Site icon Youth Ki Awaaz

ऐशो आराम की ज़िन्दगी छोड़ डॉ. राकेश युवाओं, किसानों को जैविक खेती के लिए कर रहे हैं प्रेरित

ऐशो आराम की ज़िन्दगी छोड़ डॉ. राकेश युवाओं, किसानों को जैविक खेती के लिए कर रहे हैं प्रेरित

भोपाल से 40 और सीहोर मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर अबीदाबाद पंचायत के रहने वाले धन सिंह वर्मा कुछ माह पहले तक अपने खेत से सिर्फ एक फसल ले पाते थे, क्योंकि उन्हें खेती की सही तकनीक नहीं मालूम थी। कभी-कभी तो वह डीएपी खाद नहीं मिल पाने के कारण यहां-वहां भटकते रहते थे और दुकानदार को मुंह मांगा दाम देकर खाद खरीद लाते थे। इससे उनकी खेती की लागत बढ़ जाती थी, लेकिन अब वह खुश हैं।

उनके खेत के पास ही 25 एकड़ की वह ज़मीन जहां कम लागत से दो जैविक फसलों का उत्पादन हो रहा है। इससे धन सिंह ही नहीं बल्कि अबीदाबाद पंचायत के सारे किसान प्रेरित हो रहे हैं। एक ओर जहां किसान अधिक पैदावार के लिए खेतों में रासायनिक कीटनाशक का भरपूर उपयोग करते हैं, वहीं इसी क्षेत्र में अपने 10 दोस्तों के साथ मिलकर 25 एकड़ ज़मीन पर सामूहिक रूप से डॉ.राकेश कुमार पालीवाल रसायन मुक्त जैविक खेती कर रहे हैं। 

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त के पद से सेवानिवृत्त डॉ. राकेश कुमार पालीवाल रिटायरमेंट के बाद ऐशो-आराम की ज़िन्दगी छोड़कर गाँव में दूसरे सहयोगियों के साथ खेती कर रहे हैं। वह महात्मा गांधी और नानाजी देशमुख के कामों से बहुत ज़्यादा प्रेरित हैं, उन्होंने कहा है कि नानाजी देशमुख ने चित्रकूट के आसपास कई गाँवों के किसानों को रसायन मुक्त खेती के लिए प्रेरित किया था।

उन्होंने कहा कि कोविड से बचाव के लिए वैक्सीन और ट्रीटमेंट के अलावा रसायन मुक्त अन्न सब्जी भी बहुत ज़रूरी है। यह संक्रमण के जोखिम को रोकने में मदद करता है और आपके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है जबकि रसायन युक्त अनाज आपके शरीर को धीरे-धीरे खोखला करता है। इससे आप तमाम बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं और आपको पता ही नहीं चलता है। वे आगे कहते हैं कि खाना सिर्फ पेट भरने के लिए नहीं खाना चाहिए बल्कि हम क्या खा रहे हैं, वह भी हमें पता होना चाहिए।

खेती में इस कदर रुचि रखने वाले डॉ. पालीवाल बताते हैं कि दरअसल वह एक किसान परिवार से आते हैं और उन्होंने बायोलॉजी से एमएससी करने के बाद बायोटेक्नोलॉजी में पीएचडी की उपाधि हासिल की है। पीएचडी में उनका विषय साग-सब्जी रहा है। इसलिए उन्हें शुद्ध आहार के बारे में पता है। उन्होंने अपनी नौकरी के दौरान ही अपना मन बना लिया था कि सेवानिवृत्ति के बाद जैविक खेती करेंगे साथ ही दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करेंगे।

इसलिए उन्होंने एक अखिल भारतीय जैविक परिवार बनाया है, उन्होंने कहा कि किसानों में बहुत भ्रांतियां है कि बिना कीटनाशक और रसायन के उसकी पैदावार कम होगी, जो कि बिल्कुल गलत है। जैविक में जमीन की उर्वरा शक्ति बनी रहती है और पैदावार भी ठीक होता है, क्योंकि जैविक खेती को एक स्थायी कृषि अभ्यास के रूप् में परिभाषित किया जा सकता है जिससे ना केवल खेत और मिट्टी की गुणवत्ता बरकरार रहती है बल्कि उपज भी खाने वाले के स्वास्थ्य के हिसाब से बेहतर होती है। 

हम वृहद रूप में देखें, तो मिट्टी में कार्बन अधिक अवशोषित होता है जिसे ग्रीनहाउस प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में सहयोग मिलता है। कोविड के दौरान जैविक उत्पादों के निर्यात में 42 फीसदी की वृद्धि दर्ज़ की गई है।

मगर किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए लोगों को भी आगे आना होगा, उन्हें भले ही अनाज और सब्जी थोड़ी महंगी मिले लेकिन वे निश्चिंत हो सकते हैं कि वह जो खा रहे हैं, उसमें जहर नहीं हैं और जिस तरह लोग एक फैमिली डॉक्टर रखते हैं ठीक उसी तरह एक फैमिली किसान भी रखना होगा जिससे उन्हें पता हो कि वह जो खा रहे हैं, उसमें किसी भी प्रकार की रासायनिक मिलावट नहीं हैं। 

उन्होंने अपने खेतों में नर्सरी भी बना रखी है। डॉ.पालीवाल के अनुसार, भारत सरकार अभी तीन योजनाओं के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। इसमें परंपरागत कृषि योजना, मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट इन नॉर्थ और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन शामिल है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय कृषि विकास योजना भी है जिसके तहत जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाता है। हालांकि, 40 साल पहले तक देश में जैविक खेती ही हुआ करती थी और महात्मा गांधी भी ऐसी ही खेती पर बहुत ज़ोर दिया करते थे।

महात्मा गांधी के अनुयायी डॉ. पालीवाल अबीदाबाद में ग्राम सेवा समिति स्थापित कर किसान और युवाओं को जैविक खेती का प्रशिक्षण भी देते हैं। यहां एनएसएस के कैंप के साथ-साथ केंद्रीय कृषि इंजीनियरिंग संस्थान की ओर से प्रदर्शनी भी लगाई जाती है जहां आसपास के गाँवों के किसान आकर व्यवहारिक प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। वह कम लागत में जैविक खाद बनाने के तमाम तरीकों के बारे में बताते हैं कि सारे खरपतवार को इकट्ठा कर उसमें थोड़ा गोबर मिला दीजिए, कुछ महीने बाद वह 5 बोरी यूरिया बन जाएगा। 

इसके अलावा केंचुए की खाद तैयार करने की विधि कम पानी और अनाज को कीड़े लगने से बचाने के लिए मिश्रित खेती ये सारी चीज़ें वे व्यवहारिक रूप से लोगों को बताते हैं।

कोरोना संक्रमण के दौरान जब पलायन करने वाले घर वापस आए, तो उन्होंने युवाओं के सपनों को पंख देने के लिए उन्हें केवल प्रशिक्षण ही नहीं दिया बल्कि उन्हें ग्राम सेवा समिति केंद्र से जोड़कर खेती किसानी से जुड़ा स्टार्टअप शुरू करने के लिए भी प्रेरित किया। 

उन्होंने शहर में छोटे.छोटे केंद्र भी बनाए जहां से लोग जैविक सामग्री खरीद सकते हैं। उन्होंने कहा अभी किसान घर तक सामान पहुंचाने की व्यवस्था नहीं कर पाए हैं। पालीवाल ने कहा हम स्वस्थ शिक्षित और समृद्ध गाँव अभियान के ज़रिये युवाओं को जागरूक कर रहे हैं। देश के कोने-कोने में बहुत सारे किसान जैविक की तकनीक अपनाकर अपनी उपज बढ़ा रहे हैं।

डॉ.पालीवाल विशेष रूप से युवाओं का आह्वान करते हुए कहते हैं कि आपका विषय कोई भी हो लेकिन वनस्पति विज्ञान की थोड़ी जानकारी सभी को होनी चाहिए, ताकि आप अपने खानपान के प्रति सतर्क रहें। इसके लिए आवश्यक है कि हम सभी खेती में विशेष रुचि पैदा करे। कंक्रीट से गगनचुंबी इमारत खड़ी करने से कहीं अधिक ज़रूरी जैविक रूप से लहलहाती फसल तैयार करना है।  

नोट- यह आलेख रूबी सरकार ने भोपाल, मप्र. से चरखा फीचर के लिए लिखा है।

Exit mobile version