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“जब नोबेल विजेता सत्यार्थी एक बच्ची के लिए कुली बन गए”

"जब नोबेल विजेता सत्यार्थी एक बच्ची के लिए कुली बन गए"

दुनिया के कुछ व्यक्तियों ने लीक से हटकर काम किए हैं। इसी कारण वे महान कहलाए। समाज के एक बड़े वर्ग पर उनके कार्यों का बहुत व्यापक प्रभाव पड़ा है। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी भी उन लोगों में से एक हैं, जिन्होंने अपने कार्यों से एक मिसाल कायम की है। ऐसा ही एक प्रेरक प्रसंग मेरे सामने दिल्ली के हज़रत निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर घटित हुआ।

सत्यार्थी अपने निजी ड्राईवर इमामी की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए बुंदेला राजाओं की राजधानी ओरछा के निकट जेरोन नामक कस्बे पहुंचे थे। गौरतलब है कि इमामी पिछले 20 सालों से सत्यार्थी के निज़ी ड्राईवर हैं, जब इमामी के यहां बेटी पैदा हुई थी, तब उन्‍होंने इमामी से वायदा लिया था कि अगर वह अपनी बेटी को पढ़ाएगा, तो वे उसकी शादी में पक्‍का शामिल होंगे।

उल्लेखनीय है कि सत्यार्थी पिछले 40 सालों से दुनिया के 144 देशों में बाल अधिकारों के लिए कार्य कर रहे हैं। उनकी दिनचर्या बहुत व्यस्त रहती है। सन् 2014 में नोबेल पुरस्‍कार मिलने के बाद दुनियाभर में उनकी मांग बढ़ गई है। सत्यार्थी के अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए यह बहुत मुश्किल था कि वे उनका कार्यक्रम इस शादी के लिए कैसे निश्चित करें। सत्यार्थी ने निश्चय कर लिया था कि वे हर-हाल में कन्या को आशीर्वाद देने इमामी के घर जाएंगे।

अतः सत्यार्थी की मंशा को देखते हुए उनके कर्मचारियों ने वेटिकन सिटी का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम रद्द कर इमामी की बेटी की शादी में शामिल होने का उनका कार्यक्रम बना दिया।

सत्यार्थी आम लोगों के साथ चलने में यकीन रखते हैं इसलिए उन्‍होंने अपने कर्मचारियों से कहा कि वे झांसी से दिल्ली तक की यात्रा रेलगाड़ी से करेंगे। उनके निर्देश पर उनका तथा उनकी पत्‍नी सुमेधा जी का ट्रेन-टिकट झांसी से निज़ामुद्दीन तक के लिए कर दिया गया। इमामी के घर से दिल्ली आने के लिए झांसी से ट्रेन लेनी पड़ती है। 

सत्यार्थी दंपति निश्चित समय पर झांसी रेलवे स्टेशन से दिल्ली के लिए रवाना हुए। गाड़ी शाम के 7.30 बजे निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंची और वे प्लेटफॉर्म पर उतर गए। उनकी अगवानी के लिए स्टेशन मास्टर तथा अन्य सरकारी अधिकारी प्लेटफॉर्म पर मौजूद थे। वे सभी लोग सत्यार्थी दंपति को सीढ़ियों से फुटओवर ब्रिज पर चढ़ाकर बाहर की तरफ लाने लगे।

सत्‍यार्थी ने सीढ़ियों पर चढ़ते हुए यकायक देखा कि एक दुबली-पतली सी किशोरी अपना सामान लेकर सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने का प्रयास कर रही है लेकिन सामान भारी होने की वजह से उसे वह ढ़ो नहीं पा रही है। यह नज़ारा देखते ही वे उस किशोरी की तरफ बढ़े और उसका सामान उठा लिया तथा उसे फुटओवर ब्रिज के ऊपर ले आए। उनके द्वारा उठाए गए इस कदम को देख सरकारी अधिकारी भी हक्के-बक्के रह गए, उन्होंने तुरंत एक कुली को बुलाकर उस किशोरी का सामान स्टेशन के बाहर तक पहुंचवाया।

वैसे, तो अनेक अति विशिष्ट व्यक्ति रोज़ाना ही रेलगाड़ियों से यात्रा करते हैं लेकिन कोई भी आम यात्रियों की परवाह नहीं करता। सत्‍यार्थी का आम यात्री के प्रति यह आचरण बिल्‍कुल अलग था। स्टेशन पर मौजूद जिस किसी ने भी यह नज़ारा देखा, उनका सत्यार्थी के प्रति सिर अदब से झुक गया।

नोट- (लेखक प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष हैं।)     

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