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विधानसभा चुनाव 2022: क्या है उत्तर प्रदेश का चुनावी परिदृश्य का समीकरण?

विधानसभा चुनाव 2022: क्या है उत्तर प्रदेश का चुनावी परिदृश्य का समीकरण?

पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है, यूं तो सभी राज्यों में होने वाले चुनावों का अपना-अपना महत्व है मगर उत्तर प्रदेश के चुनावों पर इस वक्त हर किसी की नज़र है कि UP के इस चुनाव में किस पार्टी के जीत का सेहरा बंधेगा? किस पार्टी की सरकार बनेगी? और कौन UP का अगला मुख्यमंत्री होगा? 

इस तरह के प्रश्न लोगों के मन में पहले से घूम रहे हैं। वास्तव में, यूपी भारत में लोकसभा और विधानसभा में सबसे अधिक सीटों वाला राज्य है। इसलिए लोकसभा चुनाव के दौरान वो पार्टियां, जो UP में अपना प्रभाव रखती हैं, वो अधिक-से-अधिक सीटें पाने की पूरी कोशिश करती हैं, ताकि वो यहां से प्राप्त सीटों के आधार पर केंद्र में सरकार बनाने या केंद्र की सरकार में भागीदार बनने में सफल हो सकें। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अकेले UP से 60 से ज़्यादा सीटें जीती थीं, जिसके आधार पर BJP को सरकार बनाने में कोई दिक्कत नहीं हुई थी।

मैं समझती हूं कि भले ही इस समय यूपी में विधानसभा चुनाव हैं लेकिन इस चुनाव का असर सिर्फ UP के लिए अपनी सरकार बनने तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि इसका असर एक बड़े स्तर पर आगामी लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिलेगा जैसा कि 2017 के विधानसभा चुनाव में BJP 300 से ज़्यादा सीटें हासिल करके उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब हुई थी।

 2 साल के बाद 2019 में लोकसभा चुनावों में भी उसे उम्मीद से ज़्यादा सीटें हासिल हुई थीं। इसलिए इस बार भी बीजेपी उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतना चाहेगी, ताकि वो सिर्फ उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बना सके बल्कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में भी, वो यहां से ज़्यादा-से-ज़्यादा सीटें हासिल करके एक बार फिर केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब हो सके।

 दूसरी ओर यदि वो हाल के यूपी विधानसभा चुनावों में अपना अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है और केंद्र में सरकार बनाने में विफल रहती है, तो आने वाले विधानसभा चुनावों को जीतना और केंद्र में सरकार बनाना उसके लिए बहुत ही मुश्किल जाएगा। इसलिए हाल में होने वाले यूपी के विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इसलिए इन चुनावों का भविष्य पार्टी के आगे की स्थिति के लिए बहुत अधिक निर्भर करता है, शायद यही वजह है कि बीजेपी का यूपी चुनावों पर अपेक्षाकृत मज़बूत फोकस है।

इस बार बीजेपी को इसलिए भी ज़्यादा मेहनत करनी पड़ेगी कि इस बार का चुनावी परिदृश्य पिछले लोकसभा चुनावों के परिदृश्य से अलग है। 2017 के चुनाव में बीजेपी के विपक्षी वोट बुरी तरह बंट गए थे उदाहरण के लिए बीएसपी को 22% वोट मिले और समाजवादी पार्टी को 21% वोट मिले, इसके अलावा कॉंग्रेस ने 6% वोट प्राप्त किए थे और उनके अलावा अन्य दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों को भी कुछ प्रतिशत वोट मिले थे। 

 इस प्रकार लगभग 60% वोटर्स विभिन्न दलों के बीच विभाजित थे। चुनाव पर इसका असर यह हुआ कि बीजेपी की विपक्षी पार्टियां थोड़ी-थोड़ी सिमट गईं और बीजेपी ने 39% वोट के साथ 300 का आंकड़ा पार कर लिया। अगर पिछले चुनावों में वोटों का बंटवारा इतना बड़ा नहीं होता, तो बीजेपी के लिए 39% फीसदी वोट हासिल करने के बाद भी सरकार बनाना मुश्किल होता लेकिन इस बार स्थिति अलग दिख रही है और वोटों का बंटवारा पिछली बार जैसा नहीं दिख रहा है।

उत्तर प्रदेश में हाल का चुनाव भाजपा (BJP) और एसपी (SP) के बीच प्रतीत हो रहा है यद्यपि कॉंग्रेस, बहुजन समाज जैसी पार्टियां आदि भी ज़्यादा-से-ज़्यादा वोट प्राप्त करने का प्रत्यन कर रही हैं लेकिन इन पार्टियों का असर यूपी की जनता पर बहुत कम है, इसमें कोई शक नहीं कि कॉंग्रेस की ‘प्रियंका गांधी’ भी उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी का प्रभाव बढ़ाने और मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के उपाय कर रही हैं।

 खासकर महिलाओं को प्रभावित करने के लिए, तो वो तरह-तरह की घोषणाएं कर रही हैं लेकिन इसके बावजूद भी उत्तर प्रदेश में कॉंग्रेस का माहौल बनता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है शायद ऐसा इसलिए है, क्योंकि उत्तर प्रदेश के लोग पहले से ही सोचे हुए हैं कि उत्तर प्रदेश में कॉंग्रेस कमज़ोर है और उसकी कम सीटें ही आती हैं इसलिए कॉंग्रेस को जिताने का सपना इस बार भी शर्मनाक नहीं होगा।

जहां तक बात बहुजन समाज पार्टी (BSP) की है, तो अब यह पार्टी अपना असर खो चुकी है। एक समय था कि बहुजन समाज पार्टी (BSP) लोकप्रिय थी, दलित तो उसके साथ थे ही लेकिन बड़ी संख्या में मुसलमानों ने भी बहुजन समाज पार्टी (BSP) को समर्थन और वोट दिया था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं लग रहा है। 

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि बसपा पिछले एक दशक में मज़बूत हुई है। खासकर पिछले पांच सालों में इसका दबदबा बहुत कम हो गया है और पिछले पांच सालों में भी इसके नेता जनता की नज़रों में बिल्कुल नहीं रहे इसका नुकसान यह हुआ कि BSP की पकड़ वोटर्स पर कमज़ोर हो गई और जहां तक BSP और मुसलमानों के सम्बन्धों की बात है, तो ये भी पिछले पांच सालों में बहुत कमज़ोर हुआ है, ना केवल मतदाता बल्कि बसपा से नियमित जुड़ाव वाले कई कार्यकर्ता भी इससे पीछे हट गए हैं, क्योंकि जब शीर्ष नेतृत्व धीमा है, तो निचले स्तर के कार्यकर्ता क्या कर सकते हैं? 

जहां तक मुस्लिम वोटर्स की बात है, तो वो इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि अब BSP उनकी आवाज़ नहीं उठाती, उनकी ही नहीं बल्कि दलितों के मुद्दे भी नहीं उठाती, ऐसे में वो BSP को वोट क्यों दें? इसलिए इस बार मुसलमानों का वोट BSP को मिलता हुआ नज़र नहीं आ रहा है। 

यह अलग बात है कि इनमें से कुछ सीटों पर जहां भी BSP के मुस्लिम उम्मीदवारों का अपना व्यक्तिगत प्रभाव है, BSP वहां से जीत जाए। ऐसा लगता है कि मुसलमानों का, वो वोट जो बहुत बड़ी संख्या में बीएसपी को जाता था या बीएसपी मुस्लिम वोट काट लेती थी, इस बार बीएसपी मुसलमानों का ज़्यादा वोट हासिल नहीं कर पाएगी। BSP दलितों के बीच भी टूटती हुई नज़र आ रही है इसका सुबूत पिछले चुनावों में मिल चुका है दलित वोट अब बीएसपी के अलावा अन्य राजनीतिक पार्टियों को भी मिल रहे हैं।

अगर समाजवादी पार्टी की बात की जाए, तो यह पार्टी बीजेपी से टक्कर लेती हुई नज़र आ रही है। पिछले चुनावों में समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा था, लेकिन इस बार इस पार्टी की चर्चा बढ़ती जा रही है, इतना ही नहीं कई बीजेपी नेता भी उनसे जुड़ गए हैं और बीजेपी को कमज़ोर करने का काम किया है, हो सकता है इसका कुछ फायदा समाजवादी पार्टी को हासिल हो जाए जबकि कुछ लोग समाजवादी पार्टी से भाजपा की तरफ भी गए हैं।

इसलिए कुछ नुकसान समाजवादी पार्टी को भी उठाना पड़ सकता है और उससे कुछ फायदा भाजपा को भी मिल सकता है ऐसा लग रहा है कि यह चुनाव “बीजेपी बनाम समाजवादी” होने वाला है अब देखना यह होगा कि उत्तर प्रदेश का मोर्चा कौन संभालेगा?

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