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आखिर क्यों हड़ताल कर रहे रेजिडेंट डॉक्टर, क्या हैं उनकी मांगें?

आखिर क्यों हड़ताल कर रहे रेजिडेंट डॉक्टर,क्या हैं उनकी मांगें?

नीट यूजी हो या नीट पीजी जैसे विवादों से नीट का कोई गहरा संबंध बन गया है, उधर नीट यूजी के छात्र पेपर लीक की लगातार शिकायतें करते आ रहे हैं और दूसरी तरफ नीट पीजी देने वाले रेजिडेंट डॉक्टर हड़ताल पर हैं।

कोरोना की इस भयानक त्रासदी में जहां देश को ज़्यादा-से-ज़्यादा डाक्टरों की ज़रूरत है, वहीं आखिर क्या कारण हैं, जो देश भर के रेजिडेंट डॉक्टर सरकार से इतना ना खुश हैं कि उन्हें इस आपदा के समय पर अपनी बातों की सुनवाई के लिए हड़ताल का रास्ता अपनाना पड़ा ।

लाखों अभ्यर्थियों को है नीट पीजी काउंसलिंग शुरू होने का इंतज़ार  

राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा, स्नातकोत्तर (नीट पीजी) 2021 की परीक्षा को पास करने वाले लाखों उम्मीदवारों को उनकी काउंसलिंग का इंतज़ार है। उन्हें अपनी काउंसलिंग में देरी होने की वजह से मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लेने में भी देरी हो रही है, जिससे छात्र बहुत हताश और परेशान हैं।

कोरोना त्रासदी और नीट पीजी परीक्षा में लागू हुए आरक्षण के मामले की वजह से नीट पीजी देने वाले लाखों अभ्यर्थियों का एक साल बर्बाद हो गया है। पहले नीट पीजी की परीक्षा अप्रैल 2021 में आयोजित होने वाली थी, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के चलते और बढ़ते मामलों की वजह से इसे स्थगित कर दिया गया।

नीट पीजी की परीक्षा 11 सितंबर को आयोजित की गई जिसके परिणाम घोषित होने के बाद कोर्ट में ओबीसी और ईडब्ल्यूएस वर्ग के आरक्षण के खिलाफ याचिका दायर कर काउंसलिंग प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई। अब इस याचिका  पर अगली सुनवाई जनवरी में होगी यानि नीट पीजी 2021 पास करने वाले अभ्यर्थियों का फिर एक साल बर्बाद हो जाएगा।

इस कारण से इस वर्ष नीट पीजी का सेशन भी शून्य हो गया है, हम सरल शब्दों में कहें तो हमारे देश भारत को अच्छे और कुशल डॉक्टर एक वर्ष की देरी से मिलेंगे, जिसका सीधा असर भारत देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर और आम जनता पर पड़ेगा 

24 घंटे काम करने के लिए मज़बूर रेजिडेंट डॉक्टर्स

अधिकांश मेडिकल कॉलेजों में प्रथम वर्ष के रेजिडेंट डॉक्टर बहुत अहम भूमिका निभाते हैं। इस वर्ष प्रवेश में देरी होने के कारण पीजी प्रथम वर्ष के छात्र अभी तक कॉलेजों में नहीं आए हैं, जबकि तृतीय वर्ष के छात्र पहले ही पास आउट हो चुके हैं।

इसकी वजह से दूसरे वर्ष के रेजिडेंट डॉक्टरों पर काम का बोझ बहुत बढ़ गया है। सरकारी अस्पतालों में मरीज़-डॉक्टर अनुपात के खराब होने के कारण हालात वैसे भी गंभीर हैं। ऐसे में प्रथम वर्ष के डॉक्टरों की अतिरिक्त कमी की वजह से दूसरे वर्ष के डॉक्टरों को हफ्ते में 100-100 घंटे काम करना पड़ रहा है।

इस बीच भारत में कोविड का नया वेरिएंट ओमिक्रॉन की दस्तक रेजिडेंट डॉक्टर्स पर और बुरा असर डाल सकती है। सरकार को ज़ल्द-से-ज़ल्द इस समस्या का हल निकालना होगा अन्यथा इसके दुष्परिणाम आम जनता को झेलने पड़ेंगे।

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