कोविड-19 महामारी के बाद हमारे देश में बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने की कवायद शुरू की गई थी। इसमें हमें काफी हद तक सफलता भी मिली है लेकिन अभी भी देश के कई ऐसे राज्य हैं, जहां स्वास्थ्य के क्षेत्र में विशेष सुधार की ज़रूरत है और जहां डॉक्टरों की लापरवाही के कारण मरीज़ों की जान पर बन आती है।
वहां उन्नत तकनीकों की कमी की वजह से लोगों को बेहतर इलाज के लिए दिल्ली जाने पर मज़बूर होना पड़ता है। बिहार भी देश के उन राज्यों में शामिल है, जहां की स्वास्थ्य व्यवस्था देश के अन्य राज्यों की तुलना में काफी खराब है।
यहां की लचर एवं निष्क्रिय पड़ी हुई स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल तब खुलती है, जब आम नागरिकों की जान पर बन आती है। कभी व्यवस्थाओं के अभाव के कारण, तो कभी डॉक्टरों की लापरवाही के कारण लोगों को अपनी जान-माल का नुकसान उठाना पड़ता है।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण लीची के लिए दुनिया भर में अपनी पहचान बनाने वाला मुज़फ्फरपुर है, जहां हाल ही में डॉक्टरों की लापरवाही के कारण लगभग 20 से ज़्यादा लोगों की आंखें निकालनी पड़ी हैं।
बिहार के मुज़फ्फरपुर स्थित जूरन छपरा क्षेत्र को मेडिकल हब के रूप में जाना जाता है। यहीं रोड नंबर दो में वर्ष 1973 से संचालित आई हॉस्पिटल में 22 नवंबर को संविदा पर बहाल दो डॉक्टरों ने ऑपरेशन कैंप लगाकर एक ही दिन में मोतियाबिंद से पीड़ित 65 लोगों की आंखों का ऑपरेशन कर दिया जबकि अस्पताल में मरीज़ों के लिए केवल दो ही बेड थे, लेकिन डॉक्टरों ने कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए 65 ऑपरेशन कर डाले, जिसके बाद बेड पर फैले बैक्टीरियल संक्रमण के कारण लोगों की आंखों में परेशानी होने लगी और आंख की पुतलियां बहने लगीं।
इसके बाद लोगों ने दोबारा आकर हॉस्पिटल में अपनी शिकायत दर्ज़ की लेकिन अस्पताल प्रशासन ने उनकी बातों पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया मगर जब सभी मरीज़ों का दर्द बढ़ने लगा, तो उनकी लापरवाही सामने आई। इस ऑपरेशन के बाद अब तक 20 से ज़्यादा लोगों की आंखें मुज़फ्फरपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज एसकेएमसीएच में निकाली जा चुकी हैं।
लोग डॉक्टरों की लापरवाही से परेशान हैं लेकिन कोई उनकी सुध लेने वाला नहीं है। ऐसे में लोगों ने अपनी आंखों की रौशनी बचाए रखने के लिए ही यह ऑपरेशन करवाया था, लेकिन उन्हें क्या पता था कि इस में उन्हें अपनी आंखें ही गंवानी पड़ेंगी।
इस ऑपरेशन से प्रभावित होने वाले अधिकतर लोग ग्रामीण क्षेत्रों से संबंध रखते हैं, जो आर्थिक रूप से काफी कमज़ोर हैं और अपनी आंखों के बेहतर इलाज के लिए दिल्ली तक जाने की क्षमता नहीं रखते हैं।
इस संबंध में अखाड़ाघाट क्षेत्र की रहने वाली इस ऑपरेशन की पीड़िता सावित्री देवी की बेटी ने बताया, “माँ को देखने में समस्या थी, जिसके बाद उनका मोतियाबिंद का ऑपरेशन हुआ था और अस्पताल प्रशासन ने उनसे 2000 रुपये भी ले लिए लेकिन ऑपरेशन के बाद से ही उनकी आंखों में दर्द होने लगा और आंखों की पुतलियां बहने लगीं, जिसके बाद दोबारा अस्पताल में संपर्क करने पर अस्पताल वालों ने डरा धमका कर उन्हें वहां से भगा दिया।”
पीड़ित सावित्री देवी।
वहीं महुआ थाना क्षेत्र स्थित 65 वर्षीय अरविंदर ने बताया, “ऑपरेशन के पहले डॉक्टरों ने किसी तरह की कोई जांच नहीं की और ऑपरेशन के करीब एक घंटे के बाद ही उनकी आंखों में दर्द होने लगा, जिसके बाद उन्होंने दोबारा अस्पताल जाकर दिखाया, जहां डॉक्टरों ने आंखों में आई ड्राप डाला लेकिन कुछ ठीक नहीं हुआ।
उसके बाद उन्हें वहां से राजधानी पटना रेफर किया गया, जहां भी आई ड्राप डालकर छोड़ दिया गया मगर वापस आई हॉस्पिटल आने के बाद डॉक्टरों ने बताया कि उनकी आंख में इंफेक्शन हो गया है इसलिए उनकी आंखें निकालनी पड़ेंगी।”
पीड़ित अरविंदर।
इसी प्रकार अपनी माँ की आंखों का ऑपरेशन करवाने आई एक और ग्रामीण गोपा देवी ने बताया, “उनकी माँ को आंखों से कम दिखाई देता था इसलिए हमने सोचा कि उनकी आंखों का ऑपरेशन करवा देते हैं, ताकि वह अपना दैनिक कार्य कर सकें, जिसके बाद उन्हें आई हास्पिटल में भर्ती करवाया लेकिन ऑपरेशन के बाद माँ की परेशानी बढ़ गई और आंखों से पस निकलने लगा, सारी रात सिर में दर्द हुआ।
इस बात की सूचना देने के लिए दोबारा आई हास्पिटल गए लेकिन डॉक्टरों ने अस्पताल के कर्मचारी के साथ पटना के अस्पताल में भेज दिया गया, जहां डॉक्टर ने बताया कि ऑपरेशन के कारण उनकी आंख पूरी तरह से संक्रमित हो चकी है और अब उनकी आंख निकालना ही एकमात्र रास्ता है।”
कमोबेश सभी लोगों की हालत ऐसी ही है। कुछ लोगों ने तो अपने परिवार पर बोझ ना बन सकें इसलिए अपनी आंखों का ऑपरेशन करवाया था मगर अब वही हमेशा के लिए अपने परिवार पर आश्रित हो गए हैं। इतनी बड़ी घटना के बावजूद डॉक्टरों की लापरवाही की इंतहा यहां तक हो गई कि उन्होंने कुछ लोगों का दाएं की बजाय बाएं आंख का ऑपरेशन कर दिया।
इस लापरवाही के बाद जूरन छपरा स्थित आई हास्पिटल को प्रशासन ने सील कर मामले की जांच शुरू कर दी है। इस संबंध में मुज़फ्फरपुर के एसएसपी जयंत कांत ने कहा कि ‘आरोपियों डॉक्टर्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ करके जांच शुरू कर दी गई है और साथ ही मेडिकल बोर्ड का गठन करके इस मामले में आगे की कार्यवाही की जाएगी।
पीड़ित गोपा की माँ।
वहीं मुज़फ्फरपुर के सिविल सर्जन विनय कुमार शर्मा ने बताया कि ‘स्पेशल टीम का गठन कर दिया गया है और दोषियों पर सख्त कार्यवाही की जाएगी। हालांकि, सरकारी अस्पतालों में मोतियाबिंद का इलाज सही तरीके से ना होना, सरकार की नाकामी को दर्शाता है।’
इस संबंध में मुज़फ्फरपुर के सांसद अजय कुमार निषाद ने बताया कि उन्हें यह जानकारी ही नहीं थी कि साल 2010 से सरकारी अस्पतालों में आंखों के ऑपरेशन की पूरी सुविधा नहीं हैं, उन्होंने आगे बताया कि वह सरकार से आग्रह करेंगे कि सरकारी अस्पतालों में ज़ल्द-से-ज़ल्द सारी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं। यह बहुत ही चौंकाने वाली बात है कि वहां के स्थानीय जनप्रतिनिधि को ही लोगों को अपनी आंखों की रोशनी पाने के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ रही है और उन्हें अपने क्षेत्र की रत्ती भर भी जानकारी नहीं है और वैसे, वो संसद में इस क्षेत्र के आम जनमानस का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मुज़फ्फरपुर के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. शलभ सिन्हा के अनुसार, लोगों की आंखों में संक्रमण (Pseudomonas Aeruginosa) बैक्टीरिया के कारण हुआ। एसकेएमसीएच के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट ने आई हॉस्पिटल के ऑपरेशन थियेटर के बेड, ट्रॉली, माइक्रोस्कोप आदि से स्वाब लिया और उसे कल्चर किया, तब पता चला कि यही बैक्टीरिया लोगों की आंखों में था और संक्रमण यही से लोगों की आंखों में फैला।
विभाग के अनुसार, कोई भी शल्य क्रिया करने से पहले औजारों को स्टरलाइज करना पड़ता है, ताकि उनसे संक्रमण समाप्त हो जाए लेकिन स्टरलाइजेशन के दौरान हुई लापरवाही के कारण ही संक्रमण लोगों की आंखों में गया है।
डॉ. शलभ के अनुसार, लोगों को यह जानकारी ही नहीं है कि मुज़फ्फरपुर आई हॉस्पिटल एक चैरिटेबल संस्था द्वारा चलाया जाता है चूंकि वहां पैसे कम लगते हैं, इसलिए लोगों को लगता है कि वह एक सरकारी संस्था है। वहीं सदर अस्पतालों की हालत बहुत खराब है, क्योंकि वहां डॉक्टर केवल वेतन लेते हैं मगर काम नहीं करते हैं।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल का एग्रीमेंट मार्च में ही समाप्त हो चुका था, अब तक एग्रीमेंट आगे नहीं बढ़ाया गया है और ना ही सिविल सर्जन को इसकी जानकारी दी गई है।
मुज़फ्फरपुर के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. शलभ सिन्हा।
एक आंकड़े के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष करीब 50 लाख लोगों की मौत चिकित्सकीय लापरवाहियों की वजह से होती है। कहीं सुविधाओं की कमी की वजह से, तो कहीं डॉक्टरों की कमी इसका कारण बनती हैं। 57 लाख की आबादी वाले मुज़फ्फरपुर में केवल 5000 मेडिकल स्टाफ हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार के स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टरों से लेकर नर्स और वार्ड ब्वायज तक 53.21 प्रतिशत कर्मियों की कमी है।
यह आंकड़े ही वहां की दयनीय स्वास्थ्य व्यवस्था का आईना हैं, जिससे पता चलता है कि सरकार समेत प्रशासन लोगों की सेहत के प्रति कितनी गंभीर है। बहरहाल उम्मीद की जानी चाहिए कि इस घटना के बाद सरकार और प्रशासन स्थिति की गंभीरता को समझते हुए राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं के ढांचे को मज़बूत बनाने पर ज़ोर देगी।
नोट- यह लेख मुज़फ्फरपुर, बिहार से सौम्या ज्योत्सना ने चरखा फीचर के लिए लिखा है।