प्रियंका गांधी के ट्वीट को मैंने ध्यान से पढ़ा। उनके इस ट्वीट ने इस मुद्दे में बिकिनी को भी शामिल किया है। साधारण-सी बात है महिलाओं को अपने आभूषण, वेशभूषा, पहनने की पूरी स्वतंत्रता है साथ ही यही स्वतंत्रता हमें हर नैतिक कार्य के लिए मिली हुई है चाहे वह महिला हो या पुरुष हो, तो फ़िर प्रियंका के इस ट्वीट के क्या मायने हैं कि महिलाओं को बिकिनी, घूंघट, हिजाब पहनने कि स्वतंत्रता है?
मुद्दा यह था कि क्या शैक्षणिक संस्थानों में यह सब चलना चाहिए या फिर एक समान ड्रेस कोड हो। मैं व्यक्तिगत तौर पर इस बात को मानता हूं कि महिलाओं को उनके ओढ़ने पहनने कि पूरी स्वतंत्रता होती है, जो कि भारत का संविधान देता है। वहीं ज़मीनी हकीकत को जानते हुए हम आगे बढ़ेंगे तो हमारे देश में 10 प्रतिशत ऐसे लोग होंगे, जो अपने लड़कियों को या लड़को को बिकिनी या कच्छे में घूमने की अनुमति देंगे।
अब यहां यह सामाजिक मामला है कि हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है? हो सकता है आप बिकिनी वाली स्वतंत्रता को प्रमोट करती हों लेकिन भारत के लगभग 6 लाख गाँवों में रहने वाली लगभग 70% जनसंख्या अपने बच्चों की इस स्वतंत्रता का विरोध करती है, शहरी जनसंख्या का भी 70% हिस्सा यही चाहता है लेकिन तथाकथित पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी लोग संविधान से इतर कुछ देख ही नहीं पाए। यह मेरे अपने विचार है आपके कुछ और हो सकते हैं।
खैर, वह तो जब बिकिनी की बात होगी, तब की जाएगी। अब आते है प्रियंका गांधी के ट्वीट पर उनका ट्वीट महिलाओं को लेकर किया गया था। इस संदर्भ में नहीं कि शैक्षणिक संस्थानों में कौन क्या पहनेगा? यह तो उन्होंने स्पष्ट नहीं किया। मुझे किसी ने कहा कि उनका ट्वीट तो सभी महिलाओं के लिए था फिर उसको स्कूल, कॉलेज से जोड़ने की क्या आवश्यकता थी? मैंने सुना था कि देश के बड़े राजनेता जब कुछ बोलते हैं या लिखते हैं, तो बहुत सोच समझकर लिखते हैं, मुद्दे पर बोलते हैं, चाहे वह प्रधानमंत्री मोदी हों या विपक्ष के राहुल गांधी हो या प्रियंका गांधी।
वे मुद्दे से इतर बात नहीं करते फिर यह किस किस्म का जनरल सेंस था। ऐसे ही कोई ट्वीट कल अगर मोदी, अखिलेश या ममता करे कि भारत के हर नागरिक को घूमने की स्वतंत्रता है और उसे यह स्वतंत्रता संविधान देता है! अब इसका क्या मतलब हुआ? प्रियंका जी के ट्वीट को या तो शुद्ध जनरल सेंस में लो या फिर उस मुद्दे पर। यह अगर मैं जनरल सेंस में लूं, तो इसका सीधा मतलब कुछ नहीं होगा और वहीं अगर मैं इसको कर्नाटक और हिजाब से जोड़कर देखूं, तो फिर बिकिनी का सवाल ही नहीं उठता! मुद्दे से मैंने भी आपको भटकाया है राजनीतिक और सामाजिक में बांटकर।