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बुक रिव्यु: ‘वाल्मीकि’ज़ विमेन’ महिलाओं के वास्तविक द्वन्द को दर्शित करती है

बुक रिव्यु: ‘वाल्मीकि’ज़ विमेन’ महिलाओं के वास्तविक द्वन्द को दर्शित करती है

‘वाल्मीकि’ज़ विमेन’ वाल्मीकि रामायण के पात्रों पर लिखी हुई एक समानांतर किताब है, जो कि उसके पात्रों के बारे में एक अलग मत प्रस्तुत करती है, एक अलग व्याख्या देती है।

वह सही है, गलत है, यह आप की अपनी सोच पर निर्भर करता है। किसी की कहानी या जीवन को हम सभी अपने अलग-अलग नज़रिए से देखते हैं। किताब रामायण के महिला पात्रों का जीवन देखने और उनके बारे मे सोचने का एक अलग नज़रिया प्रस्तुत करती है।

किताब के लेखक आनंद नीलकांतन से जब न्यू इंडियन एक्स्प्रेस की इंटरव्यूअर कहती हैं कि सीता का चित्रण रामायण मे बहुत ही डोसाइल और सब्मिसिव है तो आनंद उत्तर देते हैं, “यह अवधारणा मुख्यतः रामचरितमानस में है शायद तुलसीदास समाज और आक्रमणों के माध्यम से आने वाली संस्कृतियों से प्रभावित थे।

पूरे भारत में कई रामायणों में सीता ना तो डोसाइल हैं और ना ही सब्मिसिव हैं। शाक्तेय परंपरा में, रावण के वध के बाद, एक हज़ार सिरों वाला रावण उत्पन्न होता है और यह सीता ही हैं, जो सहस्रमुख रावण का वध करती हैं। वाल्मीकि रामायण में भी सीता के अनुसार ही कहानी आगे बढ़ती है।

उर्मिला के विपरीत, वह अयोध्या में रहने के लिए अपने पति की सलाह को मानने से इनकार करती हैं और उनके साथ जंगल में चली जाती हैं, जब हनुमान लंका आते हैं और उन्हें अशोक वन से वापस ले जाने की पेशकश करते हैं, तो वे यह कहते हुए मना कर देती हैं कि ‘उनके पति का सम्मान दांव पर है और उन्हें ही वापस ले जाना चाहिए।’

लंका में अग्नि परीक्षा देना सीता का अपना निर्णय होता है, जब राम गर्भवती सीता का परित्याग करते हैं, तो वे हार नहीं मानतीं बल्कि अपने बच्चों को अनुकरणीय योद्धा बनाती हैं, जब उन्हें दूसरी बार अग्निपरीक्षा के लिए कहा जाता है, तो वह इसे निर्वहन ना करने का विकल्प चुनती हैं। इनमें से कोई भी सीता के बारे में कुछ भी डोसाइल और सब्मिसिव नहीं दर्शाता है।”

इस किताब में मेरी पसंदीदा कहानी रही मंथरा की। मंथरा की कहानी जिस तरह से आनंद चित्रित करते हैं वह काबिल-ए-तारीफ है। इस कहानी में दिखाया जाता है कि किस प्रकार एक बदसूरत स्त्री का एक राजा जो कि अपनी पत्नी से अलग हो चुका है, अपने पुत्र और पुत्री के लालन-पालन के लिए प्रयोग करता है।

राजा द्वारा एक बदसूरत स्त्री को चुनना शायद उसकी इनसिक्योरिटी को दर्शाता है। मंथरा को यहां पर राज्य की सबसे बदसूरत स्त्री के रूप में दिखाया गया है। कैकेयी, जो कि राजा की पुत्री हैं, मंथरा को माँ कहकर बुलाती हैं। एक स्त्री जो सड़कों पर भीख मांगती थी, जिसका भविष्य अंधेरे में कहीं दीमकों द्वारा चाटा जा रहा था यकायक उसके जीवन में सब कुछ बदल जाता है।

सड़कों पर रहने वाली महल में रहने लगती है और राजपुत्री उसे माँ कहकर संबोधित करती है। जीवन में प्रथम बार ऐसा प्रेम पाकर और इतने अप्रत्याशित तरीके से उसे मिलना उसे अभिभूत कर देता है।

आजीवन प्रेम से दूर मंथरा के भीतर का सम्पूर्ण प्रेम वह कैकेयी पर न्यौछावर कर देती है और इस तरह कि मंथरा का कैकेयी के लिए यह प्रेम उसके लिए इन्सिक्योरिटी भी बन जाता है। वह कैकेयी का भला देखते हुए यह तक नहीं समझ पाती कि उसकी दी हुई सलाह कैकेयी पर किस तरह पलटवार कर सकती है।

राम को वनवास भेजने की प्रक्रिया में मंथरा को पूरी तरह दोषी ठहराना किस तरह गलत है इसका वर्णन आनंद ने कमाल का किया है। यहां पर यह समझने वाली बात है कि कैकेयी, मंथरा या उस समय राजा दशरथ के महल में मौजूद किसी भी सदस्य कि मानसिक स्थिति कैसी होगी।

कहानी में जहां कैकेयी को एक ऐसी इंडिपेंडेंट, शक्तिशाली और आधुनिक स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है, जो पूर्वाग्रहों से मुक्त है और पितृसत्तात्मक सोच के खिलाफ भी है, वहीं मंथरा को एक समझदार दूरदृष्टा के रूप में चित्रित किया गया है।

यह कहानी पढ़ते हुए कई अवसरों पर देखा जा सकता है। मेरा सबसे पसंदीदा हिस्सा उस जगह पर है, जहां राजा दशरथ कैकेयी द्वारा युद्ध में बचाए जाने पर उनसे कहते हैं कि तुम कुछ भी मांग लो, मैं तुम्हें दूंगा परंतु कैकेयी के बार-बार मना करने पर उनका मेल-ईगो आड़े या जाता है और वे खुद का बखान करने लगते हैं।

वहां मंथरा दशरथ को जज़ करते हुए कहती हैं कि अभी थोड़ी देर पहले यह आदमी खुद को कैकेयी के लिए समर्पित कह रहा था और अभी इतना इगोइस्टिक, क्रोधित हो रहा है। मंथरा आगे कहती हैं कि एक पुरुष को उसकी भाषा और शब्दों के चयन से कभी जज़ नहीं करना चाहिए।

धूमिल की एक कविता यहां बहुत याद आती है मुझे –

‘उसे मालूम है शब्दों के पीछे

कितने चेहरे नंगे हो चुके हैं

और हत्या अब लोगों कि रुचि नहीं

आदत बन चुकी है

वह किसी गंवार आदमी की ऊब से

पैदा हुई थी और

एक पढ़े-लिखे आदमी के साथ

शहर में चली गई’

इस किताब में ऐसी कुल 5 कहानियां हैं, जिसमें मेरी पसंदीदा मंथरा रही है फिर कैकेयी उसके बाद राजा दशरथ कि बेटी शांता की कहानी।

यह पढ़ना बहुत ही दिलचस्प रहा है कि किस प्रकार राजा दशरथ पुत्र की चाहत में अपनी पुत्री शांता को दान कर देते हैं और उनके अंतिम समय में उनके पुत्रों में से कोई भी वहां उन्हें कंधा देने के लिए नहीं रहता केवल उनकी पुत्री, जिसे वे दान कर चुके होते हैं, पहुंचती है। यह नियति का अलग खेल है।

इसके अंतिम भाग में सूपर्णखा की कहानी है, जिसके अंतिम पृष्ठों पर सीता और सूपर्णखा (जिसका एक नाम मीनाक्षी भी था ) के बीच की बातचीत समझने योग्य है। वे दोनों अपने-अपने हिस्से की कहानी एक-दूसरे से कहकर एक दूसरे को समझातीं हैं।

सूपर्णखा का जीवन जीने की इच्छा से भरा होना और उसके साथ इतना कुछ होने के बाद भी जीवन के हर हिस्से में खुशी और उल्लास को एक रहस्य की तरह देखना सीता को बहुत प्रभावित करता है।

हम मूल रामायण पढ़ें या ये किताब, दोनों में ही मुझे एक चीज़ समझ आती है कि इस महाकाव्य कि स्त्रियां कहीं-ना-कहीं पितृसत्ता और उससे उन्हें मिलने वाले जीवन के कारण डिप्रेशन जैसी स्थिति में रहती हैं। यह अगर कोई ध्यान से पढ़े और समझे तो शायद समझ पाएगा। कैकेयी और मंथरा के उल्लेखों मे यह बिल्कुल साफ-साफ देखा जा सकता है। मंथरा अंततः पागल हो ही जाती है।

पुरुष प्रोटैगनिस्ट की तुलना में महिलाओं को कितना दुर्बल और असहाय दर्शाया गया है। मेरे यह लिखने पर कुछ लोग शायद यह कहेंगे कि ये सब प्रभु की माया थी पर एक सीता का हिस्सा हटा दें तो रामायण की बाकी स्त्रियों के बारे में आप क्या कहेंगे?

मैं जितना समझा और जान पाया, इन महाकाव्यों से और इस किताब से, इतना ही निष्कर्ष निकाल पाया कि सही-गलत, सत्य-असत्य, अच्छा-बुरा जैसा कुछ नहीं होता। ये दुनिया एक लय में चलती है। भाग्य या मेहनत साथ-साथ चलते हैं। सब कुछ केवल भाग्य या मेहनत पर आधारित नहीं होता है।

जीवन में सब कुछ बहुत रैंडम होता है। आज हम इस पल किसी के साथ हैं, अगले पल वह शायद आप के साथ ना रहे। यह सब सृष्टि के रैंडमनेस के हिसाब से है। महाकाव्यों में अगर बुरा, बुरा रहा है तो अच्छा भी बुरा रहा है, अच्छा अगर अच्छा है तो बुरा भी।

आप कोई भी तर्क देकर उसे खंडित नहीं कर सकते। अगर कोई ईश्वर है, तो यह बिल्कुल भी तर्कपूर्ण नहीं हैं कि उसे कुछ भी गलत या अनीतिपूर्ण करने का अधिकार है पर ऐसा किया गया। ऐसा किया जा रहा है।

ऐसा किया जाता रहेगा। यही रैंडमनेस है। असल सत्य यही है कि इस दुनिया में ना कोई सत्य है, ना असत्य। यह मनुष्य की अवधारणा, अभिलाषा और मंतव्यों पर निर्भर करता है कि वो किसे सत्य माने, सही माने और किसे कुछ ना माने।

आनंद नीलकांतन का ही एक कोट है –

‘इस मायावी दुनिया में हर अनुभूति वास्तविक थी और इस दुनिया में जो कि वास्तविक है, प्रत्येक सत्य एक भ्रम है।’

कुछ किताबें जो आप पढ़ सकते हैं –

1- Fooled by Randomness – Nassim Nicholas Taleb

2- The Black Swan – Nassim Nicholas Taleb

3- Outliers – Malcolm Gladwell

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