जहां एक तरफ कोरोना का नया वैरिएंट ओमिक्रोन देश भर में तेज़ी से अपना पैर पसार रहा है। वहीं कई राजनैतिक दल अपनी चुनावी रैलियों में लग कर भीड़ जमा कर रहे हैं, जिस तरह राज्य सरकारों ने आम जनमानस के कई मनोरंजन के साधन जैसे शॉपिंग मॉल, सिनेमाघरों, जिम और कई बाज़ारों को पूर्ण रूप से बंद कर दिया है।
यहां तक कि शैक्षणिक संस्थानों को भी बंद कर दिया गया है जिसका बहुत गहरा असर छात्रों की शिक्षा पर पड़ रहा है, जिनकी शिक्षा देश के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, उसे तक सरकार को बंद करना पड़ा, ताकि कोरोना को फैलने से रोका जाए।
वहीं दूसरी ओर B.J.P दल के नेता बेफिक्र होकर कोविड के देशव्यापी प्रोटोकॉल को तोड़ कर कई चुनावी रैलियों में आम जनमानस की जान को कोविड के भयावह संकट में डालकर भीड़ जमा कर अपनी राजनैतिक स्वार्थ की पूर्ति कर रहे हैं।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में अपनी चुनावी रैली कर लाखों की संख्या में भीड़ जमा की गई, क्या कोरोना महामारी से बचने के लिए सारे नियम आम जनता के लिए ही हैं? क्या आम जनता ही कोविड प्रोटोकॉल के नियमों का पालन करने के लिए बाध्य है? क्या राजनैतिक दल देश के संविधान और आम जनमानस के प्राणों से ऊपर हैं?
जब देश की राजधानी दिल्ली में नाइट कर्फ्यू लगाया गया था, तब कई लोगों ने कोविड प्रोटोकॉल के नियमों को तोड़ने के जुर्म में अपना चालान भरा। क्या सरकार और राजनैतिक दल भी अपनी चुनावी रैलियों में भीड़ जमा करने और कोविड प्रोटोकॉल के नियमों के उल्लंघन करने के जुर्म में चालान भरते हैं?
आज कई राज्यों में सरकारें और राजनैतिक दल सिर्फ कोरोना ही नहीं फैला रहे हैं वरन अब की बार वे हिन्दू धर्म का भी प्रचार कर रहे हैं पर वह हिन्दुत्व का प्रचार नहीं कर रहे हैं और अधर्म का प्रचार कर रहे हैं, क्योंकि हिन्दू धर्म कभी किसी दूसरे धर्म को नीचा दिखाना नहीं सिखाता है ना किसी अन्य धर्म का बुरा करना पर हमारे देश की सत्तारूढ़ सरकार धर्म का फायदा उठाकर कर अपने वोट जमा करने में लगी हुई है।
वो भूल गए हैं कि जिस हिंदुत्व का सहारा लेकर आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। वही हिन्दू धर्म हमें यह सिखाता है हम जैसा कर्म करते हैं, हमें वैसा ही फल मिलता है और देश के कानून में भी हमें बताया गया है जो कि हमारे मौलिक अधिकारों में लिखा गया है कि भारत का कोई भी नागरिक अपनी इच्छा से कोई भी धर्म चुन सकता है और धार्मिक शिक्षा प्राप्त कर सकता है।
कोरोना की दूसरी लहर से देश की आर्थिक स्थिति भी बुरी तरह से बिगड़ गई है, कई बच्चे अनाथ हो गए हैं, वहीं आम जनता अपने आप को इस कोरोना से बचाने में लगी हुई है। वहीं देश की सरकार अपनी रैलियों द्वारा कोरोना को बढ़ाने में लगी हुई है। क्या जागरुकता बस आम जनता के लिए है? जिनके बच्चों को यह भी नहीं पता कि उनका भविष्य उन्हें कहां ले जाएगा।
वहीं कई राजनीतिक दल अपने फायदे में लगे हुए हैं, जितनी भीड़ स्कूल और कॉलेज में नहीं होती है। उस से कई अधिक भीड़ राजनैतिक दलों की चुनावी रैलियों में होती है। आम जनता अपनी कितनी भी कोशिश कर ले कोरोना को बढ़ने से रोकने के लिए पर सरकार इसे नहीं रोक पाएगी, क्योंकि वह इसे रोकने में और देश की बदहाल, कमज़ोर और लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को ठीक करने में अपना योगदान पूर्ण रूप से से नहीं दे रही है।
वहीं दूसरी ओर हिन्दू धर्म के तथाकथित रक्षकों ने B.J.P दल को ही अपना सब कुछ मान लिया है। वहीं कुछ पुलिस कर्मी भी उन धर्म अनुयायियों का साथ दे रहे हैं, जो लोग जनता के बीच भड़काऊ भाषण दे रहे हैं और दूसरे धर्म के लोगों के भीषण नरसंहार की बातें कर रहे हैं।
यहां तक कि कुछ उग्र हिन्दू धर्म के तथाकथित रक्षक देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में उल्टे सीधे बयान देते हैं पर देश की पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के बजाय उन्हें खुला छोड़ रही है, क्योंकि उन धर्म अनुयायियों के साथ B.J.P सरकार खुद शामिल है, जो सरकार देश की पुलिस को भी अपने हाथों की कठपुतली बना चुकी है।