीण स्तर पर भी लड़कियों की प्रतिभा में कोई कमी नहीं है, कई लड़कियों ने लड़कों की अपेक्षा दसवीं और बारहवीं में टॉप कर अपने क्षेत्र का नाम रौशन किया है, तो कुछ लड़कियों ने खेलकूद और अन्य गतिविधियों में भाग लेकर स्कूल को गौरवान्वित किया है लेकिन इन्हीं कुछ आधारभूत बुनियादी सुविधाओं की कमियों के कारण उनकी प्रतिभा दम तोड़ देती है।
शिक्षक छात्र-छात्राओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में हर संभव प्रयास करते हैं, जिसका गवाह स्कूल का रिज़ल्ट है लेकिन बुनियादी आवश्यकताओं की कमी के कारण जब बच्चे स्कूल से दूर हो जाते हैं, तो यह उनकी मेहनत पर पानी फेरने के समान है।
स्कूल के प्रिंसिपल कुलदीप कोरंगा भी पीने के साफ पानी और शौचालय की कमी को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि ग्रामीणों और पंचायत की मदद से इस समस्या का निदान संभव है, जिसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं सरपंच उषा देवी भी स्कूल में इस प्रकार की समस्या को ज़ल्द दूर करने को प्राथमिक चुनौती मानती हैं और उनका कहना है कि जितनी ज़ल्दी हो सकेगा पंचायत स्तर पर इस समस्या को हल करने का प्रयास किया जाएगा, ताकि बच्चों की शिक्षा बाधित ना हो सके।
ऐसा कहा जाता है कि एक लड़के के शिक्षित होने से एक इंसान शिक्षित होता है लेकिन एक लड़की के शिक्षित होने से एक पीढ़ी शिक्षित हो जाती है। ऐसे में केवल पीने के साफ पानी और शौचालय की कमी के कारण यदि कोई लड़की स्कूल से दूर हो जाती है, तो एक पूरी पीढ़ी के अशिक्षित होने की आशंका बढ़ जाती है। प्रश्न यह है कि इन आधारभूत बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण एक पूरी पीढ़ी को अशिक्षित बनाने का ज़िम्मेदार कौन है?
नोट- यह आलेख उत्तराखंड के बागेश्वर ज़िले स्थित गरुड़ ब्लॉक अनतर्गत पिंगलो गाँव की रहने वाली 11 वीं की छात्रा खुशबू बोरा ने चरखा फीचर के लिए लिखा है।