हमारे देश में चुनावी मौसम है या राजनीतिक दलों की एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने की प्रतिस्पर्धा का मौसम है? क्या यह चुनाव का समय है या एक-दूसरे पर आरोप और प्रत्यारोप लगाने का समय है?
हमारे देश का नेतृत्व किस तरह के नेताओं द्वारा किया जा रहा है? क्या उन पर देश के कानून लागू नहीं होते? ये राजनैतिक पार्टियां बिना किसी दंड के भय के कानूनों की अवहेलना क्यों करती हैं?
अगर किसी देश के नागरिक को सार्वजनिक रूप से मास्क नहीं पहनने की सजा दी जाती है, तो इन राजनीतिक दलों को अपनी बड़ी-बड़ी रैलियां और रोड शो चलाने की अनुमति क्यों है? आप उनसे एक प्रश्न पूछेंगे और वे उस प्रश्न को उसके विरोधी को निर्देशित करेंगे और वे दूसरों की तरफ इशारा करके स्वयं द्वारा की गई गलतियों को छुपाने की कोशिश करते हैं।
आखिर किसी को नीचा दिखाकर क्या हासिल किया जा सकता है? यह किसी की भी समझ से बाहर की चीज़ है? स्वयं की विफलताओं को छिपाने के लिए अपने विरोधियों को बदनाम करने के लिए राजनीतिक दलों की बढ़ी हुई प्रवृत्ति से राष्ट्र को कैसे लाभ होगा? ये रुझान हमारे देश के लिए फायदेमंद नहीं हो सकते हैं।
मैंने एक चुटकुला सुना है। एक लड़का परीक्षा में फेल हो गया था। उसे इस बात की चिंता बहुत सता रही थी कि वह अब अपने रिजल्ट के बारे में कैसे अपने पिता को बताए? वह इस बात को लेकर बहुत उधेड़बुन में था। आखिरकार उसे इस समस्या का एक उपाय सूझ ही गया।
अगले दिन जब उसके पिता ने उससे रिजल्ट के बारे में पूछा, तो उसने सबसे पहले अपने उन दोस्तों के बारे में बताना शुरू कर दिया, जो परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गए थे। अंत में उसने अपने पिता को अपनी विफलता की सूचना दी। उसने दूसरों की कमियों को गिनाकर स्वयं को बचा लिया।
आजकल की राजनीतिक बहस के साथ भी यही सच है। देश में चुनाव अभियानों के दौरान इसी तरह के रुझान हमें देखने को मिलते हैं। आजकल खुद की नाकामियों को छुपाने के लिए औरों की नाकामियों की ओर ध्यानाकर्षित करना आम बात हो गई है।
वास्तव में राजनीतिक बहस जनता को, उन उपायों के बारे में बताने के लिए होनी चाहिए जो कि राजनीतिक दल आम आदमी की भलाई के लिए कर रहे हैं। देश में चुनावों के दौरान अहम मुद्दा यह होना चाहिए कि कौनसा राजनैतिक दल आम जनमानस की भलाई करने के बारे में सोच रहा है या वह आम जनमानस के हितों की रक्षा करने में संलग्न है परंतु नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने वाले उपचारात्मक उपाय करने के बजाय राजनीतिक दल अपने राजनैतिक विरोधियों के सम्मान और प्रतिष्ठा को कम करने के प्रयासों पर अपना ज़्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं।
हाल ही में, जब कॉंग्रेस ने भाजपा पर हिंदू लिंचिंग को आम जनता में लोकप्रिय बनाने का आरोप लगाया, तब जवाब देने के बजाय भाजपा ने सिख दंगों के संदर्भ में कॉंग्रेस पर लिंचिंग के जनक होने का आरोप जड़ दिया जैसा कि बसपा और अन्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने भाजपा पर सरदार बल्लभ भाई पटेल की याद में बनाई गई स्टेचू ऑफ यूनिटी पर पैसा बर्बाद करने का आरोप लगाया, तो दूसरी ओर भाजपा ने भी बसपा पर हाथियों की मूर्तियों पर पैसा बर्बाद करने का आरोप लगाकर उसके आरोप का जवाब दिया।
कुछ मामलों में, कन्हैया कुमार भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा पर सरकार द्वारा उन्हें दी गई ज़िम्मेदारी के मुताबिक उनकी कम क्षमता के लिए हमला करते हैं, तो दूसरी ओर संबित पात्रा कन्हैया कुमार की शिक्षा का मज़ाक उड़ाते हैं और जब चर्चा जनता के प्रति होने वाली जवाबदेही पर होती है, तो सभी राजनैतिक दल इस जवाबदेही की ज़िम्मेदारी का बोझ एक-दूसरे पर डालना शुरू कर देते हैं।
कोरोना की दूसरी लहर के समय देश की भयावह स्थिति को संभालने में अपनी असमर्थता को छिपाने के लिए ‘आप’ केंद्र सरकार पर को दोष देती रही। अगर आप की सरकार द्वारा उचित समय पर उचित उपाय किए जाते, तो उस समय दिल्ली में भयावह स्थिति होने की जगह बेहतर होती।
इसी तरह के खेल पंजाब में भी खेले जा रहे हैं। आप ने सत्तारूढ़ सरकार पर अपने वादों पर खरे नहीं उतरने का आरोप लगाया है और इसके नतीजतन आप को भी सत्तारूढ़ दल के जवाबी आरोपों का भी सामना करना पड़ रहा है।
एक तरफ जहां आप का मानना है कि पंजाब की सत्ताधारी पार्टी अपने शब्दों पर अमल करने में विफल रही है, तो वहीं पर आप पर इस बात का आरोप मढ़ा जा रहा है कि उनके सारे वादे हवा-हवाई हैं। उदाहरण के तौर पर आप अपने चुनावी वादे जैसे कि दिल्ली में मुफ्त वाईफाई उपलब्ध कराने में विफल रही है। यह वादा आप ने आज तक पूरा नहीं किया है।
ऐसा ही एक वाकया बंगाल चुनाव के दौरान हुआ था, जब पूरा देश कोरोना महामारी की दूसरी लहर की चपेट में था, तब भाजपा और तृणमूल कॉंग्रेस दोनों ही राजनैतिक दल अपनी भव्य चुनावी रैलियां आयोजित करने में व्यस्त थे, जो बहुत बड़ी थीं और असंख्य जनता उन राजनैतिक सभाओं में आती थी।
आज जबकि एक तरफ हमारा देश कोरोना के नए पहले से अधिक खतरनाक ‘ओमिक्रॉन’ वर्जन की तीसरी लहर की चपेट में आने की कगार पर है, तो दूसरी ओर सभी राजनीतिक दल एक-दूसरे की छवियों को यथासंभव खराब करने की ही कोशिश में लगे हुए हैं।
ये सभी राजनैतिक दल एक बार फिर भीड़ जुटाने में जुटे हुए हैं, जिससे कोरोना के खतरनाक नए ओमिक्रॉन’ वर्जन को आसानी से देश में अपने पैर पसारने में मदद मिल रही है बजाय इसके कि कोरोना को नियंत्रण में रखने के लिए सभी राजनैतिक दल आम जनमानस के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को भलीभांति समझते हुए इससे बचाव एवं नियंत्रण के उपाय समय रहते हुए उठाने चाहिए।
उत्तर प्रदेश में तो बीजेपी लगातार छापेमारी कर हमलावर हो गई है, तो दूसरी तरफ सपा भी अपनी जवाबी कार्रवाई में लगी हुई है। इन सभी राजनैतिक दलों के पास एक ही लक्ष्य प्रतीत हो रहा है और वो है अपने विरोधियों को ज़्यादा-से-ज़्यादा बदनाम करना और अपनी स्वयं की विफलताओं को छुपाने के लिए अपने विरोधियों को आम जनमानस में बदनाम करने के लिए राजनीतिक दलों की इस घातक प्रवृत्ति से राष्ट्र को कैसे लाभ होगा?
अपने विरोधियों पर दोषारोपण करने की प्रवृत्ति से किसी भी राजनीतिक दल की वांछित प्रगति नहीं हो सकती है।इससे बेहतर तो यह है कि ‘उन्हें अपने देश के नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए किए गए सुधारात्मक उपायों पर बहस करके मतदाताओं को लुभाना चाहिए। यह ना केवल उनके हित में है बल्कि पूरे देश के हित में भी है।’