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समाज के वंचित, भूखों को खाना उपलब्ध कराता छपरा का रोटी बैंक

समाज के वंचित, भूखों को खाना उपलब्ध कराता छपरा का रोटी बैंक

साल 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भुखमरी और कुपोषण के मामले में 117 मुल्कों की सूची में हमारा देश 102वें स्थान पर है। वैश्विक भूख सूचकांक साल 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को कुल 116 देशों की सूची में 101वें स्थान पर रखा गया है।

साल 2017 में नेशनल हेल्थ सर्वे (एनएचएस) की रिपोर्ट बताती है कि देश में 19 करोड़ लोग हर रात खाली पेट सोते हैं। भारत के लगभग सभी शहरों में सड़क किनारे आज भी कुछ लोग खाली पेट सोने को मज़बूर हैं। हर साल बाढ़, सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाएं लोगों की गिनती को और भी बढ़ा देती हैं। पिछले दो सालों से कोविड-19 ने भी लोगों की हालत खराब कर रखी है 

लेकिन इस समाज में कुछ ऐसे गुमनाम लोग भी हैं, जो इन भूखों के लिए रोटी उपलब्ध कराने का प्रयास करते रहते हैं। इन्हीं में एक हैं छपरा, बिहार के रविशंकर उपाध्याय जो अपने संगठन ‘रोटी बैंक, छपरा’ के ज़रिये नि:स्वार्थ भाव से भूखे लोगों को भोजन कराते हैं। 

पेशे से शिक्षक रविशंकर क्षेत्र में समाज सेवी के रूप में भी अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्हें यह विचार ऑल इंडिया रोटी बैंक ट्रस्ट, वाराणसी के संस्थापक स्मृतिशेष किशोर कांत तिवारी और उनके सहयोगी रौशन पटेल द्वारा किए जा रहे नेक कार्यों को देखकर आया, जो भूखे व ज़रूरतमंद लोगों को मद्देनज़र रखकर उन तक तक खाना पहुंचाने का काम कर रहे हैं।

रोटी बैंक, छपरा साल 2018 से गरीब, असहाय और भूखे लोगों को भोजन उपलब्ध कराने का काम कर रहा है लेकिन इसकी रूपरेखा अप्रैल महीने में ही बन गई थी। उन्हें फेसबुक पर ऑल इंडिया रोटी बैंक, वाराणसी के कार्यों को देखकर छपरा शहर में भी एक ऐसा ही संगठन शुरू करने का ख्याल आया था। रविशंकर उपाध्याय कहते हैं, “चूंकि अपने शहर में भी बहुत सारे ज़रूरतमन्द हैं, जो हर रात भूखे पेट सोने पर विवश हैं और अक्सर चौक-चौराहों, रेल्वे स्टेशनों, बस स्टैंड और सड़क किनारे भूखे और लाचार सोने व रहने को मज़बूर लोगों को देख मन व्याकुल एवं व्यथित हो जाता था, लेकिन तब मैं उनके लिए कुछ कर नहीं पाता था। 

फेसबुक पर रोटी बैंक वाराणसी का कार्य देखकर मुझे उनके लिए एक आशा की किरण दिखने लगी और उस वीडियो में दिखाया गया था कि कड़ाके की सर्दी में वाराणसी की सड़कों पर कुछ युवा ज़रूरतमन्दों और भूखे पेट सोने वालों को भोजन उपलब्ध करा रहे हैं। अपने शहर में भी ऐसे गरीब और असहाय लोगों की सहायता के लिए मैंने अपने मित्रों के साथ मिलकर ‘रोटी बैंक, छपरा’ की शुरुआत की।

पहले दिन का अपना अनुभव बताते हुए रविशंकर कहते हैं कि इसकी शुरुआत में उनकी टीम में 4-5 सदस्य थे, जिनमें मुख्य रूप से उनके करीबी मित्र सत्येंद्र कुमार, अभय पांडेय, राम जन्म मांझी और बिपिन बिहारी प्रमुख थे।  10 अक्टूबर, 2018 को दशहरा की कलश स्थापना के दिन से इन सबने मिलकर इस शुभ कार्य शुरुआत की थी।  

उस दिन हम अपने घर से 7 लोगों के लिए भोजन बना कर शहर में बांटने के लिए निकल गए। पहला दिन था, इसलिए मन में झिझक भी ज़्यादा थी कि लोग क्या कहेंगे? कोई गलत ना समझ ले। 7 पैकेट भोजन बांटने के लिए इन लोगों को पूरे 3 किलोमीटर जाना पड़ा था। अंततः हमारी टीम ने पहले दिन ज़रूरतमंदों को सफलतापूर्वक भोजन वितरित किया, तब से लेकर आज तक यह सिलसिला ऐसे ही कायम है। 

हमारी टीम हर रोज़ रात 9 बजे गरीबी की मार झेल रहे भूखे लोगों का पेट भरने के लिए शहर में निकल पड़ती है और गरीब व भूखे लोग भी हर रात 9 बजे हमारी राह भी देखते हैं।

रोटी बैंक, छपरा के महासचिव अभय पांडेय पेशे से रेल्वे में ट्रैफिक इंस्पेक्टर हैं। वह बताते हैं कि “मैं ज़्यादा समय तो नहीं दे पाता लेकिन सप्ताह में 2 दिन मैं रोटी बैंक को समर्पित रहता हूं। मैं इसकी शुरुआत से जुड़ा हुआ हूं और इस संस्था की स्थापना की चर्चा करते हुए वह कहते हैं कि एक बार मैं और रविशंकर एक पार्टी में जा रहे थे, उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे एक संस्था खोलनी है, जिसमें भूखे व्यक्तियों को भोजन कराया जा सके।” 

मैंने उनका उत्साह बढ़ाते हुए उनसे कहा कि बिल्कुल खोलिए, मेरा पूरा सहयोग आपके साथ रहेगा, तब हमने 7 पैकेट से शुरुआत की थी, आज हमारी टीम रोज़ भूखे और ज़रूरतमंदों को 200 पैकेट्स तक बांट रहे हैं, जब किसी को खाना देते हैं, तो उसके पैकेट लेने और खाने के अंदाज़ से लगता है कि हमने आज कोई बहुत अच्छा काम किया है। 

जब आप किसी की भूख मिटाते हैं, तो यह स्वयं के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि होती है और इससे स्वयं की आत्मा भी तृप्त हो जाती है। एक घटना का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के समय जब राजेंद्र स्टेडियम में बाहर से बसें आती थीं, हम वहां भी खाना बांटते थे, तब वहां खाने की छीना झपटी होती थी।

एक बार एक अच्छे परिवार का लड़का भी वहां था, जब हमने उससे पूछा कि खाना खाओगे? तो उसने कहा, “भूख तो है लेकिन खाना नहीं खा सकते ,क्योंकि पेमेंट करने के लिए पैसे नहीं हैं” फिर हमारी टीम ने उससे कहा इसका ऋण किसी भूखे को खाना खिला कर चुका सकते हो, तब वह खाना खाया। 

रोटी बैंक के सदस्यों द्वारा बताया गया कि शुरुआत में कुछ लोग हम पर सकारात्मक टिप्पणी करते, तो कुछ लोग बेहद नकारात्मक करते थे लेकिन फिर धीरे-धीरे हमारे काम के तरीकों को देखकर जब शहर के लोगों को यह बात समझ आई कि हमारी यह संस्था सामाजिक तौर पर ज़रूरतमंदों की मदद करने के लिए बनाई गई है, तब लोग हमारी संस्था से जुड़ने लगे फिर तो खुद से कोई श्रमदान, कोई अन्नदान तो कोई अर्थदान के रूप में मदद करने लगा।

इससे पहले हम लोग अपने घरों से भोजन बनाकर वितरण करने जाते थे फिर “खुशियों के रंग रोटी बैंक के संग” के नारे से प्रभावित होकर शहर के लोग अपने जन्मदिन, शादी की सालगिरह, पूजा-पाठ या अन्य किसी शुभ अवसर पर गरीबों को भोजन कराने के लिए आने लगे। अब हमारे पास रोटी बैंक का अपना एक किचन है, जिसका नाम ‘मां अन्नपूर्णा सामुदायिक रसोई’ रखा है। वहां खाना बनाने के लिए दो लोग रखे गए हैं, जो बहुत ही कम वेतन पर काम करते हैं।

सावन के महीने में जब बिहार बाढ़ की चपेट में आता है, तब भी यह संगठन लोगों की मदद करने में अपनी अहम भूमिका निभाता है। टीम के द्वारा पहले सर्वे किया जाता है फिर चिन्हित एरिया में जहां लोग बहुत लाचार हैं और बिल्कुल भी सक्षम नहीं हैं, उन तक रोटी बैंक छपरा के सदस्य खाने का पैकेट पहुंचाते हैं।

हर खाने के पैकेट में 4 किलो चूड़ा, 2 किलो फरूही, एक बड़ा पैकेट बिस्कुट, नमकीन, बच्चों के लिए दूध पाउडर और साबुन होता है। बाढ़ की वजह से गाँव के लोगों तक पहुंचने में थोड़ी तकलीफ भी होती है फिर भी टीम अपने पथ से विचलित नहीं होती है। 

हमारी संस्था के सदस्य गाड़ी व अन्य साधनों की मदद से भोजन के पैकेट्स ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचाते हैं और अपना काम पूरी ईमानदारी से करते हैं। साल 2020 में जब कोविड-19 और बाढ़ ने वहां के लोगों की ज़िंदगी अस्त व्यस्त कर दी थी, तब उन सभी लोगों की ज़िंदगी वापस से पटरी पर लाने के लिए रोटी बैंक, छपरा हमेशा प्रयासरत रहा है।

लॉकडाउन में भी वृहद स्तर पर इस संगठन के द्वारा ज़रूरतमंदों लोगों के बीच राशन व भोजन का वितरण किया गया था, साथ-ही-साथ सभी प्रवासियों के लिए भी भोजन की व्यवस्था की गई थी।

अब फिलहाल उनकी टीम में और भी नए सदस्य जुड़ गए हैं और कुल 20 लोगों की टीम बन गई है। उनमें से कुछ लोग नौकरी करते हैं, तो कुछ व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। सभी अपने-अपने काम से समय निकाल कर समाज सेवा करते हैं।  

वर्तमान में नए सदस्यों के रूप में राकेश रंजन, पिंटू गुप्ता, संजीव चौधरी, कृष्ण मोहन, राहुल कुमार, किशन कुमार, शैलेन्द्र कुमार, मनोज डाबर, अशोक कुमार, राजेश कुमार, अमित कुमार, सूरज जयसवाल और आनन्द मिश्र जैसे लोग मिलकर रोटी बैंक, छपरा के माध्यम से गरीब, असहाय, ज़रूरतमंद भूखों को खाना खिलाने का काम कर रहे हैं और यह सिलसिला सबके सहयोग से ऐसे ही आगे भी ज़ारी रहेगा।

दरअसल, रोटी बैंक केवल भोजन ही नहीं है बल्कि उन लोगों के लिए उम्मीद का एक टुकड़ा है, जो अपने और अपने परिवार के लिए एक वक्त का भोजन भी उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं। 

नोट- यह आलेख छपरा, बिहार से अर्चना किशोर ने चरखा फीचर के लिए लिखा है।

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