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गजल : इसलिए है आज भी

गजल : इसलिए है आज भी

इसलिए है आज भी कायम पशेमानी मेरी
तू समझता ही नहीं ज़ालिम परेशानी मेरी।

मैंने खुद को कर लिया तब्दील लेकिन
आज भी मेरे चेहरे से नहीं जाती है वीरानी मेरी।

मैं तुझे जब देख के तकता हूं कोई आईना
देखने लगती है इन आंखों को हैरानी मेरी।

मैंने इस दिल का कहा माना था, जन्नत में कभी
बन गई फिर मेरी नादानी परेशानी मेरी।

तुम ने इक छोटा सा कतरा ही समझ रक्खा मुझे
तुम ने देखी ही नहीं यानि फरावानी मेरी।

जंग मैं करता रहूंगा तीरगी से रात भर
और भुला दी जाएगी फिर सुबह क़ुरबानी मेरी।

मैं भी तूफानों के आगे सर झुका लेता अगर
किस तरह तस्लीम करती दुनिया सुल्तानी मेरी।

मैंने कुछ ऐसी रविश अपनाई मोहसिन आफताब
मुद्दतों भूली ना जाएगी गजल ख्वानी मेरी।

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