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“हिजाब प्रतिबंध से सरकार शैक्षिक रूप से पिछड़ी मुस्लिम महिलाओं को उच्च शिक्षा से बाहर धकेलना चाहती है”

हिजाब

हिजाब पर कोर्ट का फैसला

उत्तर प्रदेश और पंजाब सहित देश के विभिन्न राज्यों में महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों से पहले भगवा ताकतों ने एक बार फिर मुस्लिम विरोधी खेल खेलना शुरू कर दिया है।‌ इस बार हंगामा हिजाब के मुद्दे को उछाल कर किया जा रहा है। इस बार भी प्रयास है कि आज आप लोगों को धार्मिक आधार पर अपने माध्यम से घेर लें लेकिन लंबी अवधि की योजना यह है कि हिजाब विवाद की आड़ में मुस्लिम छात्राओं को निरक्षरता के कुएं में धकेल दिया जाए। 

कर्नाटक में हिजाब पहनने वाले मुस्लिम छात्रों के लिए कॉलेज के दरवाज़े बंद करने का सिलसिला अब ज़ोर पकड़ता जा रहा है। सबसे पहले जनवरी में उडुपी के गवर्नमेंट कॉलेज में हिजाब पर प्रतिबंध लगा था।

लेकिन अब ये धीरे-धीरे दूसरे ज़िलों में भी पैर पसार रहा है। उडुपी कॉलेज से उठने वाली नफरत की ये चिंगारी कई शिक्षण संस्थानों को अपने घेरे में ले चुकी है कहते हैं कि “खरबूज़े को देखकर खरबूज़ा रंग पकड़ता है” ठीक उसी प्रकार एक-के-बाद-एक कॉलेज और स्कूलों में मुस्लिम छात्राओं को हिजाब के नाम पर परेशान किए जाने की खबरें लगातार सामने आ रही हैं।

कर्नाटक के कॉलेजों में इन दिनों जो ड्रामा चल रहा है उसे देख कर भी नहीं लगता है कि उसके पीछे सियासी दिमाग चल रहा है। एक तरफ छात्र देश के संविधान की गुहार लगाकर अपने अधिकारों की बहाली के लिए संघर्ष कर रहे हैं ठीक वहीं दूसरी ओर छात्राओं का मुट्ठी भर समय भगवा शान पहनकर क्लास रूम में आने के लिए ज़िद पर अड़ा है। 

अगर वह पहले से भगवा शाल पहनकर आने की मांग करते, तो शायद किसी को भी आपत्ति ना होती लेकिन यही उनकी शरारतों का पैमाना है कि जब मुस्लिम छात्राओं ने मना कर दिया कि वह अपने हिजाब को किसी भी हालत में नहीं हटाएंगी, क्योंकि उन्हें देश का संविधान हिजाब पहनने की अनुमति देता है, तब उनके विरोध को कमज़ोर करने के लिए छात्रों का एक समूह बनाया गया, यह बात भी बीजेपी के एक स्थानीय विधायक ने छेड़ी कि कल कोई “भगवा शान पहनने की मांग करेंगे” तो क्या उन्हें ऐसा करने दिया जाएगा। उसके अगले ही दिन कुछ छात्र भगवा शाल पहनकर स्कूल आ गए।

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मगर दुख की बात यह है कि कुछ लिबरल और महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाले इस खेल को या तो समझ नहीं रहे हैं या जानबूझ कर समझना नहीं चाहते और कई बार कमज़ोर लोगों पर आरोप लगाकर भगवा ताकतों का काम आसान बना रहे हैं। अच्छी बात यह है कि देश के धर्मनिरपेक्ष और सामाजिक न्याय दलों ने प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया है लेकिन भगवा सरकार ने अपना फैसला पलटने की बजाय इस मुद्दे पर बेहद दुखद बयान दिया है। 

ऐसे कपड़े देश की क्षमता और अनुशासन को नष्ट करते हैं, उन्हें क्लासरूम में पहनने की अनुमति नहीं दी जाएगी और इस तरह के प्रतिबंध नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं हैं। इतना ही नहीं अपनी बात को साबित करने के लिए भगवा सरकार ने Karnataka Education Act 1983 का भी सहारा लिया है और कहा है कि पुरुष और महिला छात्रों के लिए कॉलेज द्वारा निर्धारित पोशाक पहनना अनिवार्य है।

ऐसी बातें कहकर भगवा सरकार कोर्ट और जनता के सामने खुद को कानून के रास्ते पर चलने वाली सरकार बताना चाहती है लेकिन इसका असली मकसद मुसलमानों के जख्मों पर ज़्यादा नमक छिड़कना, उनको पिछड़ा और धार्मिक अतिवादी कहना है और खुद को संविधान का रक्षक, समानता और महिला अधिकारों के चैंपियन बताना है लेकिन सच तो यह है कि हिजाब पर प्रतिबंध लगाने का यह फैसला ना सिर्फ मुस्लिम महिलाओं के लिए बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द के लिए भी खतरनाक है। 

हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जो कुछ भी भगवा सरकार कर रही है वैसी घृणित और मुस्लिम विरोधी नीति यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों की वामपंथी सरकारें इसे पहले ही अपना चुकी हैं। इस तरह उन्होंने समाज में तनाव पैदा कर दिया है। सरकार को यह कहते हुए ज़रा भी हिचकिचाहट नहीं होती और ना ही उसकी जबान कांपती है कि एक हिजाब अनुशासन के लिए खतरा कैसे हो सकता है? क्या सरकार ने कोई शोध किया है जिसके आधार पर वो ऐसा कह सके कि हिजाब पहनना अपराध है? और भगवा वस्त्र धारण करने वाला व्यक्ति किसी धार्मिक स्थल को ध्वस्त नहीं कर सकता या दंगों में भाग नहीं ले सकता या बम धमाकों में शामिल नहीं हो सकता।

हिजाब पर प्रतिबंध से भगवा ताकतों को अस्थाई फायदा यह मिल सकता है इस तरह के विवाद जनमत की दिशा को मौलिक प्रश्न से हटाकर धार्मिक और भावनात्मक मुद्दों पर स्थानांतरित कर देते हैं। भगवा ताकतें भी यही चाहती हैं कि दिन-रात धर्म और मज़हब पर बात हो और लोग खुद को धार्मिक पहचान से बाहर ना देखें।

देश की आर्थिक नीति किस ओर जा रही है, रोज़गार और सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुविधा किस सीमा तक मिल पा रही है?युवाओं को कैसी शिक्षा मिल रही है? इन सब सवालों से भगवा राजनीतिक दल हमेशा भागता रहा है। कोरोना महामारी के दौरान जब पूरी दुनिया इस बीमारी से लड़ रही थी और गरीब मज़दूरों की मदद की जा रही थी, तब भी सत्ताधारी भगवा दलों ने कोरोना का धर्म ढूंढ निकाला और उन्होंने इसके और इसके प्रसार के लिए तब्लीग़ी जमाअत और मुसलमानों को बलि का बकरा बनाया।

सरकार की नाकामी छुपाने के लिए मुसलमानों का अपमान किया गया, उनका आर्थिक बहिष्कार किया गया, बहुत सारे मुसलमानों को जेल तक भेजा गया और कुछ ऐसा ही गेम प्लान इस बार हिजाब के विवाद में भी दिख रहा है।

हिजाब पर प्रतिबंध के पीछे एक प्रमुख साजिश यह है कि पहले से ही शैक्षिक रूप से पिछड़ी मुस्लिम महिलाओं को उच्च शिक्षा से बाहर धकेल दिया जाए। सिद्धांत और व्यवहार में जो भगवा ताकतें ये कभी नहीं चाहतीं कि पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग के लोग शिक्षित हों।

उनको डर है कि अगर उत्पीड़ित पढ़-लिख जाएंगे, तो वो उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाएंगे। इस तरह असमानता और शोषण पर आधारित जाति व्यवस्था का यह निज़ाम टूट जाएगा और इसके मालिक बने हुए मुट्ठी भर लोगों का उत्पीड़न और दुर्व्यवहार खत्म हो जाएगा। 

उच्च वर्ग की इसी व्यवस्था ने सदियों से दलित, आदिवासी, पिछड़ों और महिलाओं को शिक्षा से दूर रखा। महात्मा ज्योतिबा फुले और बाबा साहब अंबेडकर इन बातों को समझते थे और उन्होंने इसलिए शिक्षा के महत्व पर ज़ोर दिया। उनके बलिदानों की बदौलत आज़ाद मुल्क के कॉलेज, स्कूलों को सभी जातियों और धर्मों के लिए दिए गए हैं। इस समय भी और आज भी भगवा ताकतें हैं और वो नहीं चाहती हैं कि ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले शिक्षित हों।

हिजाब पर प्रतिबंध लगाकर सरकार मुस्लिम छात्राओं को अनपढ़ रखना चाहती है, क्योंकि NRC और CAA के दौरान इन बहादुर महिलाओं ने यह दिखा दिया था कि महिलाएं भी आंदोलन का नेतृत्व करना जानती हैं।

मुस्लिम महिलाओं को सरकारी शिक्षण संस्थानों से निकालने के लिए अब मास्टर प्लान तैयार किया गया है। ये प्रतिबंध सरकार की बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं की सच्चाई भी बताती है। यह साफ देखा जा सकता है कि हिंदुत्व को मुस्लिमों की हर बात से समस्या है, ये लोग इन लड़कियों को उनके शिक्षा के अधिकार से वंचित कर रहे हैं। ज़ाहिरी तौर पर इन सबके पीछे फासीवादी मानसिकता है।

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