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“हमारे समाज में लड़कियों को बोझ क्यों माना जाता है”

"हमारे समाज में लड़कियों को बोझ क्यों माना जाता है"

14 दिसम्बर की वो रात मुझे आज भी याद है, जब मेरे कॉलेज की एक लड़की, जो मेरी बहुत अच्छी दोस्त हुआ करती थी और वह जब कॉलेज में किसी को नहीं जानती थी, तब वो लड़की ही थी, जिससे सब से पहले मेरी मुलाकात हुई और धीरे-धीरे बात होते-होते हमारी दोस्ती थोड़ी गहरी हो गई थी।

हम एक ही हॉस्टल में साथ रहते थे, बस हमारे रूम अलग-अलग थे। उसी हॉस्टल के रूम नम्बर 111 में वो रहती थी और उसी के 4 रूम के बाद मेरा कमरा था। अक्सर जब भी हम दोनों में से किसी का भी मूड खराब होता था, तो हम हॉस्टल की सीढ़ियों पर बैठ कर कई घंटों तक बहुत बातें किया करते थे, लेकिन 14 दिसम्बर की वो रात जिसने हमारी दोस्ती के साथ हमारा सब कुछ भी खत्म कर दिया था।

वो बहुत भयानक रात थी, जिसके बाद कई महीनों तक मैं ठीक से सो भी नहीं पाती थी, जब भी मैं अपनी आंखों को बंद करती, तो वो मंज़र मेरी आंखों के सामने घूमने लगता था, जिससे ना मैं सो पाती थी और ना ही रो पाती थी।

14 दिसम्बर की रात के 12:01 पर जब सभी अपने अपने कमरों में सोने के लिए चले गए थे और तभी में किसी काम से अपने कमरे से बाहर घूम रही थी, तभी जब तेज़ हवाओं के बीच सन्नाटे को चीरते हुए एक आवाज़ मुझे सुनाई दी जो कि मेरे पास वाले रूम से आई थी। 

वो आवाज़ जब मेरे कानों में पड़ी, तो मुझे सुन कर थोड़ा अजीब लगा क्योंकि इस समय आधी रात हो चुकी थी और तेज़ हवाओं के चलते सभी अपने-अपने कमरों में चले गए थे, तभी अचानक किसी रूम से इस तरह की आवाज़ आना एक अजीब घटना की तरफ इशारा कर रही थी। 

खैर, मैं सन्नाटे को चीरती हुई उस आवाज़ का पीछा करते हुए उस कमरे की तरफ बढ़ी और जैसे-जैसे मैं उस रूम की तरफ कदम बढ़ा रही थी, वैसे-वैसे मेरे दिल की धड़कन भी बढ़ रही थी और जैसे ही उस रूम के पास पहुंची और मैंने दरवाज़े को खोलने कोशिश की और थोड़ी सी कोशिश करने पर उस रूम का दरवाज़ा खुल गया और अंदर का दृश्य देख कर मेरी आत्मा सहम सी गई, जब मैंने एक लड़की को पंखे से लटका देखा, तो एक बार मेरी आत्मा ने अपना शरीर छोड़ दिया और वो दृश्य देखकर मेरे हाथ-पांव काम नहीं कर रहे थे। 

मेरे दिल की धड़कन की अब इतनी तेज़ हो गई थी कि मेरे मुंह से आवाज़ निकलना बंद हो गई थी, लेकिन तब भी खुद को संभालते हुए मदद के लिए मैंने अपनी एक दोस्त को आवाज़ लगाई, जिससे हॉस्टल के सभी लोग जाग गए और उस रूम के बाहर इकठ्ठा हो गए जब तक लोग वहां इकठ्ठा हुए तब तक मैंने अपनी दोस्त के साथ मिल कर उस लड़की को समय रहते पंखे से नीचे उतार लिया था, जिससे उसकी जान बच गई लेकिन पूरे हॉस्टल में डर का माहौल बन गया था।

 उस रात हॉस्टल में कोई नहीं सोया और मेरी तो कई रातों की नींद मानो उड़ सी गई थी। इस घटना के बाद जब लड़की के घर वालों को घटना की जानकारी दी, तो उस लड़की के लिए उसके परिवार वालों का ऐसा गन्दा व्यवहार देख कर मेरा दिल टूट सा गया या यूं कहो कि इंसानियत से भरोसा ही उठ गया।

आज भी जब मैं उस घटना को याद करती हूं, तो उसके परिवार वालों के वो शब्द मेरे कानों में गूंजने लगते हैं, जो उन्होने अपनी बेटी के लिए बोले थे, “मरने देते मर जाती तो अच्छा था, ऐसे कई शब्द थे” जो ऐसी घटना होने के बाद किसी का भी दिल दहला सकते हैं।

उस समय मेरे दिमाग में कुछ सवाल थे, जिनका जवाब मुझे आज तक नहीं मिला कि लक्ष्मी-दुर्गा-सरस्वती की तरह पूजी जाने वाली एक बेटी को पाल नहीं सकते, तो पैदा क्यों करते हो? बेटियां घर के लिए बोझ नहीं होती घर का सम्मान होती हैं।

वो घटना मेरे दिमाग में इस तरह बस गई थी जैसे एक बुरा साया हमेशा के लिए हमारे पीछे पड़ जाता है। उस दिन मेरे द्वितीय वर्ष का आखिरी पेपर था, जो कि इस घटना के बाद बिल्कुल भी अच्छा नहीं गया। उस समय परीक्षा देते समय भी मेरे दिमाग में सिर्फ वही घटना घूम रही थी और ना चाहते हुए भी मेरी आंखों से आंसू नहीं रुक रहे थे। तेज़ हवाओं के बीच सन्नाटे को चीरती वो आवाज़ आज भी कभी याद आ जाती है, तो मेरी रातों की नींद उड़ जाती है।

मैं खुद को बहुत खुशनसीब समझती हूं कि मैं एक ऐसे घर में पैदा हुई, जहां लड़की को सिर का ताज समझा जाता है, उसे पैर की जूती नहीं। मेरी भगवान से दुआ है कि वह लड़कियों को हमेशा ऐसे घर में पैदा करे, जहां उनकी इज़्ज़त हो और ऐसे लोगों को लड़की कभी ना दे, जो लड़कियों को बोझ समझते हैं।

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