ऊपर की लाइन हो सकता है कि कुछ लोगों को ना समझ आई हो कोई बात नहीं, आगे पढ़कर आप पूरी बात समझ जाएंगे।
हालांकि, इस लाइन को न्यूज़ चैनल के न्यूज़रूम में काम करने वाला आदमी तुरंत समझ गया होगा। आम तौर पर न्यूज़ देखने वाले लोग 2 लोगों को ही जानते हैं पहला न्यूज एंकर और दूसरा रिपोर्टर, इसके अलावा वो अन्य लोगों को नहीं जानते हैं, जो डिबेट में गेस्ट के तौर जाते रहते हैं या वो लोग थोड़ा बहुत समझते हैं, जिनके घर का कोई शख्स किसी न्यूज़ चैनल में काम करता हो।
असल में न्यूज़ रूम में, जो सबसे अहम डिपार्टमेंट्स होते हैं, वो आउटपुट और इनपुट होते हैं, अब बिल्कुल आसान भाषा में समझिए तो इनपुट का काम होता है कि फील्ड के रिपोर्टर्स से कॉर्डिनेट करना है, खबरों के लिए ज़रूरी चीज़ें जैसे स्क्रिप्ट, विजुअल, तस्वीरें आउटपुट को दे देना और आसान भाषा में समझिए तो इनपुट का काम है सब्जियां लाकर आउटपुट को दे देना और आउटपुट का काम है, काटना, छौंकना, मिर्च मसाला लगाना और आम जनमानस को न्यूज़ के रूप में परोसना।
अब इस आउटपुट में एक अहम किरदार होता है, जिसे रनडाउन प्रोड्यूसर कहा जाता है मतलब हॉट सीट पर बैठा हुआ शख्स मतलब कमांडर स्क्रीन पर क्या चलेगा, कैसे चलेगा? ये फैसला चंद सेकेंड्स के अंदर जिसे लेना होता है, उस इंसान का नाम रनडाउन प्रोड्यूसर होता है।
आम तौर पर हेडलाइन बनाने और खबरें लिखकर तैयार करके देने के लिए उसके पास सहयोगियों की टीम होती है और कभी-कभी हेडलाइन उसे खुद ही बनानी होती है। स्क्रीन पर कुछ भी गलत चला, तो उसका ठीकरा रनडाउन प्रोड्यूसर पर ही फूटेगा फिर गलती चाहे जिसकी हो, रगड़ाई इसी रनडाउन वाले चचा की होगी।
असल में रनडाउन प्रोड्यूसर और शादी वाले दिन बेटी का बाप, दोनों की स्थिति एक जैसी ही होती है। इनपुट रनडाउन वाले पर चढ़ाई करता है कि उसकी खबर क्यों नहीं चली, ग्राफिक्स वाला चढ़ता है कि उसके बनाए हुए ग्राफिक्स चल क्यों नहीं रहे, वीडियो एडिटर भी चढ़ जाता है कि उसने जो विजुअल ट्रीट करके दिए थे, क्यों नहीं चल रहे हैं?
किसी खबर को ज़्यादा चलाया तो सुनेगा, कम चलाया तो आफत मतलब ये समझिए कि उसे तुरंत फैसला लेना है और गलत फैसला लेने की कोई गुंजाइश नहीं है, क्योंकि एक गलत फैसला आपको तलवार की नोंक के करीब लाकर खड़ा कर देगा।
चैनल के संपादक महोदय मीटिंग में शिफ्ट इंचार्ज, आउटपुट हेड को सारे फरमान सुना देते हैं लेकिन उसके बाद भी कई बार रनडाउन वाला बेखबर होता है और अगर उससे एक छोटी सी भी गलती हुई, तो तय है कि न्यूज़रूम में उसका नागरिक अभिनन्दन होगा।
पैकेज ज़्यादा बड़ा चलाया, तो प्रोड्यूसर तो बाद में पकड़ा जाता है। सबसे पहला घेराव रनडाउन प्रोड्यूसर का ही होता है, तो अब सोचिए कोई बड़ी खबर है और रिपोर्टर फोनो पर पैच है और वह बिना फोनो लिए आगे बढ़े, तो पूरे न्यूज़रूम में कोहराम मचेगा और अगर सवाल छोटा लिया तो भी हल्ला मचेगा।
अगर लाइव रिपोर्टर से कम सवाल लिए, तो हाहाकार मचेगा और कहीं कोई रिपोर्टर संपादक का खास निकला और उसको सम्मान ना मिला, तो पूरे न्यूज़रूम में आपको दौड़ाया जाएगा और जब फील्ड के रिपोर्टर जान जाते हैं कि आप रन पर रहते हैं, तो वो आपको सीधे फोन कर देते हैं कि भाई ध्यान रखना और इधर आपने उनका ध्यान रखा और वो खबर संपादक को पसंद नहीं है, तो निश्चित अभिनंदन के बाद भी आप ना तो संपादक से कुछ कह सकते हैं और ना ही रिपोर्टर को अपना दर्द बता सकते हैं।
ये बेबसी वही समझ सकता है, जो कभी रन पर बैठा है साथ में सीनियर ये ज्ञान भी दे देते हैं कि जब वो रनडाउन पर थे, तो लाइव फोनो से भरे हुए बुलेटिन कहो 3-3 एक साथ बना दें। यह दबाव यहीं खत्म नहीं होता 22 मिनट या 23 मिनट के बुलेटिन में सबको संतुष्ट करना है, सबकी खबरों को जगह देनी है, फलाने को लाइव दिखाना है, ढिमकाने का रोड शो दिखाना है, फलाने मंदिर गए हैं, तो दिखाना है और रिपोर्टर को भी संतुष्ट करना है।
इस दबाव में रन पर बैठा आदमी कभी-कभी अपने बाल नोंचने लगता है, झल्ला जाता है और गाली बकने लगता है लेकिन वह अपना संतुलन नहीं खो सकता, दबाव बढ़ाने के लिए बगल में 2 लैंडलाइन फोन, एक टॉकबैक, खोपड़ी पर खड़ा शिफ्ट इंचार्ज, आउटपुट हेड, हर 10 मिनट में टोकने के लिए आते संपादक, व्हाट्सएप्प पर मैसेज भेजते रिपोर्टर, मेल पर गलतियों के लिए आते मेल और बीच-बीच में अपना पर्सनल फेसबुक, ट्विटर भी देखना है, प्रेमिका या पत्नी के मैसेज का रिप्लाई करना, दोस्तों के ग्रुप में आते चुटकुलों पर इमोजी भेजना, चाय की आस में कैंटीन की तरफ ताकना, वीक ऑफ कैंसिल होने का खतरा और सबसे ज़रूरी इतने दबाव में भी क्रिएटिव काम करना।
कुल मिलाकर आखिर में ये इंसान सब कुछ रहता है पर पत्रकार नहीं रह पाता महज़ एक मशीन बन कर रह जाता है फिर भी अपनी कोशिशों में कमी नहीं करता है।