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देवियों के देश में ‘महिलाएं’ घर हो या बाहर कहीं भी असुरक्षित क्यों हैं?

महिला

हमारे देश में जहां स्त्री को देवी का दर्ज़ा दिया जाता है और हम कहते भी हैं, “नारी सर्वत्र पूज्यते” यानि कि नारी को सब जगह पूजा जाता है या पूजा जाना चाहिए लेकिन क्या कभी आपने इसी देश में इन्हीं लोगों को सड़कों, बस, ट्रेन और चाय-पान के स्टालों पर इन्हीं औरतों को माँ, बहन और बेटियों की गालियों में खड़ा नहीं पाया है? 

कभी कोई गुस्से से, तो कभी हंसी ठिठोली में ‘नारी सर्वत्र पूज्यते’ को सार्थक करता हुआ हमें मिल ही जाता है। अब आप कहेंगे भला इन दोनों बातों का आपस में क्या ताल-मेल है या आप कह सकते हैं कि मेरी तो बुद्धि ही भ्रष्ट है लेकिन आपको कभी किसी भी व्यक्ति के विचारों को समझना है, तो हमें उसके शब्दों को ही समझना होगा मतलब! हर वो इंसान जो कहीं खड़े होकर किसी और की माँ और बहन को बात-बात में अपशब्द कह सकता है, वो भला क्या नहीं कर सकता है? और यदि ऐसे शब्द एक लड़की के तौर पर मुझे या किसी और को सुनने पड़ें, तो यकीन मानिए वो लड़की अपनों के बीच भी खुद को असुरक्षित महसूस करने लग जाएगी।

अब आप कह सकते हैं किअरे ! ऐसा कहीं कुछ भी नहीं है, तो आइए अब बात करते हैं हमारी राजधानी यानि भोपाल की, कि यहां लड़कियां कितनी सुरक्षित हैं?

यूं तो भारत में लड़कियां कहीं भी असुरक्षित नहीं है बशर्ते दिन ना ढला हो, क्योंकि उसके बाद उनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी कोई भी नहीं लेता यहां तक के उनके स्वयं के परिवार भी नहीं। यह बात आपको कड़वी लग सकती है और लगनी भी चाहिए लेकिन आप खुद से पूछिए क्या एक लड़की की सुरक्षा का मानक दिन का होना चाहिए? और अगर आप इस बात से इनकार करते हैं, तो म.प्र की राजधानी यानि भोपाल के किसी भी ऐसे हिस्से में देर शाम खड़े रहकर ज़रूर देखिए, जहां लोग कम हों, रौशनी कम हो। 

यदि आप एक लड़की हैं, तो आप वहां खड़े रह ही नहीं सकतीं, क्योंकि वहां से गुज़रने वाला हर शख्स आपको अपनी नज़रों से ही असहज कर देगा और ये वही लोग होते हैं, जो दिन में देवी-पूजा की बातें कर रहे होते हैं और सिर्फ राजधानी ही नहीं ये किसी भी प्रदेश में खाली रास्तों पर पाया जाने वाला एक आम सा दृश्य है।

राज्य की राजधानी में आप सड़क पर पैदल चल रहे हों, तो कोई भी रुककर आपको कह सकता है, साथ चलोगी क्या? और ये वाकया सीएम हाउस के एकदम करीब बने लेक व्यू का भी हो सकता है और भीड़भाड़ वाले इलाके आईएसबीटी बस स्टैंड का भी बस बात इतनी है कि जिसको जैसा मौका मिले वो वैसी ही हरकत करेगा फिर शहर में आप कितने भी महिला सुरक्षा के हेल्पलाइन नम्बर जगह- जगह दीवारों पर लिखवाइए या दीवारों पर कितने ही पोस्टर चिपकवाइए कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि एक लड़की के साथ घटने वाला ये एक आम सा वाकया है और ये हर तरफ एक जैसा ही है।

हम लड़कियां एक बार ऐसा होने पर दूसरी बार उस जगह वापस जाने से बचती हैं और फिर ये भी कहती हैं कि  माहौल तो ठीक है, सिर्फ एक बार ही ऐसा हुआ था और यकीनन ये पढ़ने के बाद लोग आपको देर शाम घर से ना निकलने या फिर अपनी सुरक्षा के लिए कोई स्प्रे, टॉर्च, कटर या कोई और चीज़ साथ रखने की नसीहत देंगे मगर ये कोई नहीं बताएगा आखिर ऐसा क्यों?

मेरी एक मित्र जो कि लखनऊ से है, मैं अक्सर उससे कहती हूं कि मुझे लखनऊ घूमने का बहुत मन है, तो बताओ वो शहर कैसा है? तब वो हर बार कहती है बहुत अच्छा है लेकिन अगर तुम एक लड़की हो, तो शाम के बाद वहां सड़कों पर पैदल नहीं चला जा सकता है?

अपराध और छेड़छाड़ में कोई खास फर्क नहीं होता और एक बस, बस स्टॉप, शॉपिंग मॉल में ये लिखा होना की ये सीट, कम्पाउंड, लाइन महिलाओं के लिए है, इतना भर कर देने से कोई सुरक्षित नहीं होता है। आप यकीन मानिए किसी भी शहर में एक लड़की को खुद को सुरक्षित रखने के लिए खुद को उस घेरे तक ले जाना ही पड़ता है, जहां लोग ज़्यादा हों, जहां भीड़ ज़्यादा हो वरना उनके लिए खड़े रहना भी दुश्वार हो जाता है और मैं एक लड़की होने के नाते किसी भी सरकार से यही अपेक्षा रखूंगी की महिलाओं को सुरक्षित बनाने के लिए योजनाओं से ज़्यादा उपयोगिताओं की ज़रूरत है।

बेटी पढ़ाओ और बेटी बढ़ाओ स्लोगन से ज़्यादा ज़रूरी है कि शहर के उन हिस्सों को रौशनी और पुलिस हेल्पलाइन दोनों से जोड़ा जाना चाहिए, जहां लोगों की आवाजाही कम है, क्योंकि किसी के मन में कितना भी अपराध भरा पड़ा हो, वो पुलिस भर के खौफ से ऐसे किसी भी अपराध को अंजाम देने से डरेगा और साथ ही हमें ऐसे दूसरे देश जहां महिलाएं सबसे ज़्यादा सुरक्षित हैं, उनकी तर्ज पर हमारे यहां कानून और सुरक्षित माहौल दोनों को लागू करने की कोशिश करनी चाहिए। 

कोई नहीं देख रहा हो, तो सब चलता है वाली मानसिकता से हमें बाहर आना चाहिए। यूं भी हमारा देश भारत दुनिया में महिलाओं के लिए असुरक्षित देश के मामले में टॉप पर है और ये घर और बाहर दोनों ही स्थितियों में है, तब आप अंदाज़ा लगा सकते हैं ‘नारी सर्वत्र पूज्यते’ का सच्चे शब्दों में हमारे देश में क्या अर्थ है।

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