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क्यों हमें अपने डाटा और निजता के अधिकार का संरक्षण करना चाहिए?

क्यों हमें अपने डाटा और निजता के अधिकार का संरक्षण करना चाहिए?

लंदन के प्रसिद्ध गणितज्ञ क्लाइव हमबि ने एक दशक पहले ही कह दिया था, “डाटा, नया तेल है। डाटा डिजिटल दुनिया का एक डिजिटल रुपया है, जिसका इस्तेमाल किसी पार्टी, संस्था या कंपनी के फायदे के लिए हो सकता है या किसी देश की अर्थव्यवस्था, अखण्डता और संप्रभुता के साथ खिलवाड़ भी किया जा सकता है।”

क्यों ज़रूरी है निजी डाटा संरक्षण कानून?

भारत में इस कानून को लाने की बात वर्ष 2017 से शुरू हुई, जब बी एन श्रीकृष्ण कमेटी ने भारत सरकार के सामने मसौदा पेश किया कि देश और उनके नागरिकों के निजी डाटा का विनिमयन होना या बिना पूर्व सूचना के ट्रांसफर करना, किसी गैर इरादतन काम में उपयोग करना, असंवैधानिक और अवैध करार दिया जाए।

इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय के पुत्तस्वामी ने भी कहा कि राइट टू प्राइवेसी और राइट टू बी फौरगॉटन को मूल अधिकार में जोड़ा जाए। इस तरह के सवाल हमेशा से उठते रहे हैं कि भारत को भी अपने डाटा को सुरक्षित रखने के लिए स्वयं ही कोई कानून और प्रावधान लाने की आवश्यकता है।

हालांकि, कोविड के आने से यह लगभग दो साल के लिए टल गया। यह कानून अपने देश की एकता, अखण्डता और संप्रभुता के साथ-साथ देशवासियों के निजी डाटा के संरक्षण को लेकर लाया गया है।

नागरिकों के निजी डाटा को कैसे बचाएगी सरकार?

निजी डाटा मामले में कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं फिर चाहे वो सरकार को किसी भी नागरिक के निजी डाटा का उपयोग पर खुली छूट को लेकर हो या फिर सरकार के द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा किए जा रहे विचारों और सूचनाओं पर नज़र बनाए रखना हो।

ऐसा बताया जा रहा है कि नागरिकों के निजी डाटा संरक्षण के लिए, देश में ही मज़बूत इनस्क्रिप्शन यानि आसानी से हैक ना किया जा सके, बनाने की ज़रूरत होगी। इसके साथ ही सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर नागरिकों की निजी जानकारी को, बिना नागरिकों और सरकारी अथॉरिटी के अनुमति के कहीं भी नहीं भेज सकने के लिए प्रावधान कर रही है।

निजता के अधिकार का उल्लंघन

निजता का अधिकार, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में उल्लेखित है। हालांकि, कई बार इसका उल्लंघन भी हुआ है, जिसकी जानकारी अमूमन आम नागरिकों को नहीं होती है उदाहरण के तौर पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, सर्च इंजन हमारे डाटा को स्टोर करके, किसी कंपनी अथवा संस्थान को हमारे जानकारी के बगैर बेच देते हैं या ट्रांसफर कर देते हैं, जिससे हमारी निजी जानकारी उक्त संस्थानों के पास चली जाती है और वे उसका अपने फायदे के लिए उपयोग करते हैं।

ऐसे में सरकार ने नागरिकों को इस विधेयक में ‘राइट टू फौरगॉटन’ यानि कि अपने डाटा को वापस लेना या डिलीट करवाना, जिससे उसका आगे कहीं और बिना उपयोगकर्ता की अनुमति के इस्तेमाल ना हो सके, इसका अधिकार दिया गया है। इससे काफी हद तक डाटा खिलवाड़ से बचा जा सकता है।

कितने देशों में है डाटा संरक्षण कानून?

वैश्विक स्तर पर 194 देशों में से 128 देश इसको लागू करने की दिशा में गतिमान हैं। हालांकि, 16 देशों में जीडीपीआर यानि ‘जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेग्युलेशन’ लागू कर दिया गया है, जिनमें कि इस्राइल, तुर्की, जर्मनी, स्वीडन, फ्रांस समेत कई देश शामिल हैं।

इसके कुछ विपरित परिणाम भी हैं, डाटा प्रोटेक्टशन को लेकर बनाए गए कानूनों को हम ज़्यादा सख्त भी नहीं कर सकते, क्योंकि इसका दुष्प्रभाव हमारे देश में विदेशों से आ रहे निवेश पर भी पड सकता है।

ऐसे में अर्थव्यवस्था और अखंडता दोनों को ध्यान में रखते हुए, हमें संतुलित रूप से आगे बढ़ना होगा। इस बात पर भी हमें विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है कि किसी भी नागरिक या देश का डाटा, राजनैतिक लाभ या आर्थिक लाभ के लिए इस्तेमाल ना हो अन्यथा, निजता एक मिथक है, पूर्ण रूप से एक बार फिर साबित हो जाएगा।

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