Site icon Youth Ki Awaaz

“ट्रेन के सफर की वो घटना जिसे सोचकर मैं आज भी सिहर जाता हूं”

"ट्रेन के सफर की वो घटना जिसे सोचकर मैं आज भी सिहर जाता हूं"

ट्रेन के सफर की बात आज भी मुझे झकझोर देती है। यह बात 2017 की है, उस समय मैं दिल्ली से महिला-बाल विकास मंत्रालय में शोध-प्रशिक्षु के तौर पर काम कर रहा था। उस दौरान मेरा दिल्ली से इलाहाबाद आना हुआ था और वहीं दिल्ली में काम कर रहे एक अंकल, जो रिश्ते में मेरे मामा लगते थे।

वो गाँव से दिल्ली शहर में आकर सिलाई का काम करते थे और उनके साथ में उनकी छोटी बेटी भी थी, जिसकी उम्र मात्र 6 वर्ष थी। मुझे घर जाते हुए सुना तो, उन्होंने कहा तुम दिल्ली से इलाहाबाद जा रहे हो, तो मेरी बिटिया को भी साथ ले जाना और मेरे घर पहुंचा देना। 

मैंने उनकी बेटी को साथ लेकर जाने के लिए हां बोल दिया था। मैं दूसरे दिन रात 9 बजे आनंद-बिहार रीवा एक्सप्रेस ट्रेन की स्लीपर क्लास खिड़की के बगल नीचे वाली कन्फर्म बर्थ पर मामा जी की बेटी के साथ बैठ गया। रिजर्वेशन डिब्बा होने के बाद भी उसमें काफी भीड़ थी।

जहां हम बैठे थे, वहीं नीचे ज़मीन पर एक व्यक्ति जिसकी उम्र लगभाग 36-37 वर्ष रही होगी और नीचे चद्दर बिछाकर लेटने लगा, तो मैंने उसे ज़मीन पर लेटने के लिए मना किया लेकिन मेरे बार-बार मना करने के बावजूद भी वह नहीं माना और बार-बार बोल रहा था कि मेरी सीट वेटिंग में है। 

अभी आगे मुझे सीट मिल जाएगी तो मैं यहां से चला जाऊंगा। वह व्यक्ति बार-बार मेरे साथ बैठी मामा जी की बेटी को देख रहा था। मामाजी की बेटी ने अपने पैरों में नए जूते पहन रखे थे, तो मुझे लगा कि वो उन जूतों को देख रहा है।

मेरी नज़र जब भी उस पर पड़ती तो वह मुझे देखकर मुस्कराने लगता था। धीरे -धीरे रात हो गई थी और मेरी ज़िम्मेदारी मामाजी की बेटी को सुरक्षित उनके घर पहुंचाने की थी। इसलिए मैं जग रहा था और मामाजी की बेटी सीट पर सो रही थी। 

वो व्यक्ति बार-बार अपनी आंखें खोल कर मामाजी की बेटी को देख रहा था। उसे ऐसा करते-करते रात के तीन बज गये थे और अब मुझे भी नींद आने लगी थी और मैं भी सीट ओर लेट गया।

कुछ देर बाद मामाजी की बेटी जगी और शायद उसे टॉयलेट लगा था और वो बिना बताये उठकर चली गई। ट्रेन के उस डिब्बे में टॉयलेट रूम एकदम अंत में था और वो आदमी भी उसके पीछे-पीछे चला गया और अचानक ही मेरी आंख खुली तो मैंने देखा की सीट पर मामाजी की बेटी सीट पर नहीं है।  

वो आदमी भी नीचे ज़मीन पर नहीं था, तो मुझे कुछ अनहोनी की आशंका हुई। उस समय काफी रात हो गई थी। ट्रेन में और सब यात्री गहरी नींद में सोए हुए थे। मैंने पहले इधर-उधर देखा फिर बिना सोचे समझे वाशरूम की तरफ नंगे पैर भागा, तो देखा टॉयलेट का दरवाज़ा अंदर से बंद है।

मैं परेशान घबराया हुआ था। मैं चिल्लाते हुए दोनों हाथों से वाशरूम का दरवाज़ा पीटने लगा इसके बाद उस आदमी ने दरवाज़ा खोला तो मैंने देखा कि उसके पेंट की चेन खुली हुई थी और बगल में बच्ची खड़ी थी। मैं उस आदमी पर अकेले रात में कुत्ते-कमीने कहकर चिल्ला रहा था।

यह सब देखकर मैं डर गया था और मेरा शरीर बुरी तरह से कांप रहा था और ट्रेन में सब सोए हुए थे। मेरी चीखने- चिल्लाने की आवाज़ सुनकर वाशरूम के पास वाली बर्थ पर एक महिला जागी लेकिन वह देखकर फिर सो गई। 

मैंने उस आदमी को कहा कानपुर पहुंचने पर तुम्हारी पुलिस में शिकायत करुंगा। मैंने उस समय पुलिस को कॉल करने की भी कोशिश की लेकिन उस समय कॉल लगा ही नहीं। उस समय इस वाकये से बच्ची से ज़्यादा मैं डरा हुआ था कि ना जाने उसके साथ क्या हुआ होगा? मैंने उसे एक थप्पड़ लगाया कि “तुम मुझे बता नहीं सकती थी कि मुझे वाशरूम जाना है।”

इस सब से बच्ची बहुत डर गई थी। मैं तो और डरा हुआ था कि उसके माता-पिता को क्या बताऊंगा? उस समय बच्ची ढंग से टॉयलेट भी नहीं कर पाई थी। धीरे -धीरे कानपुर पहुंचते ही वो आदमी अचानक गायब हो गया था। हम लोग इलाहाबाद स्टेशन सुबह 7 बजे पहुंचे, फिर मेरी सांस-में-सांस आई।

इसके बाद मैंने घर पर पहुंच कर उस बच्ची से आराम से बातचीत की फिर उसने बताया कि “वो आदमी मुझे बार- बार अपने कपड़े उतारने के लिए बोल रहा था, लेकिन मैंने अपने कपड़े नहीं उतारे” और आगे वो व्यक्ति कुछ करने की कोशिश करता, तो तब तक वहां मैं पहुच गया था। उस रात एक बड़ी अनहोनी होने से टल गई थी। 

इस घटना के बाद मुझे हमारे समाज के आदर्श एवं सभ्य समाज के झूठे पुरुषार्थ से नफरत हो गई, जहां आज भी पढ़े-लिखे लोग तर्क देते हैं कि समाज और देश में लड़कियों के साथ बलात्कार की घटनाएं छोटे कपड़े पहनने से होती हैं।

मैं हमारे तथाकथित आदर्श और सभ्य समाज से पूछना चाहता हूं कि बलात्कार की घटनाएं मासूम बच्चियों, बूढ़ी महिलाओं, गाँवों में खेत-खलिहानों में काम करने वाली शोषित गरीब महिलाओं-लड़कियों के साथ ज़्यादा होता है। वे कौन से छोटे कपड़े पहनती हैं? धिक्कार है इस आदर्श कहे जाने वाले समाज और उसके बुद्धिजीवियों की मानसकिता पर।

मेरी समाज की इसी घृणित मानसिकता के खिलाफ लड़ाई आज भी जारी है, जहां लिंग की श्रेष्ठता के आधार पर भेदभाव किया जाता है, हां इसलिए मैं नारीवादी हूं, क्योंकि मैं समाज में समानता की बात करता हूं, शोषण का विरोध करता हूं।
अमित गौतम

Exit mobile version