शुभम ने हाल ही में हमारे साथ अपनी कार्यशाला और कोविड-19 के दौरान के FAT के सपोर्ट के अनुभवों को साझा किया है। इस बार शुभम हमारे साथ अपनी ज़िन्दगी के उन पहलुओं को लेकर हम से बात कर रही हैं, जब उन्होंने अपनी बहुत छोटी उम्र से अपनी पढ़ाई और ज़ल्द और जबरन शादी ना करने को लेकर महत्वपूर्ण फैसला लिया।
शुभम का बचपन
मेरा नाम शुभम कुमारी है। मैं पटना, बिहार में रहती हूं। मैं 2019 से FAT से जुड़ी हूं। हमारा नौ लोगों का परिवार है। हम छह बहनें हैं और हमारा भाई जो कि सबसे छोटा है, जिसके लिए मेरे माता-पिता ने बहुत सी मन्नतें की थीं। मेरे पिता एक दिहाड़ी मज़दूर के रूप में हर दिन कार्य करते हैं और यह आय हमारे घरेलू खर्चों को दिन-प्रतिदिन के आधार पर पूरा करती है, जहां तक हम सब बहनों का सवाल है, हमें घर की सभी ज़रूरतों का प्रबंधन, योगदान और देखभाल करनी पड़ती है।
जब मैं 8 साल की थी, तब मेरे भाई का जन्म हुआ था। उसके बाद हम सब बहनों की पढाई को लेकर हमारी दादी ने घर में लड़ना शुरू कर दिया कहा कि ‘लड़कियों को पढ़ाना नहीं चाहिए वरना बेटे को मौके नहीं मिलेंगे। पापा हमसे कहते थे कि तुम सब अपनी पढ़ाई छोड़ दो।’
कक्षा 6 में आते ही हम सब बहनों की पढ़ाई बंद कर दी गई थी और मैं सभी को स्कूल जाते देखती थी। हम अपनी दादी से छिपकर स्कूल जाते थे। 10-15 दिन तक गए थे, जब हमारी दादी को पता चला, तो उन्होंने हमें बहुत डांटा और हमारे पिता से इसकी शिकायत कर दी। मेरे पिता मेरी माँ के साथ हिंसक हो गए थे, क्योंकि वह हमें बाहर जाने दे रही थीं।
हमें उस समय बहुत बुरा लगा कि हमारी वजह से हमारी माँ को हिंसा सहनी पड़ी। उस समय लगता था कि इस समाज में लड़की होना पाप है और लोग बहुत कुछ बोलते थे कि इतनी लड़कियां हैं, कैसे संभालोगे? लेकिन मैंने ठान लिया था कि मुझे आगे बढ़ना है।
मेरे पापा ने मुझसे कहा कि वे सिर्फ मेरी पढ़ाई का 10 वीं तक ही समर्थन करेंगे। किसी तरह मैंने अपनी 10वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की। मेरी बड़ी बहन ने आठवीं कक्षा के बाद पढ़ाई नहीं की, क्योंकि उसे लगातार कहा जाता था कि वह किसी काम की नहीं है, उसे शादी करनी होगी, वह परिवार के पैसे बर्बाद कर रही थी, ऐसा उसको हमेशा बोला जाता था।
मेरी 10वीं कक्षा की पढ़ाई करने के बाद हमारे गाँव में गोरखपुर महिला समिति नाम की एक और संस्था थी। यह संस्था लड़कियों को एकत्रित करती थी और उन्हें फुटबॉलर बनने के लिए प्रशिक्षित करती थी। वे किशोर स्वास्थ्य, प्रजनन स्वास्थ्य, पसंद चुनाव पर बैठक और सत्र भी किया करते थे। मैं इन बैठकों के लिए और फुटबॉल अभ्यास के लिए भी जाने लगी।
इसके बारे में मेरी माँ के अलावा और कोई नहीं जानता था, लेकिन जब मेरे चाचा ने मुझे मैदान में शॉर्ट्स और टी-शर्ट में खेलते देखा तो उन्होंने घर आकर मेरे पिता को बताया। उस शाम को जब मैं लौटी, तो मेरे पापा ने मुझे बहुत डांटा और फिर गुस्सा काफी हद तक मेरी माँ पर ही चला गया। मेरे पिता फिर से मेरी मां को पीटने जा रहे थे, तभी मैंने उनका हाथ पकड़ कर रोका।
उस रात मेरे पिता ने मुझसे घर छोड़ने के लिए कहा और उस समय लगातार बारिश हो रही थी, लेकिन मैं भी अभी के लिए वहां से चली गई, क्योंकि मेरे पिता ने मुझे बोला था और मैंने खुद से वादा किया था कि मैं तभी वापस आऊंगी, जब वह मुझे वापस आने के लिए कहेंगे और मैं रो रही थी।
उस रात बारिश बंद होने के बाद मेरे पिता मुझे ढूंढते हुए आए और मुझे घर ले गए। उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं उनकी मर्जी के खिलाफ बाहर क्यों गई? मैने छोटे कपड़े क्यों पहने और फुटबॉल खेल रही थी, जब चाचा की बेटियों को घर से बाहर जाने कि अनुमति नहीं है, तो तुम क्यों गई?
उस समय मैं 13 वर्ष की थी और अपने पिता के साथ इस मुद्दे पर बात करना नहीं जानती थी। कहीं-ना-कहीं मुझे यह भी लगा कि मैं जो कर रही थी, उसे ना बताने में मैं गलत थी, तो मैंने उनके गुस्से को स्वीकार कर लिया। कुछ महीनों के बाद, मेरे पिता बीमार पड़ गए, वे बीमार थे और किसी से ठीक से बात भी नहीं कर रहे थे।
उस समय, मेरी एक बुआ ने सुझाव दिया कि अगर वे मेरी (14) और मेरी बड़ी बहन (16) की शादी कर दें, तो परिवार की खराब आर्थिक स्थिति दूर हो जाएगी। मेरी माँ ने भी हमें इनके बारे में नहीं बताया, इसलिए जिस दिन मेरी बुआ हमें शादी के लिए ले जाने के लिए आईं, मैं उठ खड़ी हुई और बोला। मैंने उससे कहा कि वह मेरे और मेरे जीवन के लिए निर्णय लेने वाली कोई नहीं है। मैंने उनसे कहा कि यह मेरी पसंद और मेरे परिवार का फैसला है और उन्हें यह फैसला करने का कोई अधिकार नहीं है।
इसकी शुरूआत में उन्होंने मुझे समझाने की बहुत कोशिश की, कि इससे हमें आर्थिक रूप से मदद मिलेगी और हमारे पति भी घर चलाने में मदद देंगे, लेकिन जब उन्होंने देखा कि हम नहीं सुन रहे हैं, तो वह वही बातें कहने लगीं, जो दूसरों ने कहा था कि हम बिगड़े हुए हैं, हम बहुत बोलने लगे हैं और हम अन्य लोगों के साथ घुलमिल रहे थे, शायद इसका कोई बॉयफ्रेंड भी होगा।
लेकिन, मैं अड़ी रही और उसके साथ जाने से इनकार कर दिया। मैंने उसे अपनी बड़ी बहन को ले जाने से भी रोका। उस दिन के बाद से हमारी बुआ हमारे घर नहीं आईं और ना ही हमसे बात की। उस दिन के बाद, मैंने बोलना शुरू करने का फैसला किया, मैंने अपने पिता को मुझे जर्सी और शॉर्ट्स में फुटबॉल खेलने की अनुमति देने के लिए मना लिया। वह मैदान में आए यह देखने के लिए कि अन्य लड़कियां कैसे अभ्यास कर रही हैं और फिर धीरे-धीरे मेरी भागीदारी में वे आश्वस्त हो गए।
शुभम अपनी साथी से तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी के बारे में बात करते हुए।
संगठनों के माध्यम से मैं छोटी-छोटी परियोजनाओं (प्रोजेक्ट)और कार्यक्रमों में काम करने लगीं थी और मुझे छोटे-छोटे वजीफे मिलने लगे थे। मैंने उन वजीफों को जमा किया और अपनी उच्च शिक्षा के लिए भुगतान किया। आज तक मैं अपनी शिक्षा के लिए कमा रही हूं और खुद ही भुगतान कर रही हूं और फुटबाल के माध्यम से मैंने समाज में बने हुए लड़कियों के कपड़ों को लेकर संकीर्ण प्रतिमानों के भेदभाव को तोड़ा है।
जब मैं फोटोग्राफी और फिल्म कार्यशाला के लिए FAT में शामिल हुई थी, तो पहली बार मैंने महसूस किया कि लड़कियां भी कंप्यूटर सीख सकती हैं, अपना करियर बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकती हैं। उस दौरान मैंने अन्य लड़कियों के जीवन की कहानियों से खुद की ज़िन्दगी से जोड़ा और मेरा भ्रम टूटा कि मैं ही सिर्फ नहीं इन चुनौतियों का सामना कर रही हूं।
उस दौरान मुझे कार्यशाला के लिए भी जाना था, क्योंकि यह आठ दिवसीय आवासीय कार्यशाला थी, मेरे पिता मुझे बाहर भेजने में बहुत आश्वस्त नहीं थे, लेकिन मेरे साथ काम करने वाले सामुदायिक संयोजक की मदद से वे आश्वस्त हो गए और उन्होंने मुझे जाने दिया। मैं और मेरी चचेरी बहन इस कार्यशाला में गए, क्योंकि वो मुझे अकेले नहीं जाने दे रहे थे।
इस कार्यशाला में मैंने अन्य लड़कियों के जीवन की कहानियां सुनीं, मैंने उनके संघर्षों को सुना और कैसे उन्होंने कार्यशाला में आने और शामिल होने के लिए बाधाओं को तोड़ दिया। इसने मुझे एक जुड़ाव की भावना दी और मुझे लगा कि मैं अपने संघर्ष में अकेली नहीं हूं, अन्य लड़कियां भी हैं, जो इन विकल्पों को चुन रही हैं और अपने स्थान के लिए बातचीत कर रही हैं।
FAT के माध्यम से मुझे कम उम्र में शादी, हमारे चुनने का अधिकार, अपने सपनों और आकांक्षाओं को व्यक्त करने जैसे विभिन्न मुद्दों के बारे में पता चला। मुझे लड़कियों के साथ समाज द्वारा की जाने वाली बाधाओं या भेदभाव के कारणों का भी पता चला।
मुझ यह भी समझ में आया कि मैं अपने परिवार को क्यों नहीं समझा पा रही थी,क्योंकि हमें कभी भी खुलकर बोलना,जो हम करना चाहते हैं, उसे व्यक्त करना कभी नहीं सिखाया जाता है। उस समय वर्कशॉप के दौरान, हमारे पास एक टास्क था, जहां हमें FAT प्रतिभागियों द्वारा बनाई गई पिछली फिल्मों की एक फिल्म स्क्रीनिंग करने की ज़रूरत थी। मैंने उस फिल्म को अपने परिवार और अपने समुदाय में दिखाया। उस स्क्रीनिंग के बाद लोग मुझे समझने लगे। मेरे पिता ने मेरे काम को समझा और लगातार मेरी बात पर आपत्ति करना बंद कर दिया।
“अगर हम समुदाय को करके दिखाएं कि बाहर जाकर लड़कियां करती क्या हैं यानि उन्हें बताएं, तो वो ज़रूर हमारी बात को समझेंगे।”
फिल्म स्क्रीनिंग के ज़रिये अपनी बात रखना
FAT में मैंने अपने साथियों के साथ एक फिल्म भी बनाई मेरी मर्जी मेरी आज़ादी , जहां हमने अपने लिए चुनने के अधिकारों के बारे में बात की, यह बात छोटी सी भी हो सकती है कि कौन सी पोशाक पहननी है और बड़ी भी हो सकती है कि कब तक मैं शादी करना चाहती हूं, जब इस फिल्म को प्रदर्शित करने का समय था, तो कोविड-19 आ गया था, इसलिए हमने अन्य लड़कियों के साथ एक ऑनलाइन कार्यक्रम किया, फिल्म बनाने में मदद की और FAT के अन्य कार्यक्रम प्रतिभागियों के साथ चयन करने के अधिकारों पर चर्चा की।
FAT में अन्य लड़कियों की देखकर और उनकी कहानियां को सुनकर कि वे इतना आगे बढ़ रही हैं, यात्रा कर रही हैं और अपने परिवार के साथ भरोसा बना रही हैं, तो उनके लिए कितना मुश्किल होगा इससे मुझे आगे बढ़ने का बढ़ावा मिला है।
मैं लड़की होकर अपने घर के बहुत पुराने नियमों को तोड़ पाई हूं और अपनी बहन की पढाई दुबारा से शुरू करवा दी हैं। मैं आगे निकल कर आई अगर मैं बात नहीं करती, तो यह सब नहीं कर पाती। मैं अभी अपनी स्नातक की पढाई कर रही हूं। मुझे गर्व होता हैं कि खुद पर मुझे जब ट्रेनिंग या जानकारी मिलती है तो मैं और लड़कियों के साथ उसे साझा करती हूं और अपने समुदाय की लड़कियों के साथ काम करती हूं।
सन्देश :- अगर आप अपनी चुनौतियों से लड़ना चाहते हैं, तो बात करना शुरू करें उनका हल तुरंत नहीं मिलता समय लगता है इसलिए बात करना ज़रूरी है और अपनी बात लगातार दूसरों के सामने रखना बहुत ज़रूरी है।