फिलहाल के दिनों में सामाजिक मुद्दों को छानती भारतीय फिल्में अक्सर पहले के मुकाबले ज़्यादा बनाई जा रही हैं। भारतीय सिनेमा की ओर से यह एक बहुत ही अच्छी पहल है। अगर हम बात करें साउथ इंडिया की फिल्मों की, तो वहां हमको ऐसे मुद्दे काफी देखने को मिल जाएंगे।
मैं एहसानमंद हूं भारतीय सिनेमा का कि यहां समाजिक मुद्दों को स्क्रीन पर उतारने का एक बेहतरीन आयाम प्रदर्शित किया जा रहा है।
पिछले दिनों रिलीज़ हुई कई फिल्में जैसे, जय भीम, सरदार ऊधम, आदि ने समाज को एक नया संदेश दिया है। दिसंबर 2021 में रिलीज़ हुई पुष्पा- दी राइजिंग। पुष्पा मूवी को सुकुमार ने डायरेक्ट किया है। इस फिल्म को नवीन येरनेनी और वाई रवि शंकर ने प्रोड्यूस किया है।
यह एक ऐसी फिल्म है, जो ना केवल पात्रों के अभिनय को देखने पर मजबूर करती है, बल्कि इसमें पर्यावरण के क्षेत्र में फैल रही चंदन तस्करी की समस्या को भी बखूबी पर्दे पर दिखाया गया है।
यह फिल्म पूरे तौर पर एक मेनस्ट्रीम फिल्म है। फिल्म का हीरो एक मज़बूत किरदार में पिरोया हुआ दिखाया गया है, जिसके डायलॉग में स्वैग है। डायलॉग के हर बोले गए शब्द में ताकत के साथ-साथ वास्तविकता भी है।
हीरो की बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग डिलिवरी, एक्शन शानदार है। जबकि सिनेमेटोग्राफी बेहतरीन दृश्यों के लिए काफी उत्साहित करती है।
फिल्म में जंगल और चंदन की लकड़ियों की तस्करी को दिखाया गया है। दक्षिण भारत के शेषांचलम के जंगलों से ये लकड़ियां चेन्नई और चीन होती हुई जापान तक पहुंचती हैं। ये खास तरह की लकड़ी है। इसका नाम रक्त चंदन होता है। पुष्पा फिल्म की कहानी भले ही काल्पनिक हो मगर फिल्म में रक्त चंदन के विषय में जो भी दिखाया गया है, वो लगभग सच है।
ये सिर्फ एक लकड़ी नहीं, बल्कि भारत का एक प्राकृतिक खज़ाना है। भारत में पाई जाने वाली इस लकड़ी को लाल सोना भी कहा जाता है। ये भारत की धरोहर है। इसमें रंगदारी से लेकर तस्करी तक का काम होता है। फिल्म में तस्करी करने वाले गिरोह को बखूबी उकेरा गया है।
इस काम में करोड़ों का फायदा होता है लेकिन कई तरह के जोखिम भी हैं। पुलिस को चकमा देना है, अपराधियों का एक गिरोह है, जिसमें धोखे की पूरी संभावना होती है।
क्या वास्तव में आपका अस्तित्व आपके पिता के कंधों पर निर्भर है?
मूल कहानी धीरे-धीरे और अधिक विस्तार से खुलती है और अक्सर पुष्पा से उसके परिवार और उसकी जाति के लिए समाज में सवाल किया जाता है। समाज में फैली जातिवाद कr कीचड़ की छींट इस मूवी पर साफ नज़र आती है।
फिल्म में जातिगत भेदभाव को बिल्कुल ऐसे दिखाया गया है, जैसे हम समाज के क्रूर चेहरे को सामने देख रहे हैं। जिस तरह हमारे समाज में एक दलित परिवार को समझा जाता है, उसी तरह फिल्म में दिखाया गया है कि किसी भी बच्चे की जाति उसके पिता से सम्बंधित होती है और उसकी स्कूली शिक्षा पर किसी के पिता के ना होने पर उनके भविष्य पर विराम लगा देता है। मूवी में शुरुआती दृश्य में यही दिखाया गया है।
कुल मिलाकर फिल्म अल्लू अर्जुन के इर्द गिर्द घूमती है। पटकथा और कहानी के क्लाइमेक्स में और भी जान डाली जा सकती थी मगर कमज़ोर प्रेम कहानी और नाटकीय दृश्य कई जगह बहुत उबाऊ लगते हैं। यदि आपने कई अरसे से मेनस्ट्रीम मूवी नहीं देखी है, तो एक बार अपने मनोरंजन के लिए आप ये मूवी देख सकते हैं।