‘युवा’ जिसे भारतीय इतिहास में परिवर्तन का योद्धा माना जाता रहा है। ‘युवा’ शब्द का नाम लेते ही व्यक्ति के दिमाग में कुछ खास तस्वीरें घूमने लग जाती हैं, जिसमे भारतीय युवाओं के रोल मॉडल भगत सिंह, स्वामी विवेकानन्द, खुदीराम बोस जैसे वीर सपूतों का नाम मानस पटल पर आता है जिन्हें आज हमारे देश का युवा याद करता है और उनकी शहादत को सलाम करता है।
जब हम वर्तमान भारत में युवाओं पर चर्चा करते हैं, तो ‘उड़ता पंजाब’ जैसी फिल्में ही यह बताने के लिए काफी हैं कि हमारा युवा वर्ग अंधेरे की ओर जा रहा है। आज देश में युवाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती रोज़गार बन गया है। भारत देश का हर दूसरा युवा रोज़गार की तलाश में देश के कोने-कोने में भटक रहा है और हताश एवं निराश हो कर नशे की गिरफ्त में जा रहा है, जिसका सबसे बड़ा नुकसान देश की युवा शक्ति को हो रहा है।
पिछले 7 वर्षों से युवा वर्ग के बीच अपने भविष्य एवं रोज़गार को लेकर जो निराशा और हताशा आई है। उस निराशा में आशा की किरण जगाने वाला कोई संगठन या सामाजिक संस्था या फिर शिक्षण संस्थाओं का कोई बड़ा सकारात्मक नज़रिया हमारे सामने नहीं आया है, जो युवाओ की बदल रही दिशा को एक नया आयाम दे सके या फिर उसे एक नई पहचान के लिए आगे ला सके, क्योंकि एक बड़े पैमाने पर युवाओं में बढती बेरोजगारी ने उन्हें काफी अन्दर तक तोड़ने का कार्य किया है जिस वजह से भारत के कई आंकड़ो में युवाओं को लेकर बड़ा बदलाव आया है।
कुछ आकंडे जो हमें यह सोचने पर विवश करते हैं कि हमारी सरकार जिसे हमारे देश के संवैधानिक मूल्यों के साथ देश की युवा वर्ग की शक्ति को एक नई शक्ति के रूप में उपयोग करना था, परन्तु हमारी सरकार युवाओं के भविष्य को बेरोजगारी के किस अंधरे में धकेल रही है?
यह हमारे देश के एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं। यदि हम NCRB के आंकड़ों को देखें, तो हमें साफ नज़र आता है कि सन 2018 से 2019 में 1.39 लाख से ज़्यादा लोगों ने आत्महत्या की है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में जितनी आत्महत्या की घटनाएं हुईं, उनकी 2018 के आंकड़ों से तुलना करें, तो युवाओं के आत्महत्या करने की घटनाएं एक साल में 4 फीसदी बढ़ी हैं। 2018 में 89,407 युवाओं ने आत्महत्या की और इस तरह हम पाते हैं कि जिन लोगों ने की वो हमारे देश का युवा वर्ग है।
इन आंकड़ो ने इस बात की पुष्टि की है कि देश का युवा हताश और निराश है। उसके पास डिग्री है परन्तु नौकरी नहीं है और नौकरी के नाम पर उनके पास कौशल विकास योजना के साथ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पास नौकरी करने की मज़बूरी है।
जीवन को कुशलता पूर्वक निर्वहन करने के लिए जीविका के लिए “धन” ज़रूरी अवयव है और यह ऐसे युवा कर रहे हैं जिन्हें समाज में जीना है और अपने सामने खड़ी चुनौतियों का जम कर सामना करना है जिसकी तादाद 10% ही है।
इसके अलावा देश का अधिकांश युवा वर्ग नशे की चपेट में अपना जीवन गुज़ार रहा है। भारत सरकार के द्वारा ज़ारी एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, 7.13 करोड़ भारतीय तरह-तरह के नशे के शिकार हैं और उनकी तादाद बढती जा रही है। इस तरह देखा जाए तो हमारा युवा वर्ग पूरी तरह निराश दिख रहा है और इसकी सिर्फ एक वजह नहीं हो सकती है।
कई वजहों से घिरा युवा अपनी तमाम उलझनों को अपने साथ समेटे हुए अन्दर-ही-अन्दर अपने ही सवालों के जवाब ढूंढने में खो जा रहा है और वह अपने आप से ही सवाल पूछ कर मानसिक अवसाद से ग्रस्त हो रहा है।
ऐसे में हमें एक आशा की किरण सरकार से जुड़ी हुई दिखाई देती है कि जिनके पास अपने सुन्दर सपनों को उडान देने के लिए बहुत ही रास्ते हैं परन्तु क्या यह सरकार उन्हें एक नया आयाम दे सकती है? परन्तु हमारी सरकारें अब तक यह तय नहीं कर पाई हैं कि देश के युवाओं की दिशा और दशा क्या होगी?
देश की राजनीति में किस तरह युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित होगी? यह भी एक बड़ा विषय बन कर उभरता जा रहा है, जो बहुत ही धुंधला है और जहां पर एक निश्चित भविष्य नहीं दिख पा रहा है।
‘अंधकार में भविष्य की तलाश ही युवा होने की पहचान है’ स्वामी विवेकानंद के यह शब्द वर्तमान युवाओं के जीवन के लिए नया वरदान साबित हो सकते हैं जिसका जीता-जागता उदाहरण बेरोजगारी की मार ने भारत में एम बी ए चाय स्टाल के साथ नए-नए प्रैक्टिस और छोटी-छोटी परियोजनाओं का जन्म है, जहां पर आज देश का युवा वर्ग संघर्ष करता नज़र आ रहा है।
देश के दिशाविहीन युवाओं को एक नई दिशा देने के लिए हमारी सरकार काफी बेहतर प्रयास कर सकती है जिसके लिए सरकार ने स्टार्टअप जैसी योजनाओं की शुरुआत की है, परन्तु इस कार्यक्रम का बेहतर प्रचार-प्रसार के अभाव में यह अपने विभाग तक ही दम तोड़ रहा है जिन्हें जानकारी है वह उन योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं करवा पा रहे हैं और इसमें सरकारी विभाग भी पूरी तरह सक्रिय नहीं है अगर कुछ युवा इस तरह के कार्यक्रम से जुड़ने की इच्छा रखते हैं, तो उन्हें सरकारी पेंचो में फंस कर उलझ जाना पड़ता है, शायद यही मुख्य वजह हो कि युवा ऐसी योजनाओं से जुड़ नहीं पा रहे हैं।