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युवाओ की शक्ति ,चिली के युवा राष्ट्रपति ग्रेबियल बोरीच

वर्तमान हो या प्राचीनकाल लोकतंत्र हो या क्रांति अगर युवाओ की भागीदारी उसमें है तो फ़िर उसको सफ़ल होने से कोई नहीं रोक सकता विवेकानंद जी ने भारत के युवाओ को कहा था कि उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंज़िल ना मिल जाए। किसी भी देश के लोकतंत्र की ख़ूबसूरती उस देश के वर्गो पर निर्भर करती है। अगर किसी देश का युवा समझदार, शिक्षित और एकजुट है तो वह कुछ भी कर सकते है …मैं अब आपको बताता हूँ एक ऐसे युवा के बारे में जो मात्र 35 वर्ष की आयु में राष्ट्रपति का चुनाव जीत लिया यानी कि 35 वर्ष की उम्र में एक युवा एक देश का प्रतिनिधित्व कर रहा है। कहते है कि युवा अगर कुछ थान ले तो वह कुछ भी कर सकते है यानी कि युवाओ की शक्ति उनकी गर्मजोशी अपने आप में एक संगठन की तरह होती है।

भारत से लगभग 17000 किलोमीटर दूर दक्षिण अमेरिका का एक देश है चिली। हाल ही में चिली में चुनाव हुए और वहाँ पर जीत हाँसिल की चिली के एक युवा छात्र नेता गेब्रियल बोरिच ने।

वामपंथी नेता गेब्रियल बोरिच ने राष्ट्रपति चुनाव में 56 प्रतिशत वोट शेयर के साथ ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। वह चिली के इतिहास में सबसे कम उम्र के राष्ट्रपति बनने वाले पहले व्यक्ति हैं। 35 वर्ष की उम्र के साथ सबसे युवा राष्ट्रपती। के नाम एक ओर रिकॉर्ड बन गया। वर्ष 2012 में चिली में वोटिंग अनिवार्य होने के बाद से गेब्रियल बोरिक को जो जन समर्थन मिला वह अभी तक का सबसे विशाल जनसमर्थन है। चुनाव का परिणाम आने के बाद जैसे ही नतीजों का ऐलान हुआ, उसके बाद चिली की राजधानी में सड़कें आमजन से भर गईं। इसलिए कहते है कि किसी देश के युवा तय कर लें तो वह सत्ता परिवर्तन का नया अध्याय भी लिख सकते हैं। हमारे देश भारत में अधिकतर राजनेता आपको उम्रदराज ही मिलेंगे अगर उसके पीछे की वजह जानने की कोशिश करें तो भारतीय राजनीति में जब कोई युवा प्रवेश करता है तो उसे संघर्ष करते-करते बड़े पद तक आने में काफ़ी समय लग जाता है। लेकिन अगर किसी भी देश का युवा ठान ले कि उसे कुछ करना है तो वह करके रहता है। आज जो वैश्विक ख़बरें देखते है उन सबके मन में यही चल रहा होगा की युवा गेब्रियल बोरिच से विश्वभर के युवा बहुत कुछ सिख सकते है

कौन है बोरीच?

गेब्रियल बोरिच का जन्म वर्ष 1986 में हुआ था और उन्होंने चिली यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई की है। हालांकि कॉलेज के दिनों में छात्र राजनीति से जुड़ने के कारण वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए और 2011 में उन्होंने पॉलिटिक्स जॉइन कर ली और आज 2021 ख़त्म होते-होते उन्होंने एक नया इतिहास लिख दिया

बात करें चिली की तो चिली लैटिन अमेरिका के सबसे समृद्ध देशों में से एक है। 1 करोड़ 75 लाख की आबादी वाले चिली ने कई तरह की शासन व्यवस्थाएँ देखी हैं। 1970 में समाजवादी सरकार थी, जिसका फौजी तानाशाह जनरल पिनोशे ने 1973 में तख्तापलट कर दिया और दक्षिणपंथी-नवउदारवादी नीतियाँ लागू कर दीं। फ़िर 1990 में पिनोशे को एक जनमत संग्रह के बाद सत्ता छोड़नी पड़ी। तब से चिली में अलग-अलग विचारधाराओं की सरकारें आईं और 1990 में लागू हुए नए संविधान के तहत काम करने लगीं। उदारवादी आर्थिक व्यवस्था की वजह से चिली समृद्ध तो हुआ, लेकिन असमानता बढ़ती गई. आज प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में चिली लैटिन अमेरिका के टॉप 3 देशों में से एक है।

बोरिच को करीब 56 प्रतिशत वोट मिले हैं। उनके प्रतिद्वंद्वी होसे एंटोनियो कास्ट को 44 प्रतिशत वोट मिले। चुनाव प्रचार के दौरान कास्ट ने वोटरों को यह कह कर डराने की कोशिश की थी कि बोरिच अगर यह चुनाव जीते तो कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों की कठपुतली बन जाएंगे और देश की अर्थव्यस्था बर्बाद हो जाएगी। पूरे लैटिन अमेरिका में चिली की अर्थव्यवस्था को सबसे स्थिर और आधुनिक माना जाता है। लेकिन जैसे ही चुनाव का नतीजा साफ हुआ तो कास्ट ने अपनी हार स्वीकार कर ली। कुल मिलाकर हम कह सकते है कि विचारधारा, एजेंडे, धर्म, मुद्दे यह सब बाद में देखा जाता है यहाँ एक वामपंथी युवा ने ठान लिया था तो बोरीच के पीछे पूरा देश खड़ा हो गया। एक तरफ़ विश्व में वामपंथ के डूबते नाम के साथ ग्रेबियल बोरीच ने दक्षिणपंथी नेता को कड़ी टक्कर देते हुए चुनाव जीत लिया है और एक बड़ी मिशाल कायम कर दी है। आइए अब आपको बताते है कि युवा राष्ट्रपति ने अपने देश के नागरिको से क्या वादे किए थेगेब्रियल बोरिच ने लोगों पर पड़ने वाले शिक्षा और स्वास्थ्य के खर्च को कम करने की बात कही. जलवायु परिवर्तन के खिलाफ निर्णायक लड़ाई का ऐलान किया. मानव अधिकारों की सुरक्षा और ट्रांसजेंडर्स की मदद और उनकी सुरक्षा के वादे किये। मुझे लगता है यह किसी भी अच्छे और मज़बूत लोकतन्त्र में इस तरह का घोषणा पत्र होना ज़रूरी है ।–धन्यवाद

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